Friday, August 07, 2015

China: A new colonial boss in Africa

“A new Boss in Africa”
अफ्रीका में बढ़ता चीन का प्रभुत्व


 African Continent 


वैश्विक परिप्रेक्ष्य में अफ्रीका का सामरिक, राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्त्व बढ़ता जा रहा है। अफ्रीका महाद्वीप में विभिन्न देशों के लिए ऐसे कौन से हित हैं जिनके कारण अफ्रीका की तरफ कई देशों का रुझान लगातार बढ़ रहा है? ओबामा की हालिया अफ्रीका यात्रा इसी का एक परिणाम थी। 2014 में चीन के विशेष प्रतिनिधिमंडल ने अफ्रीका के कई देशों की यात्रा की थी और अभी 2015 के अंत तक भारत में तीसरा अफ्रीका सम्मलेन होने जा रहा है। पिछले  कुछ दशकों में चीन ने सबसे ज्यादा निवेश अफ्रीका महाद्वीप में किया है. सवाल ये है कि चीन अफ्रीका में बहुत भारी मात्रा में निवेश क्यों कर रहा है, क्या  चीन के ऊपर क्या अफ्रीका की निर्भरता बढती जा रही है, क्या चीन अफ्रीका के प्राकृतिक  संसाधनों का दोहन कर रहा है, क्या वह अपने देश की बढती ऊर्जा खपत को पूरा करने के लिए अफ्रीका के संसाधनों का बुरी तरह से दोहन कर रहा है? कहीं चीन भी अफ्रीका में एक आर्थिक औपनिवेशिक देश की भांति तो व्यवहार नहीं कर रहा है? क्या अफ्रीका महाद्वीप कई स्वार्थ हितों के चलते यूएस, चीन, भारत, ब्राज़ील और अन्य कई देशों के लिए मात्र प्रतिस्पर्धा का बाजार बन गया है?


Goods trade with Africa, 2013,$bnSource-UNCIAD, IMF & The Economist 

अफ्रीका जनसंख्या और क्षेत्रफल के आधार पर विश्व में दूसरा सबसे बड़ा महाद्वीप है। 2013 के आंकड़ों के अनुसार, अफ्रीका की कुल जनसंख्या 1.1 बिलियन है. पूरे विश्व की 15% आबादी का भार अफ्रीका वहन कर रहा है। 50% से ज्यादा अफ्रीका की आबादी युवा है। अफ्रीका महाद्वीप में कुल 55 देश हैं, जहाँ निवेश में लगातार प्रगति हो रही है।

अफ्रीका की अर्थव्यवस्था सालाना 5.3% की दर से लगातार बढ़ रही है। 80 के दशक में पूरे अफ्रीका में विकास दर नकारात्मक रही, 90 के दशक में यूएस ने अफ्रीका को इनकी हालत में छोड़ दिया तो उस समय भारत, चीन और ब्राज़ील ने अफ्रीका में अपने पाँव पसारे तो अफ्रीका की विकास दर 3% तक पहुंच गयी। 2000 के दशक में दर करीब 4 % तक पहुंच गयी  और अभी 5.3 % की विकास दर से अफ्रीका आगे बढ़ रहा है।

Sunday, August 02, 2015

Why I am against Porn Industry and Pornography?





भारत सरकार ने पोर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध लगा दिया है। सोशल मीडिया पर सरकार के इस कदम की तीखी प्रतिक्रिया हो रही है। हर किसी को अपनी बात रखने का अधिकार है लेकिन मुझे यहाँ एक समस्या है कि एक तबका है जो पोर्न साइट्स के प्रतिबन्ध के विरोध में है और एक तबका समर्थन में है। एक बार फिर से इस बात पर बहस छिड़ गयी है कि पोर्न साइट्स पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये या नहीं। मेरे कई मित्र कह रहे हैं कि प्रतिबन्ध लगाने से क्या होगा? सरकार कैसी नासमझी हरकत कर रही है? हम क्यों न इस मसले पर बहस करें कि पोर्न साइट्स का कैसा रचनातंत्र है, यह कैसे काम करता है? क्या पोर्न स्टार्स वास्तव में सिर्फ व्यवसाय कर रही हैं, क्या पोर्न उद्योग भी एक तरह से वैश्यावृत्ति नहीं है, पोर्न साइट्स किस तरह से समाज का नुकसान कर रही हैं, किस तरह बच्चों के दिमाग पर गलत प्रभाव पड़ रहा है, बच्चों और औरतों पर जुल्म बढ़ रहे हैं? कई जन पोर्न साइट्स के प्रतिबन्ध के विरोध में यह कह रहे हैं कि ये नैतिक मसला है, लेकिन क्या ये सिर्फ नैतिक मसला ही है? 

पोर्न उद्योग का रचनातंत्र (Mechanism)  अप्रत्यक्ष तरीके से महिलाओं के अधिकारों का हनन कर रहा है, समानता के अधिकार का हनन कर रहा है। पोर्न कई तरीकों से हमारी निजी कल्पनाओं में बहुत ज्यादा हिंसा और गुस्सा उत्पन्न कर देता है। पोर्न कोई स्वस्थ्य यौन संचार (healthy sexual communication) नहीं है। यह एक तरह से पुरुषों का महिलों के ऊपर प्रभुत्व दर्शाता है। अधिकतर पोर्न साइट्स में बलात्कार की कई श्रेणियां मिलती हैं जैसे जबरदस्ती अपहरण करना, रास्ते चलते छेड़ना आदि. पोर्नोग्राफी में ब्रूटल सेक्स की भी एक श्रेणी होती है। कई श्रेणियों में बच्चों को रोता हुआ दिखाया जाता है? पुरुष की वासना तभी जागती है जब महिला या बच्ची चिल्लाना शुरू कर दे? आप सोचिये क्या ये वास्तव में यौनिकता(Sexual) है? कभी पोर्न कैमरे के सेटअप पर गौर किया कि कैमरा रिकॉर्ड करते समय कोई भी सामान्य कामुक गतिविधियों (sensual activities) जैसे प्रेम स्पर्श पर ध्यान नहीं देता है। कैमरा का क्लोजअप हमेशा भेदन (penetration) पर रहता है। अधिकतर समय पुरुष महिला के पृष्ठ भाग पर हाथ रखे हुए दिखाया जाता है। इस समय औरत बहुत ही असहज स्थिति (uncomfortable position) में ये सब सहन करती है और उसे उस समय और भी कई बातों का ध्यान रखना पड़ता है। पोर्न स्टार “जेसिका मेंडीज” ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया है कि इस उद्योग में यौन हिंसा चरम पर होती है और उन्हें कई ऐसे शब्द सुनने पड़ते हैं जो कि एक सामान्य व्यक्ति नहीं सुन सकता है। ऐसे कई सारे और तर्क हैं जिनसे यह कहा जा सकता है कि पोर्न उद्योग महिलाओं के अधिकारों का हनन कर रहा है।

पोर्न देखकर कहीं न कहीं न हम फिल्म वैश्यावृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। वैश्यावृत्ति करना किसी का भी बचपन का सपना नहीं होता है।