Friday, April 21, 2017

आतंकियों की भर्ती में ईंधन का काम कर सकता है जलवायु परिवर्तन

आतंकियों की भर्ती में ईंधन का काम कर सकता है जलवायु परिवर्तन
साभार-यूट्यूब 
ब्रिटिश अखबार द गार्डियन में छपी खबर में जर्मनी के विदेश मंत्रालय द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन आतंकवाद के कृत्यों को ईंधन देने का काम करेगा और बोको हराम और इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) जैसे आतंकवादी संगठन इसी का फायदा उठाकर अधिक से अधिक लड़ाकों की भर्ती कर सकेंगे। 

जर्मन सरकार द्वारा सहायता प्राप्त बर्लिन थिंकटैंक एडेल्फी की रिपोर्ट में बताया गया है कि बोको हराम और इस्लामिक स्टेट (आई.एस.) जैसे आतंकवादी संगठन जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदाओं (पानी और खाद्यान्न की कमी) का फायदा उठाएंगे। इससे आतंकवादी संगठन आसानी से अपने संगठन में लड़ाकों की भर्ती कर सकेंगे। साथ ही, वे अधिक आज़ादी से काम कर सकेंगे और आबादी के एक बड़े तबके पर नियंत्रण रख सकेंगे। आतंकी समूह भर्ती के लिए प्राकृतिक संसाधनों (पानी की आपूर्ति और भोजन आदि) पर नियंत्रण कर उनका हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। 

Sunday, April 16, 2017

We think too much and feel too little

The Final Speech of Charlie Chaplin from "The Great Dictator"


I'm sorry, but I don't want to be an emperor. That's not my business. I don't want to rule or conquer anyone. I should like to help everyone if possible - Jew, Gentile - black man - white.

We all want to help one another. Human beings are like that. We want to live by each other's happiness - not by each other's misery. We don't want to hate and despise one another. In this world there's room for everyone and the good earth is rich and can provide for everyone.

The way of life can be free and beautiful, but we have lost the way. Greed has poisoned men's souls - has barricaded the world with hate - has goose-stepped us into misery and bloodshed. We have developed speed, but we have shut ourselves in. Machinery that gives abundance has left us in want. Our knowledge has made us cynical; our cleverness, hard and unkind. We think too much and feel too little. More than machinery we need humanity. More than cleverness, we need kindness and gentleness. Without these qualities, life will be violent and all will be lost.


Thursday, April 13, 2017

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध: कूटनीतिक और रणनीतिक जीत

भारत-ऑस्ट्रेलिया संबंध: कूटनीतिक और रणनीतिक जीत

ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

साभार- विदेश मंत्रालय
ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री मैल्कम टर्नबुल की तीन दिनों (9 अप्रैल-12 अप्रैल) की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद और संगठित अपराध से निपटने, नागरिक उड्डयन क्षेत्र में सहयोग, स्वास्थ्य एवं औषधि क्षेत्र में सहयोग, मौसम एव वन्य जीव, खेल और सेटेलाइट नेवीगेशन के क्षेत्र में छह समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए।

टर्नबुल सितंबर 2015 में प्रधानमंत्री बने थे, उसके बाद से यह उनका पहला भारत दौरा है। हालांकि, इससे पहले 2015 में जी-20 समिट और 2016 में चीन के होंगझु में हुई ब्रिक्स समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री टर्नबुल की मुलाकात हो चुकी है।

Saturday, April 08, 2017

सीरिया में हमला करने के लिए अमेरिका ने टॉमहॉक मिसाइल ही क्यों चुनी


सीरिया में संदिग्ध रासायनिक हमले के बाद बीते गुरुवार को अमेरिका ने फारस की खाड़ी और लाल सागर में मौजूद अपने 2 नौसैनिक युद्धपोतों से सीरियाई सरकार के कब्ज़े वाले शयरात एयरबेस पर हवाई पट्टी, विमानों और ईंधन स्टेशन को निशाना बनाते हुए कम से कम 59 क्रूज़ मिसाइलें दागी थीं, जिसके बाद से टॉमहॉक मिसाइलें अचानक चर्चा में आ गई थीं। टॉमहॉक मिसाइल के प्रयोग के बाद दुनिया भर के देशों की विभिन्न प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। यहां हर किसी के मन में सवाल उठ रहा होगा कि अमेरिका ने हमला करने के लिए टॉमहॉक मिसाइलों को ही क्यों चुना?

सूफी संत 'बख्तियार काकी' दरगाह की दास्तां-महरौली

सूफी संत कुतुबद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह
बख्तियार काकी की दरगाह
फोटो साभार-विकिपीडिया
ऐसा माना जाता है कि  कुतुब साहब और इंसानियत के बीच रिश्ता दर्द का था। वे जब भी क़ुतुब साहब ध्यान लगाते थे तो वे खाना-पीना भूल जाते थे। काकी साहब खुरासन और बगदाद के रास्ते से होकर भारत पहुँचे थे। वर्तमान समय में ये जगहें ईरान में हैं। उन्होंने अपने मुर्शीद (गुरु) मोइनुद्दीन चिश्ती के कहने पर ही दिल्ली में रहने का फैसला किया था। हिंदुस्तान में सूफ़ियों के चिश्तिया सिलसिले की बुनियाद रखने वाले ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के ख़लीफा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी ने तेरहवीं सदी की शुरुआत में महरौली को अपना डेरा बनाया था। चिश्ती सिलसिले में इनकी बहुत ऊँची जगह है। वे इल्तुतमिश के समय में रहे थे और 1236 में उनका निधन हो गया था।