बैनर : इप्टा(IPTA)
निर्देशन : किरन कुमार
लेखक : बादल
सरकार
संगीत : मनीष
प्रभावशाली भारतीय नाटककार
और मंच कलाकार बादल सरकार द्वारा लिखित यह नाटक भारत की राजनीति, समाज, धर्म, गरीबी, मीडिया पर
गहरा कटाक्ष करता है | किरन कुमार ने अपने निर्देशन से इसमें जान डाल दी है | सभी पात्रों ने अपने अभिनय का लोहा मनवाया है | नाटक के मंचन
में सादगी है और ये पात्रों व घटनाओं के प्रवाह में कहीं भी बाधक नहीं बनता |
शुरुआत तो एक सामान्य तरीके
से हुई , उसके बाद मृत्यु , लेकिन अंत
ने सोचने को मजबूर कर दिया | मुन्ना , जिसे सभी अपने घर में वापस बुला रहे होते हैं और मुन्ना किसी
और घर की तलाश में घूम रहा होता है |
मुन्ना अर्थात भारत की परेशानियाँ(गरीबी, भुखमरी, नशा, राजनैतिक
नेतृत्व की कमी आदि ) | देश में हर रोज कई मुन्ना कई कारणों से मर रहे हैं | मुन्ना जब
बोलना चाहता है तो पुलिस रूपी सामंती तंत्र उसे पूरी तरह से दबा देता है | वर्तमान भारतीय
परिप्रेक्ष्य में व्यवस्था में परिवर्तन तथा सुधार के लिए कई आंदोलन, जुलूस हो
रहे हैं | वे इस नाटक के माध्यम से ये बताना चाहते थे कि जुलूस तो कई
निकलतें हैं लेकिन कहीं न कहीं नेतृत्व की कमी से वे जुलूस, आंदोलन सफल
नहीं हो पाते हैं | हमारी सामंती सोच को भी इस नाटक में दर्शाया गया है | घटना तब की
है जब बस में सभी रोज की तरह सफर कर रहे होते हैं और उसी सफर में एक पुरुष बोलता है
“पता नहीं ऑफिस टाइम में कहाँ से ये आ जाती हैं और इसके जवाब में “स्त्रियाँ भी तो
ऑफिस जाती हैं”| दूसरी सबसे अच्छी बात, किस तरह से
धर्म के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है | “मनुष्य, तू चिंता
ना कर, प्रभु है”|
मनुष्य अपने कार्य, कर्तव्यों
से भटक रहा है | यह बखूबी दिखाया गया है |
आज़ादी प्राप्त करने में
कितना खून बहा था और उसके बाद का शरणार्थी शिविर (refugee camp) का
दर्दनाक दृश्य, जिसमें खाने
के लिए तरस रहे होते हैं | आज़ादी, कैसी आज़ादी है ये? “आज़ादी से
पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे और आज़ादी के बाद गरीबी के गुलाम हैं”|
अंत में नाटक दर्शकों
के बीच एक सवाल छोड़ जाता है कि अब आप मुन्ना को बचाएंगे या फिर से कोई नया जुलूस??
बादल सरकार के इस नाटक
के मंचन के दौरान उपस्थित भीड़ इस बात का प्रमाण है कि लोगों की थिएटर में अभी भी बहुत
रुचि है |