Monday, August 26, 2013

अफसरशाही, सरकार और जनता?????

"वर्तमान समय में कुछ महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं कि क्या अफसरशाही को दवाब में रखा जाता है,स्वतन्त्र तरीके से कार्य करने में उन्हें कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ता है और उन्हें सजा भी दी जाती है| इसके कारण जनता का विश्वास सरकार तथा अफसरशाही दोनों में ही लगातार कम होता जा रहा है ।"
                             प्रशासन का काम आसान करने तथा सरकार की योजनाओं को जनता तक सही तरीके से पहुँचाने के लिए अफसरशाही व्यवस्था की स्थापना की गयी । अफसरशाही के अंतर्गत देश का पूरा प्रशासनिक ढांचा आता है । सरकार जनता की निर्वाचित प्रतिनिधि होती है| किस तरह कार्यपालिका(सरकार), विधायिका(अफसर) अपने मुद्दों से भटकती जा रही है |                               
                      भारतीय नौकरशाही के बारे में एक आम धारणा बनी हुई है कि नौकरशाही अब भी औपनिवेशिक शासन  काल की तरह ही सोचती और व्यवहार करती है । सुप्रीम कोर्ट भी इस बारे में कह चुका है कि भारतीय पुलिस अभी भी सामंती सोच की तरह काम करती है | नौकरशाही स्व : स्वार्थ के लिए राजनीतिक नेतृत्व के हाथों का खिलौना बनी हुई है । हरियाणा में शिक्षक भर्ती घोटाले में नौकरशाही की पूर्ण भूमिका से यह स्पष्ट हो जाता है । नौकरशाही शक्ति-केंद्र में  तब्दील होती जा रही है । अफसरों ,माफियाओं व्यापारियों और राजनेताओं के बीच साठ -गांठ बढ़ रही है । इसका खामियाजा यह है कि सरकारी योजनायें जनता तक नहीं पहुँच पा रही हैं तथा योजनाओं का लाभ सगे - संबंधियों को पहुँचाया जा रहा है । पूरी व्यवस्था पर एक गंभीर प्रश्न उठ रहा है ।  भ्रष्टाचार में राजनैतिक पार्टी तथा अफसरशाही दोनों के हित एक दूसरे से जुड़े हुये हैं । यदि अफसर बिना किसी दवाब के काम करें तो भ्रष्टाचार कम हो सकता है । सचिव की मंजूरी के बिना एक फाइल आगें नहीं बढ़ सकती है ।
                        2009 में होंककोंग की पोलिटिकल एंड इकोनोमिक रिस्क कंसल्टेंसी ने एशिया की बारह बड़ी अर्थव्यवस्था को लेकर जो सर्वेक्षण किया थाउसके नतीजे में भारतीय नौकरशाही को सबसे निकम्मा और विकास अवरोधक बताया गया है ।
                                पिछले कुछ वर्षों में सरकार  तथा नौकरशाही के बीच विवादों का सिलसिला चल पड़ा है जिससे लोकतान्त्रिक संस्थाओं को गहरा धक्का पहुंचा है | दुर्गा निलंबन ,अशोक खेमका बनाम राबर्ट वाड्रा युनुस खान बनाम रेत माफिया विद्याचरण काडवकर बनाम तेल माफिया । पिछले दो दशकों में 200 आई . ए . एस . अफसर निलंबित हुए जिसमें से 105 सिर्फ यू . पी . से हैं । अशोक खेमका का कांग्रेस शासनकाल में 16  बार  तबादला हुआ है । 60% आई . ए . एस . मायावती सरकार में निलंबित हुए । सवाल यह उठता है कि  यदि कुछ अफसर नियम तथा कानूनों के दायरे में रह कर
 सही काम करना चाहतें हैं तो माफिया रोड़ा बन कर खड़े हो जाते हैं  तथा उन्हें राजनीतिक सरंक्षण मिला हुआ है । सरकार  तथा प्रशासन बार - बार खनन माफियों माफियों के सामने क्योँ झुक रही है इससे सरकार तथा प्रशासन की मंशा पर गहरे सवाल उठना लाजिमी है तथा एक बात और स्पष्ट हो रही है कि  सरकार  तथा प्रशासन को जनता से कोई सरोकार नहीं है ।

                                  यदि नौकरशाही सही तरीके से काम करेगी तो विकास तथा उज्जवल भविष्य का एक नया पथ विकसित होगा । संघ लोकसेवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष पीसी होता कमेटी ने इस सिलसिले में कैबिनेट को एक रिपोर्ट सौंपी थी | कोई नौकरशाह जो फैसले नहीं लेता हो सकता है वो हमेशा सुरक्षित रहे लेकिन अंतत: समाज तथा देश के प्रति उसका योगदान कुछ नहीं होता ।हम एक लोकतान्त्रिक देश में रह रहे हैं | अगर इस देश में लोकतान्त्रिक संस्थाओं को पतन हो रहा है तो यह हमारे लोकतन्त्र के लिए सबसे बड़ा खतरा है |

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