Sunday, August 25, 2013

सुरक्षित समाज – वास्तव में???????

बलात्कार का मतलब सिर्फ शारीरिक संबंध से नहीं है| घूरना, व्यंग करना, पीछा करना यह भी एक तरह से मानसिक रूप से बलात्कार है, वास्तव में बलात्कार जैसी घटनाओं की शुरुआत यहीं से शुरू होती है16 दिसम्बर की वीभत्स घटनाऔर उसके थोड़े दिन बाद ही वापस दिल्ली में 5 साल की बच्ची का रेप और इस मामले में पुलिस ने लड़की के पिता को केस रफा–दफा करने के लिए रिश्वत की पेशकश करके मानवीयता की सारी हदों को पार कर दिया था| उत्तर प्रदेश में प्रतापगढ़ में एक महिला थाने में शिकायत दर्ज करने आई थी और वहाँ एक सिपाही ने महिला का बलात्कार कर दिया | आसाराम बापू पर एक लड़की ने यौन-प्रताड़ना का आरोप लगाया है | ये सभी घटनाएँ लगातार हमारी  कुत्सित मानसिकता की  ओर इंगित कर रही हैं |राजधानी दिल्ली भले ही महिला सुरक्षा के मामले में फिसड्डी हो लेकिन मुंबई के मामले में एक आम धारणा थी कि मुंबई लड़कियों के लिए बहुत सुरक्षित है | वहाँ लड़कियां रात को आराम से घूम सकती हैं लेकिन पिछले दिनों की तीन घटनाओं से यह जाहिर हो रहा है कि मुंबई भी लड़कियों के लिए सुरक्षित नहीं रह गया है | पिछली दो घटनाएँ लोकल ट्रेनों में हुई थी | पहली घटना में मुंबई में लोकल ट्रेन में एक महिला के साथ बलात्कार की कोशिश की गयी तथा दूसरी घटना में एक विदेशी महिला को हमले का निशाना बनाया गया | 23 साल की महिला पत्रकार के साथ सामूहिक दुष्कर्म की वीभत्स घटना ने सम्पूर्ण मुंबई को दहला कर रख दिया है|
                             इन सभी घटनाओं से कई महत्वपूर्ण सवाल उठ रहे हैं | पहला सवाल आखिरकार ये सभी घटनाएँ बढ़ती क्यों जा रही हैं ? इस सवाल के जवाब के लिए हमें इसकी तह तक जाना होगा | हम सभी एक समाज में रह रहें हैं और उसी समाज का हम सभी हिस्सा हैं | हमारा समाज आज भी पितृसत्तात्मक तथा सामंती चहरा का लिबास ओढ़े हुए है | इन कारणों की शुरुआत हमारे घर से ही होती है | अभी हाल ही में दिल्ली पुलिस ने एक रिपोर्ट में कहा है कि इस साल 662 बलात्कार मामलों में 202 पड़ोसी तथा 189 सगेसंबंधी शामिल थे |जब हमारे घर में प्रारम्भ से यह सिखाया जाता है कि लड़की को घर का सारा काम झाड़ू –पोछा आदि करना है और लड़के को पढ़ाई करना है | अधिकतर सभी घरों में आज भी यही स्थिति है|  प्रारम्भिक कक्षाओं की किताबों में लिखा रहता है कि मम्मी कहाँ है -? मम्मी रसोई घर में हैं | पापा कहाँ है -? पापा ऑफिस में हैं | ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि मम्मी और पापा दोनों रसोई घर में हों या मम्मी ऑफिस में हों | नहीं, हमने तो स्त्रियों को घर तक सीमित कर दिया है| शायद यही कारण है कि हमारा आधा समाज अब भी विकसित नहीं हो पाया है| हमारे मन अभी भी स्त्रियों को व्यक्तिगत संपत्ति समझता है | घर की शानो शोकत हमेशा क्यों स्त्रियों से जोड़ी जाती है, लड़कियों के ऊपर भद्दे व्यंग, घूरना ये सब आम बात हो गयी है |यदि घर की एक लड़की का बलात्कार हो जाए और दूसरी तरफ लड़का किसी का बलात्कार कर दे तो लड़की के लिए कहा जाएगा कि लड़की ने ही कुछ गलत किया होगा | इस बात की पुष्टि आसाराम बापू, कैलाश विजयवर्गीय, आरएसएस के बयानों से हो जाती है | अभी हाल ही में मुंबई घटना के बारे में नरेश अग्रवाल का बेतुका बयान इस बात की ओर इंगित कर रहा है कि लड़कियों के साथ बलात्कार उन्हीं के कारण होते हैं | कैसी कुत्सित मानसिकता है? दूसरा सवाल यह है कि इसके कारण लड़कियों के मन में जो डर लगातार घुसता जा रहा है वो कैसे दूर होगा ? मतलब यह कि उन्हें बाहर जाने से पहले सौ बार सोचना पड़ेगा, यदि वे बाहर जाती हैं तो वे पापा,भाई या घर के किसी सदस्य के साथ जाएंगी |उन्हें भी स्वतंत्र तरीके से घूमने का अधिकार है लेकिन यह मौलिक अधिकार तो उनसे लगातार छीना जा रहा है |

                                    बलात्कार सिर्फ कानूनी समस्या नहीं है | यह कानूनी समस्या से कहीं बढ़कर है, यह एक बहुत बड़ी सामाजिक समस्या है जिसका निदान समाज में ही छुपा हुआ है | फाँसी देना बलात्कार की समस्या का समाधान नहीं है | स्त्रियों की सुरक्षा के लिए कोच,बस में जगह आरक्षित कर दी, बस सुरक्षा की ज़िम्मेदारी खत्म हो गयी | नहीं ,इससे तो लड़के – लड़कियों के बीच फासला और बढ़ता जा रहा है जबकि हमें इसी फासले को कम करना है | हम सोचतें हैं कि कानून व्यवस्था को चुस्त -दुरुस्त कर देने से सारी समस्या हल हो जाएगी लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है | कानून तो कई हैं लेकिन उन कानूनों का पालन कितना हो रहा हैयह सोचने की बात है | सरकार भी समाज से मिलकर बनी है और पुलिस भी हमारे उसी पितृसत्तात्मक तथा सामंती समाज का हिस्सा है| जब तक समाज में जागरूकता नहीं आएगी तब तक कितने ही कानून क्यों न बन जाए लेकिन समस्या का हल नहीं निकलेगा | हमें जेंडर-शिक्षा, जागरूकता व्यापक पैमाने पर फैलानी होगी | समाज धीरे–धीरे बदलेगा और बदल भी रहा है लेकिन बदलने की गति को तीव्र किया जाए | समाज सुधरेगा तो सब कुछ सुधर जाएगा तब स्त्रियाँ एक स्वस्थ्य तथा सुरक्षित वातावरण में जी पाएँगी |

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