Monday, March 07, 2016

महिला दिवस: कुछ सवाल



वैसे तो आप सभी महिलाओं के लिए कोई एक दिन विशेष नहीं होता है, फिर भी आज के दिन का एक प्रतीकात्मक महत्त्व है। समाज में कई बार प्रतीकात्मक महत्त्व की महत्ता बहुत अधिक बढ़ जाती है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य की बात करें तो महिला सुरक्षा और उनका सशक्तिकरण एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। संसद में महिला आरक्षण विधेयक कई वर्षों से लंबित पड़ा हुआ है। महिला सशक्तिकरण है क्या और क्यों यह बहुत ज़रूरी है? सभी महिलाओं को निडर होकर घूमने की आज़ादी कब मिलेगी? एक खुला वातावरण महिलाओं के लिए कब सुरक्षित होगा ?

हमारे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की पूर्व संध्या पर कहा, "यह सभी भारतीयों की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे समाज में महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करता पारिस्थितिकी तंत्र बनाएं। हम महिलाओं के लिए लैंगिक समानता और सशक्तीकरण के प्रयास को दोगुना करें। हम महिलाओं को देश के विकास के हर पहलू में पूरी क्षमता से और सार्थक रूप से भागीदारी करने में सक्षम करें।" 

राष्ट्रपति महोदय के कुछ शब्द जो कि वर्षों से लोगों के सामने सवाल बन कर खड़े हैं और ये शब्द इंतजार कर रहे हैं कि ये शब्द महिलाओं की समानता के परिप्रेक्ष्य में कब खत्म होंगे? "लैंगिक समानता, महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करता पारिस्थितिकी तंत्र, देश के विकास के हर पहलू में उनकी सार्थक भागीदारी" ये सभी  शब्द आज भी हम सभी के सामने उत्तर जानने के लिए खड़े हैं। 

जिस तरह से पेड़ की जड़ में लगी दीमक से पेड़ खोखला हो जाता है, उसी प्रकार हमारा यह देश है। अगर जड़ मजबूत होगी तो सारा पेड़ फल-फूलकर अपनी सुरक्षा रूपी छाया दे सकेगा। यदि पेड़ का कोई अंग कमजोर होगा तो विकास अवरूद्ध हो जाएगा। 2011 की जनगणना के अनुसार , भारत की कुल आबादी में 49% महिलाएं हैं। महिला सशक्तिकरण की यदि बात करें तो क्या आरक्षण से इस समस्या को सुलझाया जा सकता है। उदहारण के लिए, दिल्ली मेट्रो में भीड़ के बटवारे का कुछ दिनों तक आकलन करिए तो महिलाएं सुरक्षा की दृष्टि से महिला कोच में सफर करना ज़्यादा पसंद करती हैं? बेशक, उनकी गरिमा और विकास के लिए आरक्षित कोच ज़रूरी है लेकिन क्या सिर्फ आरक्षित कोच बनाकर हमारी, समाज और सरकार की ज़िम्मेदारी पूरी हो जाती है? क्या महिलाओं को सुरक्षा सिर्फ महिलाओं के साथ ही मिल सकती है, अगर इसका उत्तर हां है तो हम और हमारी सरकारें ज़िम्मेदारी से अपना मुंह फेर रही हैं। 

आप सभी शिक्षित, बहुत शिक्षित और अशिक्षित लोगों से एक सवाल नहीं, एक विनम्र निवेदन करना चाहता हूं। आशा है कि आप इस महिला दिवस पर उस पक्ष पर गौर करेंगे। हमारे कॉलेज के समय में द्वितीय वर्ष में मुझसे मेरी एक दोस्त ने सवाल पूछा था कि सारी गालियां सिर्फ महिलाओं को केंद्रित कर क्यों दी जाती हैं? आप सभी भी इस सवाल को अपने अंतर्मन से पूछिए।

मैं उड़ना चाहती हूं, 
आकाश में उड़ते पक्षी की तरह, 
मैं नित नई ऊचाईयों को छूना चाहती हूं,
मैं कुछ कर दिखाना चाहती हूं, 
मैं आसमां में बेबाक होकर झूम जाना चाहती हूं,
जालिमों, ये मत समझना, न ही भ्रम रखना 
कि तुम्हारे डराने से मैं डर जाऊंगी 
मैं लड़ूंगी, झूझुंगी और आगे बढूंगी
और मैं अपने लक्ष्य को पाकर रहूंगी
तुम कितने भी व्यवधान डालो, पितृसत्तात्मक रीति-रिवाज़ थोपो
मैं तर्कशील होकर उन सभी सत्ता को जवाब दूंगी
मैं समाज में अपना सम्मानजनक स्थान पाकर रहूंगी !
मैं उड़ना चाहती हूं.........आकाश में उड़ते पक्षी की तरह......   
मैं नित नई ऊचाईयों को छूना चाहती हूं............ !

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