कुतुबमीनार
A Beautiful view of Qutub Minar, PC - Shubham Gupta |
कुतुबमीनार और कुतुब परिसर भारत के इतिहास के कई पलों की गवाह है और यह परिसर अपने आप में कई रहस्यों, ऐतिहासिक विरासत को समेटे हुए है। दिल्ली के महरौली परिसर में स्थित यह परिसर अपनी खूबसूरती से कई घुमक्कडों, पर्यटकों, फोटोग्राफर्स को आकर्षित करता रहता है।
A view of Qutub Complex , PC - Shubham Gupta |
कुतुबमीनार की ऊंचाई की बात करें तो यह ईंट से बनी दुनिया की सबसे ऊंची मीनारों में से एक है। साथ ही, 379 सीढ़ियों वाली यह भारत की सबसे ऊंची मीनार है। मीनार की ऊंचाई 72.5 मीटर और इसका व्यास 14.3 मीटर है। हालांकि, यह व्यास चोटी पर पहुंचकर 2.75 मीटर हो जाता है। इस परिसर को यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित किया गया है।
इस मीनार की नींव गुलाम वंश के प्रथम राजा कुतुबद्दीन ऐबक ने साल 1193 में रखी थी। पुरातत्व विभाग के अनुसार, जब कुतुबमीनार की नींव रखी गई तब इसका अभिप्राय संभवत: विजय मीनार से था। कुतुबद्दीन इस मीनार की केवल प्रथम मंजिल ही पूरी करा सका। उसकी मृत्यु के पश्चात कुतुबद्दीन के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश ने इसका निर्माण कार्य तीन मंजिलों तक पूरा कराया। इसके बाद साल 1368 में तुगलक वंश के राजा फिरोज़ शाह तुगलक ने मीनार की पांचवी और अंतिम मंजिल का निर्माण कार्य पूरा करवाया।
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कुतुब मीनार पर अंकित फारसी अभिलेखों से ऐसा लगता है कि साल 1326 और 1368 में बिजली गिरने से इस मीनार को नुकसान पहुंचा था। मीनार में पहली बार मरम्मत कार्य तुगलक वंश के राजा मुहम्मद बिन तुगलक के समय (1325-1351) के समय हुआ और दूसरी बार मरम्मत कार्य फिरोज़ शाह तुगलक (1351-1388) के शासन काल के दौरान हुआ। बाद में साल 1503 में लोदी वंश के राजा सिकंदर लोदी (1489-1517) के समय भी कुतुब मीनार में कुछ मरम्मत कार्य हुआ।
Architecture of Qutub Minar-A closer view, PC- Shubham Gupta |
इस मीनार की पहली चार मंजिलें बनाने में लाल और धूसर बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया। बाद में, फिरोज़ शाह तुगलक के समय मीनार की चौथी और पांचवी मंजिल में संमरमर के पत्थर का प्रयोग किया गया। हालांकि, चौथी मंजिल के निचले स्तर को उसकी मूल हालत में ही छोड़ दिया गया जो कि लाल और धूसर बलुआ पत्थर से बनाई गई थी।
कुछ लोगों का कहना है कि पृथ्वीराज चौहान ने अपनी पुत्री की पूजा-अर्चना के लिए कुतुबमीनार का निर्माण कराया था ताकि वह यमुना के दर्शन कर सके। हालांकि, कुतुबमीनार की सम्पूर्ण वास्तुकला से ज्ञात होता है कि इसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के समय में नहीं हुआ है। मीनार में जिस स्थापत्य कला का प्रयोग किया गया है वह कला चौहान के समय नहीं थी। हालांकि, कुतुबमीनार के आस-पास मंदिरों के नक्काशीदार पत्थरों का प्रयोग किया गया है। इतिहासकारों के मुताबिक, ऐसा हो सकता है कि इसका निर्माण कार्य कराने के लिए हिन्दू शिल्पियों की मदद ली गई हो।
कुतुब-उल इस्लाम मस्ज़िद
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पुरातत्व विभाग के अनुसार, यह मस्ज़िद सुल्तानों के पूर्व समय के संस्मारकों को छोड़कर भारत की सबसे पुरानी बची हुई मस्ज़िद है। इस मस्ज़िद का निर्माण गुलाम वंश के प्रथम राजा कुतुबद्दीन ऐबक ने हिन्दू और जैन मंदिरों के नक्काशीदार स्तंभों और अन्य स्तम्भों से करवाया था।
Remains of Jain Temple, PC- Shubham Gupta |
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, गिराए गए मंदिरों में से प्रत्येक के मूल निर्माण पर 20 लाख सिक्के खर्च किए गए थे। बताया जाता है कि उस समय इस मस्ज़िद को जामे मस्ज़िद भी कहा जाता था। बाद में इसे कुतुब-उल इस्लाम मस्ज़िद (इस्लाम की ताकत) के नाम से पुकारा जाने लगा। मस्ज़िद के आसपास के स्थानों में आज भी जैन और हिन्दू मंदिर के अवशेष स्थल बचे हुए हैं।
Remains of Jain Temple, PC- Shubham Gupta लौह स्तंभ |
लौह स्तंभ कुतुब-उल इस्लाम मस्ज़िद परिसर में मौजूद एक लौह स्तंभ खड़ा हुआ है। इस स्तंभ पर गुप्तकाल की लिपि में लिखा हुआ संस्कृत में लेख है। पुरातत्वविदों ने लिपि के आधार पर इसके चौथी शताब्दी का बताया है। अभिलेख में कहा गया है कि इसका निर्माण गुप्त वंश के शासक समुद्रगुप्त द्वितीय की याद में बनवाया गया था।
Iron Pillar, PC - Shubham Gupta |
इस स्तंभ के ऊपर एक गहरा छेद इस बात की ओर इशारा करता है कि इसका एक अतिरिक्त भाग शायद गरुड़ की मूर्ति होगी जो विष्णु के ध्वज के रूप में विष्णु मंदिर का संकेत देने के लिए उस पर लगाई गई हो। यह स्पष्ट हो चुका है कि इस स्तंभ को किसी और स्थान से लाया गया है क्योंकि अभी तक की खुदाई के दौरान चौथी शताब्दी के और कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुए हैं।
इस स्तंभ को तोमर राजा अनंगपाल द्वारा लाया गया था लेकिन इस बात का अभी तक पता नहीं चल पाया है कि वह इसे कहां से लाया था। इस लौह स्तंभ का वज़न 6000 किलोग्राम है और इसकी ऊंचाई 7 मीटर से भी ज़्यादा है।
स्तंभ में किस तरह की धातु का प्रयोग हुआ है जिसके कारण 1600 वर्षों से ज़्यादा बीत जाने के बावजूद इसमें जंग नहीं लगी है, यह रहस्य का विषय बना हुआ है। कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, 1961 में स्तंभ के रासायनिक परीक्षण से पता चला कि यह स्तंभ शुद्ध इस्पात का बना हुआ है और इस इस्पात में कार्बन की मात्रा काफी कम है।
इल्तुतमिश का मकबरा
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कुतुबुद्दीन के उत्तराधिकारी इल्तुतमिश के मकबरे का निर्माण स्वयं इल्तुतमिश ने साल 1235 में करवाया था। यह इस्लामी-भारतीय वास्तुकला के विकास के उस चरण की मिसाल है जहां निर्माताओं ने मंदिरों को नष्ट करके उनकी सामग्री लेना छोड़ दिया था।
A view of Iltutmish Tomb, PC- Shubham Gupta |
यह माना जाता है कि यहां जो पहले गुम्बद बनाया गया था वो गिर गया और इसके स्थान पर फिरोज़ शाह तुगलक ने दूसरा गुम्बद बनवाया लेकिन यह भी नहीं बचा। बाहर से देखने पर यह मकबरा साधारण सा लगता है लेकिन अंदर इसमें लाल बलुआ पत्थर, संगमरमर और नक्काशी का प्रयोग किया गया है। इन नक्काशियों में कई चीजें जैसे चक्र, घंटी, फीता, जंजीर, कमल और हीरा बने हुई हैं। इसके प्रमुख अलंकरणों को देखकर फर्ग्युसन ने कहा था, "यह इस्लामी उद्देश्यों के लिए हिन्दू कला के प्रयोग किए जाने का एक शानदार उदाहरण है।"
अलाई दरवाज़ा
यह कुतुब-उल इस्लाम मस्ज़िद का दक्षिणी फाटक है जिसका विस्तार अलाउद्दीन खिलजी (1296-1316) ने किया था। इस प्रवेश द्वार को बनाने में लाल बलुआ पत्थर का प्रयोग हुआ है। इसे कुव्वत-उल-इस्लाम मस्ज़िद के प्रवेशद्वार के उपयोग किया जाता है। यह संरचना कुतुब मीनार के पीछे स्थित है।
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अलाई दरवाजा को 'कुश्क-ए-शिकार' भी कहा जाता है। कई इतिहासकारों के अनुसार, अलाई दरवाजा प्रारम्भिक तुर्की कला का एक श्रेष्ठ नमूना है।
अलाई मीनार
Alai Minar, PC- Shubham Gupta |
यह मीनार भी कुतुब परिसर में ही स्थित है। इसके निर्माण के पीछे अलाउद्दीन खिलजी की योजना थी कि कुतुबमीनार से दोगुनी ऊंचाई की अलाई मीनार बनवाई जाए। लेकिन इसका निर्माण कार्य 24.5 मीटर पर प्रथम मंजिल पर कुछ कारणों से रुक गया। साथ ही, अलाउद्दीन ने कुतुब-उल इस्लाम मस्ज़िद का आकार भी दोगुना कर दिया था।
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इसके अलावा कुतुब परिसर में अलाउद्दीन खिलजी का मदरसा और मकबरा भी स्थित है।
Reference- http://asi.nic.in/publications/Delhi%20aur%20Uska%20Anchal.pdf
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