Monday, October 14, 2013

न्यू मीडिया पर बढ़ती निर्भरता और निजता का अधिकार

न्यू मीडिया पर बढ़ती निर्भरता और निजता का अधिकार

धरती पर एक नए राष्ट्र का उदय हुआ है, जिसकी कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं हैं | इस राष्ट्र की आयु अभी 10 वर्ष से भी कम है | 2012 में इसकी जनसंख्या 1 अरब को पार कर चुकी थी, जो  इसे चीन और भारत के बाद तीसरे सबसे अधिक आबादी वाले देश का दर्जा प्रदान करती है | इस राष्ट्र का अस्तित्व केवल सायबर स्पेस में  है | सम्पूर्ण विश्व में न्यू मीडिया अर्थात सोशल नेटवर्किंग साइट (फ़ेसबुक, ट्विटर, लिंकर, लिंक्डइन, पिंटेरेस्ट, माइस्पेस, साउंडक्लाउड) यू ट्यूब, ब्लॉग, मेसेजिंग एप्स  ने दुनिया में  शक्ति के केंद्र को बदल कर रख दिया है | 
                                     एशिया, जो फिलहाल दुनिया की आबादी का आधा हिस्सा है, में इंटरनेट का विकास पिछले बारह वर्षों में 840 प्रतिशत से अधिक हुआ है | विश्व भर में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों में एशिया की भागीदारी करीब 45 प्रतिशत है और 2012 के मध्य तक इसमें भारत की हिस्सेदारी 12 प्रतिशत से कम थी | यह सच है कि न्यू मीडिया ने सूचनाओं का लोकतंत्रिकरण किया है | किन्तु इसके साथ ही यह भी उतना ही सही है कि इसने ऐसे दैत्यों को भी जन्म दिया है जो घात लगाए बैठे रहते हैं | साइबर-बुलिंग (साइबर बदमाशी), साइबर स्टाकिंग (साइबर पीछा करना), अफवाहें फैलाना जैसे दुष्कर्म इस भयावह दैत्य के मामूली नमूने हैं |
                                  सोशल मीडिया के द्वारा सार्वजनिक जीवन के जाने-माने व्यक्तियों की प्रतिष्ठा को भी आघात पहुंचाया है | निजता, कॉपीराइट और अन्य मानवाधिकार क़ानूनों का अतिक्रमण किया  है | सोशल मीडिया ने व्यक्तिगत रूप से मिलने की प्रवत्ति पर विपरीत असर डाला है | इंटरनेट एंड मोबाइल ऐसोसिएशन की रिपोर्ट के मुताबिक शहरी क्षेत्रों में सोशल मीडिया के प्रयोक्ताओं की संख्या 6.2 करोड़ पर पहुँच चुकी थी | शहरी भारत में प्रत्येक चार में से तीन व्यक्ति सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं | फ़ेसबुक प्रमुख बेबसाइट है जिसे भारत में सभी सोशल मीडिया प्रयोक्ताओं के 97 प्रतिशत द्वारा एक्सिस किया जाता है | भारतीय हर रोज सोशल मीडिया पर लगभग 30 मिनट व्यतीत करते हैं | इन इस्तेमाल कर्ताओं में अधिकतम युवा (84 प्रतिशत ) और कॉलेज जाने वाले विध्यार्थी (82 प्रतिशत ) हैं | कॉमस्कोर की वार्षिक रिपोर्ट, ‘2013 इंडिया डिजिटल फ़्यूचर इन फोकसके अनुसार भारत में घरों और दफ्तरों से करीब सात करोड़ 39 लाख यूज़र्स इंटरनेट का प्रयोग कर रहे हैं |
                               इन आंकड़ो को 2011 की जनगणना के आंकड़ों के साथ मिला कर देखना बड़ा दिलचस्प है | भारत की 50 प्रतिशत आबादी 25 वर्ष से अधिक आयु और 65 प्रतिशत से अधिक आबादी 35 वर्ष से कम आयु की है | युवाओं के पास न्यू मीडिया की पहुँच बहुत ज्यादा है | आज न्यूज़ के लिए भी आपको सोशल मीडिया पर एक्टिव होना पड़ेगा, नहीं तो आपके पास सूचना नहीं आ पाएगी | आज के समय में ट्विटर और फ़ेसबुक सूचना का एक बहुत बड़ा सोर्स हैं | लोग  सोशल मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाने वाले अभियानों में हिस्सा लेते हैं , प्रोटेस्ट में हिस्सा लेते हैं | न्यू मीडिया के ऊपर अधिक निर्भर रहने पर समस्या यह है कि इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है | ये एक वर्चुअल (काल्पनिक) दुनिया है | यहाँ तक की टीन ऐजर्स भी सोशल मीडिया में बहुत एक्टिव हैं | वे कोड भाषा का इस्तेमाल करते हैं | हम रोज का लगभग समय न्यू मीडिया पर ही बिता रहे हैं | कहने को हमारी दुनिया विस्तृत होती जा रही है लेकिन वास्तव में हम एक कम्प्युटर, इंटरनेट की  दुनिया में  सिमटते जा रहे हैं | यहाँ तक की मुख्य मीडिया (टीवी, रेडियो, समाचार-पत्र ) की धारा को सोशल मीडिया ने बहुत अधिक प्रभावित किया है |
                              सर्वे से पता चलता है कि शहरों में रहने वाले 17 साल से कम उम्र के 60 फीसदी बच्चों के पास स्मार्टफोन हैं |   भारत में फ़ेसबुक और चैट के दीवाने करोड़ो किशोर कोड से जुड़ी हुई एक नयी भाषा सीख रहे हैं, एक ऐसी जुबान जिससे उनके माता-पिता ही नहीं बल्कि कभी कभी उनसे ठीक पहले की पीढ़ी भी अंजान है | कई कोड शब्द प्रयोग में लाये जा रहे हैं जैसे RIDNEK (शर्मसार),LEGAL(सेक्स करने की इजाजत है),PAW( पैरेंट्स आर वचिंग),PRON(पॉर्न) | टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस के जेन वाइ सर्वेक्षण 2012-2013 के नतीजे बताते हैं कि 1996 के बाद जन्मी पीढ़ी में से करीब 74 फीसदी फोन पर बात करने के बजाय सोशल मीडिया को पसंद करते हैं और सर्वेक्षण में शामिल 92 फीसदी के लिए फ़ेसबुक पहला  माध्यम  है |

                                           अमेरिका के इलेक्ट्रॉनिक खु़फ़िया कार्यक्रम प्रिज्मका भण्डाफोड़ करके उसके अपने ही नागरिक एडवर्ड स्नोडेन ने जहाँ एक ओर वैश्विक बिरादारी को सचेत कर दिया वहीं दूसरी ओर निजता के अधिकार सम्बन्धी बहस को एक नया आयाम प्रदान किया है। गार्जियन और वॉशिंगटन पोस्ट समाचारपत्रों में हुए इस खुलासे से यूरोप समेत विभिन्न महाद्वीपों के देश अमेरिका के इस संदेहास्पद कृत्य से आशंकित हो उठे हैं। अमेरिका की यूरोपीय देशों के साथ होनेवाली अबतक की सबसे बड़ी मुक्त व्यापार संधि अधर में लटकती दिख रही है। कई देश अमेरिका से इस बाबत स्पष्टीकरण और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति न होने का आश्वासन चाह रहे हैं। हालाँकि डाटा चुराने का काम केवल अमेरिका ही नहीं कर रहा है बलिक फ्ऱांस और इग्लैण्ड समेत विभिन्न देश भी इस गतिविधि में संलिप्त हैं या संलिप्तता हेतु तैयारी कर रहे हैं। अभी हाल ही में फ्ऱांस के अख़बार ली मोन्डेने रहस्योद्घाटित किया कि वहाँ की खु़फ़िया मशीनरी भी चोरी-छुपे इस कार्य में मसरूफ़ है। उदारवादी लोकतंत्र इंग्लैण्ड की खु़फ़िया एजेंसी जीसीएचक्यू यद्यपि प्रत्यक्षतः अपने नागरिकों के सम्प्रेषण और टिप्पणियों की निगरानी नहीं कर रही तथापि अमेरिका के समपाश्र्व कार्यक्रम से डाटा का आदान-प्रदान कर रही है। प्राइवेसी इण्टरनैशनल ने इसके ख़िलाफ़ वहाँ के अधिकरण में एक याचिका भी दाखिल की है।
               
                                   यह दुःखद है कि भारतीय विदेशमंत्री सलमान ख़ुर्शीद अमेरिकी सर्विलांस प्रोग्राम को जासूसी नहीं मानते हैं। आसियान देशों की बैठक में भाग लेने ब्रुनेई गये ख़ुर्शीद ने कहा कि अमेरिका ने सूचनाएँ अपनी सुरक्षा के लिए हासिल की। ख़ुर्शीद द्वारा अमेरिका के सुर में सुर मिलाने के सिवा और कोई चारा भी नहीं है क्योंकि भारत ने स्वयं सन् 2011 में केन्द्रीय निगरानी प्रणाली ( सी.एम.एस. ) की उद्घोषणा की थी। यह प्रणाली नब्बे करोड़ फ़ोन ग्राहकों और करोड़ों इण्टरनेट प्रयोगकर्ताओं की जाँच-पड़ताल कर सकती है। अर्थात् हमारी किसी से फ़ोन पर व्यक्तिगत् बातचीत, ईमेल से भेजे गये संदेश, सोशल नेटवर्किंग-वीडियो शेयरिंग-वेबलॉग-माइक्रो ब्लॉगिंग साइट आदि पर डाली गयी अन्तर्वस्तु, इण्टरनेट सर्च आदि का विवरण हमारे बिग बॉस रख सकते हैं। खेदजनक है कि निर्णय-निर्माण प्रक्रिया में आम जनता की भागीदारी की दुहाई देनेवाली सरकार ने निजता से ताल्लुकात रखनेवाले इस कार्यक्रम के सम्बद्ध में कोई सार्वजनिक चर्चा तक नहीं की। 
                                  
                                   सवाल उठता है कि सम्प्रति सरकारें सामाजिक सुरक्षा के मद में ख़र्च की कटौती करके बड़े पैमाने पर डाटाविलांस के भारी-भरकम बजट का बोझ खु़शी से क्यों उठाती हैं ! कारण स्पष्ट है कि मोबाइल फ़ोन और न्यू मीडिया की अन्तर्वैयक्तिक व जन सम्प्रेषणीयता लोगों को लामबंद करने और इस प्रकार सामाजिक गत्यात्मकता लाने में महती भूमिका निभा रही है। उदारवादी निरंकुश सरकारों को गवारा नहीं कि यह मोर्चेबंदी उनके लिए परेशानी का सबब बने। अमेरिका में नवउदारवादी नीतियों के खि़लाफ़ हुए वॉल स्ट्रीट पर क़ब्ज़ा करोआन्दोलन, पश्चिमी एशियाई व अरब देशो में अरब वसंत, भारत में अण्णा हज़ारे द्वारा आहूत भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन, 16 दिसम्बर की घटना के बाद उठा जनाक्रोश आदि विभिन्न दृष्टांतों में अन्तक्र्रियात्मक न्यू मीडिया की ख़ासी भूमिका रही। 
                            
                                  अब ज़िंदगी उतनी प्राइवेट नहीं रही | जब आपका किसी ट्वीट का या फ़ेसबुक पर जवाब देते हैं तो आपको जरा भी अंदाजा नहीं होता कि एक दिन सारी दुनिया इसे देख-पढ़ लेगी | यह एक बुलबुले जैसा है, जिसमें आप अपनी ज़िंदगी को प्राइवेट और सुरक्षित मानते हैं, असल में ऐसा है नहीं | यदि आप फ़ेसबुक की निजता अधिकार संबंधी बातों को गौर से पढ़ेंगे तो उसमें साफ साफ लिखा है कि जो भी आप फ़ेसबुक पर अपडेट करेंगे या शेयर करेंगे वो फ़ेसबुक की संपत्ति होगी |
                                  हाल ही में हैदराबाद में एक 14 वर्षीया स्कूली छात्रा उस समय हैरान रह गयी, जब फ़ेसबुक पर उसे बाइसेक्सुअल और लेस्बियन बताने वाले संदेशों की बौछार होने लगी | असल में उसने अपनी एक खास सहेली को गले लगाने के तस्वीर फ़ेसबूक पर डाल दी थी | उसने यह तस्वीर हटा दी लेकिन फिर भी उस पर गंदे कमेंट्स बरसते   रहे | इस सदमे से उबरने के लिए उसे काउंसलर की मदद लेनी पड़ी |
                                   फ़ेसबुक, ट्विटर दोस्तों, रिश्तेदारों और परिचितों से जुड़े रहने का साधन बन सकते हैं  या आपकी मनोभावनाओं को व्यक्त करने का ज़रिया भी, लेकिन सावधान रहें कि कहीं सोशल मीडिया वेबसाइट आपके रोज़गार की संभावनाओं में रूकावट न बन जाएं | ऐसा ही एक और मामला सामने आया था | पिछले साल सरकारी विमान कंपनी एयर इंडिया के दो कर्मचारियों के निलंबन का मामला सामने आया जिन्हें बारह दिनों की पुलिस हिरासत काटनी पड़ी थी क्योंकि उन्होंने फ़ेसबुक पर कुछ कमेंट पोस्ट किए थे |

                                      निजी तसवीरों और गतिविधियों की जानकारी से उन्हें भावनात्मक रूप से चोट पहुँच सकती है | फ़र्स्ट मंडे नाम की एक ऑनलाइन पत्रिका के सर्वेक्षण से पता चला कि अमेरिका में यूनिवर्सिटी के पहले साल के 1,115 छात्रों के समूहों में से सिर्फ 26 प्रतिशत ने फ़ेसबुक पर अपनी प्राइवेसी सेटिंग्स नियमित रूप से अपडेट की और उस पर नज़र रखी | सर्वे में जवाब देने वाले अधिकतर नोजवानों को प्राइवेसी के बारे में या तो जानकारी नहीं थी या फिर उन्हें इसमें दिलचस्पी नहीं थी |
                                         अंतता हम कह सकते हैं कि अब हमारी सोशल मीडिया पर कोई निजता  नहीं रही | सरकार की आँखें हमें देख रही हैं | न्यू मीडिया पर बढ़ती निर्भरता को आलोचनात्मक तरीके के विश्लेषण करना  चाहिए | जितनी भी सूचना शेयर की जा रही है क्या वह सूचना सही है या सही है तो आपने उसकी जांच के लिए क्या किया ? मुज्जफरनगर के मामले में दैनिक जागरण का  फेक पेपर बना कर उसमें लिख दिया था की मुसलमानों द्वारा हिंदुओं का सरेआम कत्लेआम जारी | ऐसी ही अफवाह बैंगलोर में उत्तर पूर्वी राज्यों के विध्यार्थियों के लिए उड़ाई गयी थी | ऐसे समय में हमारा खुद का यह दायित्व बनता है कि हम सोच समझ कर पोस्ट को शेयर करे या लाइक करें |





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