Sunday, October 05, 2014

भारतीय जनता : स्वास्थ्य छुआछूत की शिकार

भारतीय जनता : स्वास्थ्य छुआछूत की शिकार



भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र में स्थिति बहुत ही खराब है। भारत में इलाज, दवाइयाँ अभी भी कई लोगों की पहुँच से दूर है। ऐसे में आप सोचिए कि अभी आप कैंसर की दवा ग्लीवेक (Glevec) 8500 में खरीद रहे हों और वही दवा के दाम अब 1,08,000 हो जाए, तो आपका तो बजट ही पूरी तरह से गड़बड़ा जाएगा, आप शायद एक बार सोचे कि इलाज कराना नामुमकिन है। भारत में ऐसा कई परिवारों के साथ हो जाएगा।

नरेंद्र मोदी सरकार ने 30 मई, 2013 को एनपीपीए(दवा मूल्य प्राधिकरण, National Pharmaceutical Pricing Authority) को जीवन रक्षक दवाओं के दाम नियंत्रित करने के अधिकार को वापस लेने को कहा है। रसायन और उर्वरक मंत्रालय ने एनपीपीए को जीवन रक्षक दवाओं के दाम नियंत्रित करने का अधिकार दिया था। जीवन रक्षक दवाओं के दाम नियंत्रण मुक्त करने से 108 जीवन रक्षक दवाओं के दाम आम आदमी की जेभ पर बहुत भारी पड़ जाएंगे। इन दवाओं में कैंसर, दमा, एड्स, टीबी, ह्रदय रोग, रक्तचाप, मधुमेह, मलेरिया आदि दवाएं शामिल की गयी थी। यूपीए सरकार ने जीवन रक्षक दवाओं के मूल्य निर्धारण के लिए गाइडलाइन जारी की थी। यूपीए सरकार ने दवा कीमत नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) 2013 को अधिसूचित कर दिया था। नए आदेश के तहत, एनपीपीए को जीवन रक्षक दवाओं के नियमन का अधिकार मिल गया था।

मोदी सरकार के इस आदेश से भारत ही नहीं, भारत पर निर्भर कई अफ्रीकन देशों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। भारत में मधुमेह (डाईबिटीज़) के 4.1 करोड़ मरीज, 4.7 करोड़ ह्रदय रोग के मरीज, 22 लाख ट्यूबरकुलोसिस (टी.बी.) के मरीज, कैंसर के 11 लाख मरीज, एड्स के 25 लाख मरीज, मलेरिया के मरीज 9.75 लाख हैं।  

मोदी सरकार का यह निर्णय किसी भी तरह से समझ नहीं आ रहा है। एक तरफ मोदी सरकार कहती है कि गरीबों के हितों के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा। गरीबी दूर करना सरकार की प्राथमिकता है, ऐसा सरकार का कहना है। यदि वास्तव में सरकार गरीबी दूर करना चाहती है, देश को विकसित करना चाहती है तो उसके लिए लोगों को उचित स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हों, उचित दामों पर दवाइयाँ उपलब्ध हों, ये हर सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। गरीबी तभी दूर होगी, जब लोगों के स्वास्थ्य में सुधार आएगा। कहा भी गया है कि जिस देश में लोग जितने ज्यादा स्वस्थ्य होंगे, वह देश उतने ही जल्दी विकास करेगा।

ऐसे में मोदी सरकार के इस निर्णय पर काफी सवाल उठ रहे हैं कि आखिरकार मोदी सरकार को जीवन रक्षक दवाइयों के मूल्य को नियंत्रण मुक्त क्यों करना पड़ा? मोदी सरकार की इसके पीछे क्या मंशा रही होगी? एनपीपीए (दवा मूल्य प्राधिकरण) के अधिकार को सीमित करने का अधिकार का आदेश 22 सितंबर, 2014  को आया था, जो कि मोदी की अमेरिका यात्रा के मात्र तीन पहले ही आया था। ऐसे में काँग्रेस बीजेपी के ऊपर बड़ी-बड़ी दवाई कंपनियों को लाभ पहुँचाने का आरोप लगा रही है। उनके इस आरोप में क्या वास्तव में सच्चाई है? क्या वास्तव में मोदी दवाई कंपनियों के लिए लाल कार्पेट बिछाना चाहते हैं या फिर अमेरकी कंपनियों का भारत के ऊपर दवाई उद्योग को लेकर बढ़ता दवाब है? क्या सरकार के इस कदम के पीछे  बड़ी दावा कंपनियों का हाथ है? इन सब सवालों की तह तक जाने के लिए हमें 1 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नोवर्टिस कंपनी के लिए सुनाये गए ऐतिहासिक फैसले को गौर से पढ़ना होगा और उस समय दवा कंपनियों की मांग को समझना होगा। उस समय कई बड़ी दवा कंपनियों ने आरोप लगाया था कि भारत में दवा के क्षेत्र में निवेश करना अब मुश्किल होगा। ऐसे में भारत सरकार के ऊपर लगातार विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी दवाब बन रहा था कि इन नियमों में ढील दी जाए। एक महत्त्वपूर्ण बात ये भी है कि अधिकतर बड़ी–बड़ी दवा कंपनियों के मुख्यालय अमेरिका में ही स्थित हैं। ऐसे में इस तर्क की और भी पुष्टि हो जाती है कि अमेरिकी दवा कंपनियों का लगातार दवाब बढ़ता जा रहा था। सरकार के इस कदम के पीछे निश्चय ही बड़ी दवा कंपनियों का हाथ है। निश्चित ही, बड़ी  दवा कंपनियाँ सरकार के इस फैसले से बहुत खुश हैं। दवा कंपनियों का तर्क है कि मुक्त बाज़ार में कोई दवा का मूल्य निर्धारण कैसे कर सकता है? यदि उनके इस तर्क को मान भी लिया जाए तो भी एक नियंत्रण बोर्ड की सख्त जरूरत है। दवा कंपनियाँ अपने मुनाफे के हिसाब से काम कर रही हैं। ऐसे में कई बार ये संभावनाएं हो जाती हैं कि दवा कंपनियों ने आपस में ही किसी दवा के दाम निश्चित कर लिए हों, तो ऐसे में एनपीपीए (दवा मूल्य प्राधिकरण) की और भी सख्त जरूरत हो जाती है। मोदी सरकार लाल फीताशाही से हटकर लाल कार्पेट तक जाना चाहती है, लेकिन किसके हितों की बलि चढ़ाकर? यह सवाल बहुत गंभीर है। योजना आयोग के उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समूह की सार्वजनिक स्वास्थ्य क्षेत्र की रिपोर्ट कहती है कि भारत का विविधतापूर्ण घरेलू जेनरिक उद्योग बहुराष्ट्रीय कंपनियों के अधिग्रहण के कारण बहुत अधिक खतरे में है।

अगर इस निर्णय के प्रभाव की बात करें तो जनता पर इसका सामाजिक, आर्थिक रूप से बहुत अधिक प्रभाव पड़ेगा। एक साधारण सा नियम है कि जब भी घर में कोई मलेरिया, कैंसर, टीबी, एड्स, डाईबिटीज़ से पीड़ित होता है तो उसका प्रभाव आर्थिक रूप से पूरे परिवार पर पड़ता है। ऐसे में दवा के आसमान छूते दाम ऐसे परिवारों की हालत और भी खराब करेंगे। ऐसे में मुझे लगता है कि देश की करीब 80% जनता स्वास्थ्य छुआछूत का शिकार होगी। इस छुआछूत के कारण कई परिवार खत्म भी होंगे। जीवन रक्षक जैसी महत्त्वपूर्ण दवाओं के नियंत्रणमुक्त करने से नतीजा ये होगा कि ये दवाएं गंभीर बीमारियों के शिकार मरीजों की पहुँच से बाहर हो जाएंगी।

दवाओं के दाम बढ़े हुए इस निर्णय के बाद लगभग ये हो सकते हैं!
सरकार के निर्णय के बाद दवा के  बढ़े हुए दाम





Thursday, October 02, 2014

Paying Homage to Mahatma Gandhi

Paying Homage to Mahatma Gandhi


Mahatma Gandhi: The way of Truth & Love has always won.I am a Sikh, Muslim, Hindu, Christan & a Jew and so all of you.
-There is no beauty in the finest cloth.. If it makes hunger and unhappiness. clothes, wear it with dignity.
-Think,what you can do by living, that you can not do by dying.
-Roits is only madness.
-An eye for an eye only ends up making the whole world blind. 
-My dignity comes from following the principles, helping person.
-I have so much to learn about India. I want to find India.
-Make India proud of herself.
-People of villages are still like untouched.

-Meeraben said that I may be blinded by my love for him but i beleive when we most needed it. He offered the world a way out od madness but he doesn't see it neither does the world. 

The day When Mahatma Gandhi's "Shobha Yatra" rolled out, these following lines had been said by Media, The object of this massive tribute, died as he had always lived. A private man without wealth....without property...without official title or office. Mahatma Gandhi was not the commander of armies nor a rular of vast lands. he could not boast any scientific achievement or artistic gift... yet man...governments, dignitaries from all over the world... have joined hands today to pay homage...to this little brown man to the loincloth who led his country to freedom. in the words of "General George C. Marshall", the American secretary of the state :"Mahatma Gandhi has become the spokesman for the conscience of all mankind. he was a man who made humility and simple truth more powerful than empires." & "Albert Einstein added" Generations to come will scarce beleive that such a one as this..everin flash and blood, walked upon the earth. 

Some say that World is not made of Mahatma Gandhis. we are talking about the real world. In "Gandhi" movie last lines prove this wrong. "When I despair.. when I remeber...that all through history..the way of truth and love has been tyrants and murderes... and for a time, they can seem invincible but in the end, they always fall. Think of it.... Always.....!


Courtesy- Gandhi(1982)

Photo Courtesy- Google

Thursday, September 18, 2014

Deepika Padukone Cleavage Show: Think about some questions......



एक अखबार टाइम्स आफ़ इंडिया(इंटरटेनमेंट) ने दीपिका पादुकोण की एक फोटो लगाकर कहा"ओह माय गॉड, दीपिकाज क्लीवेज शो"। 
YES!I am a Woman.I have breasts AND a cleavage! You got a problem!!??
तो इसके जवाब में दीपिका ने तुरंत जवाब दिया और लिखा"yes, I am woman. I have breasts and cleavage; you got a problem?"इसके आगे उन्होंने ये भी लिखा कि"Supposedly India's leading newspaper and this is news”!!?

दीपिका ने ये जवाब देकर मीडिया की एक गन्दी तश्वीर को लोगों के सामने रखा है,लेकिन इस बात से कई सवाल उठाये जा रहे हैं। क्या ये दीपिका का वास्तव में गुस्सा था या फिर ये एक पीआर रणनीति थी ? उन्हें फिल्म के कुछ ही दिन पहले महिला सशक्तिकरण, महिला अधिकारों की बात याद क्यों आई? 

सिर्फ टी ओ आइ ही ऐसा अखबार नहीं है जो ये सब बातें परोसता है। हमारी अधिकतर मुख्यधारा की मीडिया एक तरह से ऑनलाइन वेब पोर्टल्स के माध्यम से "सॉफ्ट पोर्न पत्रकारिता"परोस रही है । आप मीडिया चैनल्स के वेब पोर्टल्स को देखें तो आपको खुद-ब-खुद समझ में आ जायेगा । मीडिया का कहना है कि इन ख़बरों से बहुत ज्यादा कमाई होती है , इसलिए हम ऐसा करते हैं । मेरी एक दोस्त ने मुझसे एक दिन ऐसी ही बातों पर कहा था "कि आजकल ये चैनल्स ऑनलाइन में क्या दिखा रहे हैं देखिये ये अभिनेत्री हुई उफ़ मुमेंट्स का शिकार और भी पता नहीं क्या-क्या?"दीपिका पादुकोण कोई पहली महिला नहीं है, जिन्होंने ये सब महसूस किया हो । जिस तरह से दीपिका ने मीडिया पर पलटवार किया, उसके कुछ ही देर बाद देश के कुछ नामी- गिनामी चैनल्स में कुछ इस तरह के प्रोग्राम चले-"देखिये पन्द्रह गुस्साई सेक्सी हीरोयेंस को।"एक चैनल ने दीपिका की कुछ फोटो  डालकर लिखा कि"what do you have to say about these pictures? 


अगर ये वास्तव में दीपिका की पीआर रणनीति का हिस्सा है, तो मैं इससे सहमत नहीं हूँ। दीपिका पादुकोण, जिनकी बॉलीवुड में इतनी सारी हिट, ब्लॉक -बस्टर्स फ़िल्में आ चुकीं हैं, वे इस तरह की घटिया पीआर रणनीति कैसे अपना सकती हैं? हालाँकि दीपिका के कई और भी फोटो शूट हैं, जो कि आपको गूगल पर सर्च करने पर मिल जायेंगे लेकिन उसमें और अभी में बहुत अंतर है। इस बार जिस तरह से लिखा गया"OMG, Deepika's cleavage Show"तो उस लिहाज से दीपिका का तुरंत उत्तर देना ये दर्शाता है ये उत्तर एक तात्कालिक उत्तर बिना किसी योजना के तहत परेशान होकर गुस्से में दिया गया था । जो लोग ये कह रहे हैं कि वे फाइंडिंग फैनी फिल्म का प्रमोशन करना चाहती हैं, इसलिए वे ये सब कर रही हैं तो इसका जवाब ये है कि दीपिका ने ट्विटर पर जवाब अपने ऑफिसियल ट्विटर हैन्डिल से दिया है । कुछ तर्क ये भी हैं कि दीपिका अभी ये सब क्यों बोल रही हैं, इससे पहले भी कई ऐसे फोटो शूट किये जा चुकें हैं । इस समय जिस तरह से लिखकर दीपिका को objectify किया गया वो पहले से बहुत बढ़कर है । यदि वे आज बोल रही हैं तो इसमें गलत क्या है? कुछ लोगों के हिसाब से तो दीपिका को बोलना ही नहीं चाहिए क्योंकि इससे पहले उन्होंने क्यों नहीं बोला?  लेकिन यहाँ यह देखना बहुत जरूरी है कि"जिस तरह से दीपिका ने मीडिया की एक गन्दी तस्वीर पर पलटवार किया है वह एक नए वाद-विवाद की ओर ले जाता है । यहाँ ये सवाल उठना भी लाजिमी है कि जिस तरह से दीपिका ने मीडिया के गंदे चेहरे पर प्रहार किया है लेकिन उनसे सवाल ये भी है कि "क्या वे अपनी फिल्म इंडस्ट्री के  खिलाफ ऐसे कदम उठाएंगी?"
I just read here in Malaysia about @deepikapadukone retort to cheap sensational journalism,well done girl.
Hats off to deepika Padukone fr standing up fr women's dignity. Objectification is not a compliment @deepikapadukone

Friday, September 05, 2014

भारत- आस्ट्रेलिया संबंध: नए ऊचाइयों की ओर

 PM NARENDRA MODI WITH AUSTRALIAN P.M. TONNY ABBOTT
भारत- आस्ट्रेलिया संबंध: नए ऊचाइयों की ओर
भारत और आस्ट्रेलिया के बीच एक समझौते “असैन्य परमाणु समझौता (civil nuclear deal)” पर हस्ताक्षर हुए हैं, जिसके तहत भारत अब आस्ट्रेलिया से यूरेनियम खरीद सकेगा | भारत ऐसा पहला देश होगा, जो कि परमाणु अप्रसार संधि( nuclear non proliferation treaty) पर हस्ताक्षर किए बिना आस्ट्रेलिया से यूरेनियम खरीद सकेगा | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक कदम बताया है | दोनों देशों के बीच चार समझौतों पर हस्ताक्षर हुए हैं |
1.   नाभिकीय ऊर्जा का शांतिपूर्ण कार्यों में प्रयोग करने के लिए सहयोग
2.   खेल के क्षेत्र में सहयोग
3.   जल संसाधन प्रबंधन(water resource management) के क्षेत्र में सहयोग
4.   तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग


                                            नरेंद्र मोदी ने आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबाट का स्वागत करते हुए कहा कि हमारे लिए आस्ट्रेलिया एक बेहतर रणनीतिक साझेदार है और हम आस्ट्रेलिया के साथ सम्बन्धों को और अच्छा करना चाहते हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलंबो प्लान की घोषणा की, जिसके तहत दोनों देशों की युवा शक्ति शिक्षा के क्षेत्र में और प्रगति कर सकेगी | इससे पहले  टोनी एबाट ने मुंबई में कहा था कि “ हम चाहते हैं कि हमारे यहाँ के छात्र भी ज्यादा से ज्यादा इस महान देश में आए और यहाँ ज्ञान प्राप्त करें |
                                              इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आस्ट्रेलिया के सम्बन्धों में सुरक्षा सहयोग, आतंकवाद, साइबर आतंक(cyber threat) जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ज़ोर दिया | नरेंद्र मोदी ने ये भी ऐलान किया कि वे जी-20 सम्मेलन के बाद नवंबर में आस्ट्रेलिया के दौरे पर जाएंगे | 28 वर्ष बाद यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय प्रधानमंत्री आस्ट्रेलिया दौरे पर जाएगा | समय और समय की जरूरत के हिसाब से आस्ट्रेलिया और भारत एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों को अच्छा करने पर ज्यादा ज़ोर दे रहे हैं |
                                             आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी ऐबाट ने कहा कि “हमने असैन्य परमाणु समझौता (civil nuclear deal) पर हस्ताक्षर किए हैं क्योंकि आस्ट्रेलिया का भारत में विश्वास है कि वह इसका सही क्षेत्र में सही तरीके से उपयोग करेगा जैसा कि उसने अभी तक प्रत्येक क्षेत्र में किया है | हम भारत को यूरेनियम देकर बहुत खुश हैं |”
                                              ऐसा नहीं है कि ये समझौता मोदी सरकार के कारण ही हुआ है | 2012 से ही लगातार दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर वार्ताएं चल रही थी और अंतत: ये संभव हो गया |  असैन्य परमाणु समझौता (civil nuclear deal) पर काँग्रेस नेता शकील अहमद का कहना है कि जो समझौता आज हुआ है , वह तो मनमोहन सरकार के समय ही संभव हो गया था |
                                             आस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु उपयोग के लिए भारत को यूरेनियम देने को तैयार हो गया | यानि कि अब भारत आस्ट्रेलिया से आयातित यूरेनियम का उपयोग बिजली, नाभिकीय रियेक्टर जैसे क्षेत्रों में हो सकेगा | आस्ट्रेलिया और भारत के बीच हुए करार से एशिया महाद्वीप में शक्ति संतुलन पर काफी प्रभाव पड़ेगा | नरेंद्र मोदी अभी कुछ ही दिन पहले जापान यात्रा पर गए थे , लेकिन वहाँ नाभिकीय समझौता नहीं हो पाया था |
                                             यदि पूरे विश्व में यूरेनियम की बात करें, तो पूरे विश्व का 40% यूरेनियम आस्ट्रेलिया के पास है | आस्ट्रेलिया, जिस देश में अभी तक कोई न्यूक्लियर पावर प्लांट नहीं है, वह दुनिया में आयात करने वाला सबसे बड़ा देश है | सरकारी सूत्रों के अनुसार, वित्त-वर्ष 2011/12 में आस्ट्रेलिया ने 7529 टन यूरेनियम का खनन किया था , जिसकी कीमत 782 मिलियन आस्ट्रेलियन डॉलर (A$782) के बराबर है |
                                               बात करते हैं असैन्य परमाणु संधि (Civil Nuclear Deal) से होने वाले फायदे की | भारत जैसे देश के लिए असैन्य परमाणु संधि होना देश के विकास के लिए बहुत आवश्यक है | आस्ट्रेलिया ने पहले भारत को यूरेनियम देने से मना कर दिया था | उसके पीछे आस्ट्रेलिया का तर्क था कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं | आस्ट्रेलिया ने उस समय ये भी सवाल उठाया था कि नाभिकीय सुरक्षा के लिए सुरक्षा मानक उचित हैं या नहीं | भारत ने NPT पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है क्योंकि इसमें बहुत अधिक खामियाँ हैं | यदि भारत इसमें हस्ताक्षर कर देता है, तो उसके परमाणु संसाधन बहुत सीमित हो जाएंगे | यह संधि भेदभाव पूर्ण है |  
 NPT & NON NPT MEMBERS

                                           परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty)  है क्या ? जब तक इसको समझ नहीं लेते हैं तब तक असैन्य परमाणु संधि (Civil Nuclear Deal) न होने के कारण समझ नहीं आएंगे |  परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से प्रयोग को बढ़ावा देने और परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों का एक नतीजा है | इसे 1970 में बनाया गया था, जिसका उद्देश्य था कि परमाणु हथियारों को पाँच देशों (अमेरिका, सोवियत संघ{आज का रूस}, चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस) देशों तक सीमित रखना, जिनके पास परमाणु हथियार थे और जो ये स्वीकार करते थे | चीन और फ़्रांस ने इस संधि पर शुरू में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, पर 1992 में इस संधि पर चीन और फ़्रांस ने हस्ताक्षर कर दिये | इस संधि पर 187 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं , हालांकि भारत, पाकिस्तान,उत्तर कोरिया और इसराइल ने अभी तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं | इस संधि की कई शर्ते हैं , जैसे कि यह गैर परमाणु देशों को न तो हथियार देंगे और न ही इन्हें हासिल करने में उनकी मदद करेंगे | हालांकि, उन्हें इस बात की इजाजत होगी कि वे परमाणु ऊर्जा शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए विकसित कर सकते हैं लेकिन वह भी वियना स्थित अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों की देखरेख में होगा


                                               भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निकाय लिमिटेड (Nuclear Power Corporation of India Limited) के अनुसार, भारत 20 छोटे , 4780 मेगा वाट क्षमता वाले नाभिकीय रियेक्टर  संचालित कर रहा है, जो कि कुल ऊर्जा खपत का 2-3.5% है | सरकार को आशा है कि 2032 तक नाभिकीय ऊर्जा क्षमता 63,000 मेगा वाट तक बढ़ जाए, जिसमें लागत लगभग 85 डॉलर बिलियन होगी | भारत में बिजली की आपूर्ति न हो पाने के कारण विकास कई स्थानों में अवरुद्ध हो गया है | भारत में 20 रियेक्टर में 10 अभी भी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA)  की निगरानी में हैं | इन रियेक्टर के अधिकतर यूरेनियम रूस और कजाकिस्तान से आता है | देश में इस समय बिजली के लिए परंपरागत स्रोत लगातार कम होते जा रहे हैं | कोयला जैसे परंपरागत स्रोतों पर निर्भर रहकर देश की बिजली जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता | हमारे देश में जल संसाधनों से भी उतनी बिजली नहीं मिल पा रही है | यदि जल संसाधनों की ओर ज्यादा बढ़ते हैं , तो उसमें पर्यावरणीय नुकसान बहुत अधिक है | भारत में बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए नाभिकीय ऊर्जा का योगदान 2-3.5% है, जबकि फ़्रांस में यही 73% है और दक्षिण कोरिया में 28% है |
                                                  अगर न्यूक्लियर पावर प्लांट की संख्या बढ़ेगी तो उससे कंपनियों के बीच प्रतियोगिता बढ़ेगी |  प्रतियोगिता बढ़ेगी तो न्यूक्लियर ऊर्जा सस्ती भी होगी | लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में न्यूक्लियर पावर महंगी होगी और न्यूक्लियर रियेक्टर के रख-रखाव में खर्चा बहुत अधिक आता है | लेकिन अगर संपोषणीय विकास(Sustainable Development) की बात करें तो उस मामले में यह ऊर्जा सबसे सस्ती बैठती है | इस समय भारत में फ़्रांस, रूस, अमेरिका और कई देशों की नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन करने वाली कंपनियाँ भारत आने को इच्छुक हैं | ऐसे में जब आपूर्तिकर्ता(Supplier) बहुत ज्यादा होंगे, तो ऊर्जा की कीमत उतनी ही गिरेगी, हालांकि ये सब होने में बहुत वक़्त लगेगा | ऐसे में टोनी ऐबाट की घोषणा भारत के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण मायने रखती है |
                                                यदि भारत और आस्ट्रेलिया के बीच होने वाले व्यापार के विकास की बात करें, तो पिछले कुछ वर्षों में इसमें लगातार बढ़ोत्तरी हुई है | एक दशक पहले भारत, आस्ट्रेलिया को निर्यात के आकड़ों के मामले में शीर्ष दस में नहीं था, लेकिन आज हम आस्ट्रेलिया के पांचवे बड़े निर्यातक देश हैं | व्यापारिक असंतुलन लगातार सुधार रहा है | भारत की कई कंपनियों जैसे टाटा कंसलटेंसी, इंफोसेसिस, महिंद्रा एयरोस्पेस आदि कंपनियों ने आस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में बहुत मात्रा में निवेश कर रखा है | आकड़ों की बात करें, तो  यह इस समय तक लगभग 11 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है | भारत और आस्ट्रेलिया के व्यापार 2003 में 5.1 बिलियन आस्ट्रेलियन डॉलर से बढ़कर 2013 में 15.2 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है | असैन्य परमाणु संधि हो जाने से भारत और आस्ट्रेलिया के बीच व्यापार और अधिक बढ़ेगा लेकिन इसमें आस्ट्रेलिया को लाभ होने की ज्यादा उम्मीदें हैं |
                                              मेलबर्न विश्वविद्यालय के आस्ट्रेलिया-इंडिया संस्थान के अनुसार, आस्ट्रेलिया भारत के व्यापारिक साझेदारी के पसंदीदा देशों में अमेरिका, जापान और सिंगापुर के बाद चौथे स्थान पर है |
                                                मोदी की पॉलिसी रडार में व्यावसायिक शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है | भारत में पिछली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के लिए कई प्रयास किए थे, लेकिन वे असफल हो गए थे | आस्ट्रेलियन विश्वविद्यालय भारत में शिक्षा के क्षेत्र में एक बड़ा बाजार देखते हैं |
                                                 भारत और आस्ट्रेलिया के हिन्द-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र(Indo-Pacific Region) पर साझा हित हैं | हिन्द-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र(Indo-Pacific Region) में चीन के बढ़ते दबदबे से कई देश चिंतित हैं | इसका संकेत हमें मोदी की जापन यात्रा में भी मिल जाता है, जिसमें मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का नाम लिए बिना ये कहा था कि “कुछ देश अभी भी 18वीं सदी की विस्तारवाद की नीति में विश्वास रखते हैं , लेकिन मेरा विश्वास विकासवाद की नीति में है | ऐसे में अमेरिका भी चीन से प्रतिद्वंदी के तौर पर एशिया महाद्वीप में भारत को खड़ा करना चाहता है, जिसके कारण 2008 में अमेरिका 2008 में अमेरिका भारत को शांतिपूर्ण कार्यों में परमाणु सहयोग देने में सहमत हो गया था |
                                                  अमिताभ मातो( डायरेक्टर, इंडिया-आस्ट्रेलिया संस्थान, प्रोफेसर{मेलबर्न विश्वविद्यालय और जे.एन.यू.}) का अपने लेख “The New Promise of India-Australia Relations” में कहना है कि पूर्व में भारत,जापान और अमेरिका के साथ आस्ट्रेलिया के सैन्य रिश्ते स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देते थे, लेकिन अपने हितों को देखते हुए, विश्व अर्थव्यवस्था में शक्ति के केंद्र को बदलने के कारण अब इन्हीं देशों को एक साथ आगे आना पड़ रहा है |
                                                    लेकिन इसको पूरा होने में वक़्त कितना लगेगा;  क्या भारत, आस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के हितों में टकराव नहीं होगा ? इस बात की कोई गारंटी नहीं है | यदि नाभिकीय सयन्त्र से ऊर्जा की बात करें , तो भारत में इसको लेकर संशय व्याप्त है | इसकी सुरक्षा को लेकर लोगों में डर व्याप्त है |  ऐसे में आस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु उपयोग के लिए भारत को यूरेनियम देने को तैयार हो गया है | अब आगे भारत को देखना है कि वो इन सभी संशय को दूर करने के लिए किस तरीके की रणनीति अपनाता है |


 साभार:
http://www.aljazeera.com/indepth/opinion/2014/09/new-promise-india-australia-rela-20149314139549494.html 
http://theconversation.com/abbotts-visit-to-take-australia-india-relations-beyond-cricket-31056,
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Australia-to-sign-civil-nuclear-deal-to-sell-uranium-to-India/articleshow/41614731.cms
PTI Input, BBC, MEA, International Relations- Dr. Tapan Biswal