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PM NARENDRA MODI WITH AUSTRALIAN P.M. TONNY ABBOTT |
भारत-
आस्ट्रेलिया संबंध: नए ऊचाइयों की ओर
भारत
और आस्ट्रेलिया के बीच एक समझौते “असैन्य परमाणु समझौता (civil nuclear deal)” पर हस्ताक्षर हुए हैं,
जिसके तहत भारत अब आस्ट्रेलिया से यूरेनियम खरीद सकेगा |
भारत ऐसा पहला देश होगा, जो कि परमाणु अप्रसार संधि( nuclear non proliferation treaty) पर हस्ताक्षर किए बिना आस्ट्रेलिया से यूरेनियम
खरीद सकेगा | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे ऐतिहासिक कदम
बताया है | दोनों देशों के बीच चार समझौतों पर हस्ताक्षर हुए
हैं |
1.
नाभिकीय
ऊर्जा का शांतिपूर्ण कार्यों में प्रयोग करने के लिए सहयोग
2.
खेल के
क्षेत्र में सहयोग
3.
जल
संसाधन प्रबंधन(water resource management) के क्षेत्र में सहयोग
4.
तकनीकी
शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में सहयोग
नरेंद्र मोदी ने आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री टोनी एबाट का स्वागत करते हुए
कहा कि हमारे लिए आस्ट्रेलिया एक बेहतर रणनीतिक साझेदार है और हम आस्ट्रेलिया के
साथ सम्बन्धों को और अच्छा करना चाहते हैं | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोलंबो प्लान की
घोषणा की, जिसके तहत दोनों देशों की युवा शक्ति शिक्षा के
क्षेत्र में और प्रगति कर सकेगी | इससे पहले
टोनी एबाट ने मुंबई में कहा था कि “ हम चाहते हैं कि हमारे यहाँ के छात्र
भी ज्यादा से ज्यादा इस महान देश में आए और यहाँ ज्ञान प्राप्त करें |
इसके अलावा प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने आस्ट्रेलिया के सम्बन्धों में सुरक्षा सहयोग,
आतंकवाद, साइबर आतंक(cyber threat) जैसे महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर ज़ोर दिया |
नरेंद्र मोदी ने ये भी ऐलान किया कि वे जी-20 सम्मेलन के बाद नवंबर में
आस्ट्रेलिया के दौरे पर जाएंगे | 28 वर्ष बाद यह पहली बार होगा जब कोई भारतीय
प्रधानमंत्री आस्ट्रेलिया दौरे पर जाएगा | समय और समय की जरूरत के हिसाब से आस्ट्रेलिया और
भारत एक दूसरे के साथ अपने सम्बन्धों को अच्छा करने पर ज्यादा ज़ोर दे रहे हैं |
आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री
टोनी ऐबाट ने कहा कि “हमने असैन्य परमाणु समझौता (civil nuclear deal) पर हस्ताक्षर किए हैं क्योंकि आस्ट्रेलिया का भारत
में विश्वास है कि वह इसका सही क्षेत्र में सही तरीके से उपयोग करेगा जैसा कि उसने
अभी तक प्रत्येक क्षेत्र में किया है | हम
भारत को यूरेनियम देकर बहुत खुश हैं |”
ऐसा नहीं है कि ये समझौता मोदी सरकार के कारण ही
हुआ है | 2012 से ही लगातार दोनों देशों के बीच इस मुद्दे पर वार्ताएं
चल रही थी और अंतत: ये संभव हो गया | असैन्य
परमाणु समझौता (civil nuclear deal) पर काँग्रेस नेता शकील अहमद का कहना है कि जो
समझौता आज हुआ है , वह तो मनमोहन सरकार के समय ही संभव हो गया था |
आस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु उपयोग के लिए भारत को
यूरेनियम देने को तैयार हो गया | यानि कि अब भारत आस्ट्रेलिया से आयातित यूरेनियम
का उपयोग बिजली, नाभिकीय रियेक्टर जैसे क्षेत्रों में हो सकेगा |
आस्ट्रेलिया और भारत के बीच हुए करार से एशिया महाद्वीप में शक्ति संतुलन पर काफी
प्रभाव पड़ेगा | नरेंद्र मोदी अभी कुछ ही दिन पहले जापान यात्रा पर
गए थे , लेकिन वहाँ नाभिकीय समझौता नहीं हो पाया था |
यदि पूरे विश्व में यूरेनियम की बात करें, तो पूरे विश्व का 40%
यूरेनियम आस्ट्रेलिया के पास है | आस्ट्रेलिया, जिस देश में अभी तक कोई न्यूक्लियर पावर प्लांट
नहीं है, वह दुनिया में आयात करने वाला सबसे बड़ा देश है |
सरकारी सूत्रों के अनुसार, वित्त-वर्ष 2011/12 में आस्ट्रेलिया ने 7529 टन
यूरेनियम का खनन किया था , जिसकी कीमत 782 मिलियन आस्ट्रेलियन डॉलर (A$782) के बराबर है |
बात करते हैं असैन्य परमाणु संधि (Civil Nuclear Deal) से होने वाले फायदे की |
भारत जैसे देश के लिए असैन्य परमाणु संधि होना देश के विकास के लिए बहुत आवश्यक है
| आस्ट्रेलिया ने पहले भारत को यूरेनियम देने से मना कर दिया था |
उसके पीछे आस्ट्रेलिया का तर्क था कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं |
आस्ट्रेलिया ने उस समय ये भी सवाल उठाया था कि नाभिकीय सुरक्षा के लिए सुरक्षा
मानक उचित हैं या नहीं | भारत ने NPT पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया है क्योंकि
इसमें बहुत अधिक खामियाँ हैं | यदि भारत इसमें हस्ताक्षर कर देता है,
तो उसके परमाणु संसाधन बहुत सीमित हो जाएंगे | यह संधि भेदभाव पूर्ण है |
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NPT & NON NPT MEMBERS |
परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) है क्या ?
जब तक इसको समझ नहीं लेते हैं तब तक असैन्य परमाणु संधि (Civil Nuclear Deal) न होने के कारण समझ नहीं आएंगे |
परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non Proliferation Treaty) परमाणु तकनीक के शांतिपूर्ण ढंग से प्रयोग को
बढ़ावा देने और परमाणु हथियारों का विस्तार रोकने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों
का एक नतीजा है | इसे 1970 में बनाया गया था,
जिसका उद्देश्य था कि परमाणु हथियारों को पाँच देशों (अमेरिका,
सोवियत संघ{आज का रूस}, चीन, ब्रिटेन, फ़्रांस) देशों तक सीमित रखना,
जिनके पास परमाणु हथियार थे और जो ये स्वीकार करते थे |
चीन और फ़्रांस ने इस संधि पर शुरू में हस्ताक्षर करने से मना कर दिया,
पर 1992 में इस संधि पर चीन और फ़्रांस ने हस्ताक्षर कर दिये |
इस संधि पर 187 देशों ने हस्ताक्षर किए हैं , हालांकि भारत, पाकिस्तान,उत्तर कोरिया और इसराइल ने
अभी तक इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं | इस संधि की कई शर्ते हैं ,
जैसे कि यह गैर परमाणु देशों को न तो हथियार देंगे और न ही इन्हें हासिल करने में
उनकी मदद करेंगे | हालांकि, उन्हें इस बात की इजाजत होगी कि वे परमाणु ऊर्जा
शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए विकसित कर सकते हैं लेकिन वह भी वियना स्थित
अंतर्राष्ट्रीय परमाणु एजेंसी (IAEA) के निरीक्षकों की देखरेख में होगा |
भारतीय नाभिकीय ऊर्जा निकाय लिमिटेड (Nuclear Power Corporation of India Limited) के अनुसार, भारत 20 छोटे , 4780 मेगा वाट क्षमता
वाले नाभिकीय रियेक्टर संचालित कर रहा है,
जो कि कुल ऊर्जा खपत का 2-3.5% है | सरकार को आशा है कि 2032 तक नाभिकीय ऊर्जा क्षमता
63,000 मेगा वाट तक बढ़ जाए, जिसमें लागत लगभग 85 डॉलर बिलियन होगी |
भारत में बिजली की आपूर्ति न हो पाने के कारण विकास कई स्थानों में अवरुद्ध हो गया
है | भारत में 20 रियेक्टर में 10 अभी भी अंतर्राष्ट्रीय परमाणु
एजेंसी (IAEA) की
निगरानी में हैं | इन रियेक्टर के अधिकतर यूरेनियम रूस और कजाकिस्तान
से आता है | देश में इस समय बिजली के लिए परंपरागत स्रोत
लगातार कम होते जा रहे हैं | कोयला जैसे परंपरागत स्रोतों पर निर्भर रहकर देश
की बिजली जरूरतों को पूरा नहीं किया जा सकता | हमारे देश में जल
संसाधनों से भी उतनी बिजली नहीं मिल पा रही है | यदि जल संसाधनों की ओर
ज्यादा बढ़ते हैं , तो उसमें पर्यावरणीय नुकसान बहुत अधिक है |
भारत में बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए नाभिकीय ऊर्जा का योगदान 2-3.5% है,
जबकि फ़्रांस में यही 73% है और दक्षिण कोरिया में 28% है |
अगर न्यूक्लियर पावर प्लांट की संख्या बढ़ेगी तो उससे कंपनियों के बीच
प्रतियोगिता बढ़ेगी |
प्रतियोगिता बढ़ेगी तो न्यूक्लियर ऊर्जा सस्ती भी होगी |
लेकिन प्रारम्भिक अवस्था में न्यूक्लियर पावर महंगी होगी और न्यूक्लियर रियेक्टर
के रख-रखाव में खर्चा बहुत अधिक आता है | लेकिन अगर संपोषणीय विकास(Sustainable Development) की बात करें तो उस मामले में यह ऊर्जा सबसे सस्ती
बैठती है | इस समय भारत में फ़्रांस,
रूस, अमेरिका और कई देशों की नाभिकीय ऊर्जा उत्पादन करने वाली
कंपनियाँ भारत आने को इच्छुक हैं | ऐसे में जब आपूर्तिकर्ता(Supplier) बहुत ज्यादा होंगे, तो ऊर्जा की कीमत उतनी ही गिरेगी,
हालांकि ये सब होने में बहुत वक़्त लगेगा | ऐसे में टोनी ऐबाट की घोषणा भारत के लिए बहुत
महत्त्वपूर्ण मायने रखती है |
यदि भारत और आस्ट्रेलिया के बीच
होने वाले व्यापार के विकास की बात करें, तो पिछले कुछ वर्षों में इसमें लगातार बढ़ोत्तरी
हुई है | एक दशक पहले भारत, आस्ट्रेलिया को निर्यात के आकड़ों के मामले में
शीर्ष दस में नहीं था, लेकिन आज हम आस्ट्रेलिया के पांचवे बड़े निर्यातक
देश हैं | व्यापारिक असंतुलन लगातार सुधार रहा है |
भारत की कई कंपनियों जैसे टाटा कंसलटेंसी, इंफोसेसिस, महिंद्रा एयरोस्पेस आदि कंपनियों ने आस्ट्रेलिया
की अर्थव्यवस्था में बहुत मात्रा में निवेश कर रखा है |
आकड़ों की बात करें, तो यह इस
समय तक लगभग 11 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है | भारत और आस्ट्रेलिया के
व्यापार 2003 में 5.1 बिलियन आस्ट्रेलियन डॉलर से बढ़कर 2013 में 15.2 बिलियन डॉलर
तक पहुँच चुका है | असैन्य परमाणु संधि हो जाने से भारत और
आस्ट्रेलिया के बीच व्यापार और अधिक बढ़ेगा लेकिन इसमें आस्ट्रेलिया को लाभ होने की
ज्यादा उम्मीदें हैं |
मेलबर्न विश्वविद्यालय के आस्ट्रेलिया-इंडिया संस्थान के अनुसार,
आस्ट्रेलिया भारत के व्यापारिक साझेदारी के पसंदीदा देशों में अमेरिका,
जापान और सिंगापुर के बाद चौथे स्थान पर है |
मोदी की पॉलिसी रडार में व्यावसायिक शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है |
भारत में पिछली सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव के लिए कई प्रयास किए थे,
लेकिन वे असफल हो गए थे | आस्ट्रेलियन विश्वविद्यालय भारत में शिक्षा के
क्षेत्र में एक बड़ा बाजार देखते हैं |
भारत और आस्ट्रेलिया के हिन्द-प्रशांत महासागरीय क्षेत्र(Indo-Pacific Region) पर साझा हित हैं | हिन्द-प्रशांत महासागरीय
क्षेत्र(Indo-Pacific Region) में चीन के बढ़ते दबदबे से कई देश चिंतित हैं |
इसका संकेत हमें मोदी की जापन यात्रा में भी मिल जाता है,
जिसमें मोदी ने अप्रत्यक्ष तौर पर चीन का नाम लिए बिना ये कहा था कि “कुछ देश अभी
भी 18वीं सदी की विस्तारवाद की नीति में विश्वास रखते हैं ,
लेकिन मेरा विश्वास विकासवाद की नीति में है | ऐसे में अमेरिका भी चीन
से प्रतिद्वंदी के तौर पर एशिया महाद्वीप में भारत को खड़ा करना चाहता है,
जिसके कारण 2008 में अमेरिका 2008 में अमेरिका भारत को शांतिपूर्ण कार्यों में
परमाणु सहयोग देने में सहमत हो गया था |
अमिताभ मातो( डायरेक्टर, इंडिया-आस्ट्रेलिया संस्थान,
प्रोफेसर{मेलबर्न विश्वविद्यालय और जे.एन.यू.})
का अपने लेख “The New Promise of India-Australia Relations” में कहना है कि पूर्व में भारत,जापान
और अमेरिका के साथ आस्ट्रेलिया के सैन्य रिश्ते स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देते थे,
लेकिन अपने हितों को देखते हुए, विश्व अर्थव्यवस्था में शक्ति के केंद्र को बदलने
के कारण अब इन्हीं देशों को एक साथ आगे आना पड़ रहा है |
लेकिन इसको पूरा होने में वक़्त कितना
लगेगा; क्या भारत,
आस्ट्रेलिया, अमेरिका और जापान के हितों में टकराव नहीं होगा ?
इस बात की कोई गारंटी नहीं है | यदि नाभिकीय सयन्त्र से ऊर्जा की बात करें ,
तो भारत में इसको लेकर संशय व्याप्त है | इसकी सुरक्षा को लेकर लोगों में डर व्याप्त है | ऐसे में आस्ट्रेलिया असैन्य परमाणु उपयोग के
लिए भारत को यूरेनियम देने को तैयार हो गया है | अब आगे भारत को देखना है
कि वो इन सभी संशय को दूर करने के लिए किस तरीके की रणनीति अपनाता है |
साभार:
http://www.aljazeera.com/indepth/opinion/2014/09/new-promise-india-australia-rela-20149314139549494.html
http://theconversation.com/abbotts-visit-to-take-australia-india-relations-beyond-cricket-31056,
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Australia-to-sign-civil-nuclear-deal-to-sell-uranium-to-India/articleshow/41614731.cms
PTI Input, BBC, MEA, International
Relations- Dr. Tapan Biswal