Tuesday, January 28, 2014

The Blatant Perspective: A Letter in Solo

एक बढ़िया प्रयास जिसमें बहुत ही विश्लेषित तरीके से बात को कहा गया है | Must read. a good play review & good analysis

.The Blatant Perspective: A Letter in Solo:

  Strir Patra Adaptation: Short story ‘Strir Patra’ by Rabindranath Tago...

Thursday, January 16, 2014

मेट्रो से गुड़गाँव जाते समय

               

बात शायद पिछले वर्ष में सितम्बर महीने की है,जब मैं अपने दोस्त प्रिंस के साथ गुड़गाँव जा रहा था | प्रिंस खुराना ने मुझसे गुड़गाँव चलने के लिए कहा था | मैंने जब प्रिंस से पूंछा कि  हम  किस लिए गुड़गाँव जा रहे हैं  तो उसने बताया कि मेरा लकी ड्रा  कूपन निकला है  और उस लकी ड्रा कूपन के लिए मुझे  अपना नाम पंजीकरण कराना  है |  इसलिए हम गुड़गाँव  जा रहे हैं |    
                                       अब इस बात की उत्सुकता  तो होगी कि  उस लकी ड्रा  कूपन में ऐसी क्या बात है , मैंने उत्सुकतावस तुरंत पूंछा कि  उस लकी ड्रा कूपन में ऐसी क्या बात है कि तुम अपना नाम पंजीकरण कराने के लिए खाना छोड़कर आ गए और मुझे भी अपने साथ ले लिए । तब प्रिंस ने कहा - ठहर जाओ , बाद में बताऊंगा | एक  अच्छा  ऑफर है तुम्हारे लिए ।
                                                                                                                             मेट्रो अपने लक्ष्य की ओर बढती जा रही थी , स्टेशन पर स्टेशन पार होते जा रहे थे । मेट्रो में भीड़ और भीड़ में धक्का -मुक्की । यह सब तो मेट्रो में आम बात है । इस बात को करीबी से वही जानते होंगे जो प्राय: मेट्रो में यात्रा करते हैं । मैं  भी करता हूँ और अधिकतर लोग भी समय की बचत के लिए मेट्रो से यात्रा करते हैं लेकिन  यही धक्का -मुक्की कभी - कभी एक दूसरे को कुछ समय के लिए जुदा कर देती है , तो वे बेचैन हो उठतें हैं । ऐसा ही हमारे साथ यात्रा कर रही एक विवाहिता स्त्री के साथ घटित हुआ । हम लोग मेट्रो से अपने लक्ष्य की ओर जा रहे थे उसी बीच एक स्टेशन से विवाहिता स्त्री चढ़ी  लेकिन दुर्भाग्य यह हुआ जैसे ही वह मेट्रो में घुसी , उतने में ही गेट बंद हो गया और उसका पति बाहर  रह गया । अब महिला बहुत तनाव में आ गयी । तनाव होने का पहला कारण, पति का छूट जाना , दूसरा उसका फ़ोन भी उसके पति के पास रह गया था । वह एक तरह से चिल्ला कर कह रही थी कि  मेरी बात करा दो ।  बस वह एक फ़ोन कॉल करना चाहती थी अफ़सोस उसकी बात सुनने को कोई तैयार न था । वह एक प्यारे से बच्चे को सीने से लगाये हुई थी । उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे ? मैं और प्रिंस इस घटनाक्रम को अच्छी तरह से देख रहे थे । प्रिंस  का गुड़गाँव  में लकी ड्रा कूपन  में पंजीकरण कराने का थोड़ा ही समय बचा था । पहले तो हम लोगों के मन में यह बात आई कि अगर इसकी सहायता करेंगें तो वहां पंजीकरण का समय समाप्त हो जायेगा लेकिन दूसरी तरफ यह डर  लग रहा था कि अगर इसकी सहायता नहीं करेंगें तो सब गड़बड़  हो जाएगी । तो मेंने प्रिन्स से कहा कि पहले तो इनकी  फ़ोन पर पति से  बात करा  देते हैं तब मैंने अपना फ़ोन उन्हें दे दिया । उन्होंने  बात की फिर उनके पति ने मुझसे फ़ोन पर कहा कि बेटा  अगर आप इन्हें अगले स्टेशन पर उतार दें और साथ में आप भी उनके साथ रहें तो मैं फ़ोन करके आप से पूंछ लूँगा कि आप कहाँ खड़े हैं ? मैंने झट से जवाब दिया - ठीक है। मैं अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा । प्रिंस ने मुझसे कहा कि  मुझे तो पंजीकरण कराने  जाना है तो मैंने कहा कि ऐसा कर तू चला जा ,मैं अगले स्टेशन पर उतर जाऊंगा । प्रिंस ने बोला कि ठीक है । मैं और महिला उतर गए । फिर मैंने उनको फ़ोन किया कि  हम लोग स्वचालित सीढ़ियों के पास खड़े हैं जो कि १ नंबर प्लेटफार्म की ओर जाती है । उनके पति वहां आये , उन्होंने मुझे धन्यवाद कहा । उस समय मन में एक अच्छी सी भावना उमड़ कर आयी कि मैंने आज बहुत अच्छा काम किया लेकिन दूसरी तरफ दिल ने कहा कि हमारा समाज कितना स्वार्थी होता जा रहा है .....

Monday, January 13, 2014

पोलियो मुक्त भारत

              पोलियो मुक्त भारत
आज भारत आधिकारिक रूप से पोलियो मुक्त देश बन जाएगा | विश्व स्वास्थ्य संगठन आधिकारिक रूप से भारत को पोलियो मुक्त देश का दर्जा 11 फरवरी को प्रदान करेगा | भारत  अपनी इस उपलब्धि से दक्षिण पूर्वी ऐशीयाई क्षेत्र में पोलियो मुक्त देश बन जाएगा | अब भारत को पोलियो मुक्त देश प्रमाण पत्र मिलने का रास्ता साफ़ हो गया है |  यह भारत की स्वास्थ्य क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलबब्धि   है |  पिछले तीन सालों  में  भारत  में पोलियो का एक भी मामला सामने नहीं आया है | भारत ने 1980 में स्मालपोक्स(small Pox)  का  जड़ से खात्मा कर दिया था, इसके बाद पोलियो दूसरी ऐसी बीमारी है जिसे टीकाकरण के ज़रिए भारत में खत्म किया जा सका  है | 1980 के दशक में पोलियो 100 से अधिक देशों में था |
                             
डब्ल्यूएचओ के एक प्रवक्ता ने बताया, "यदि आयोग इस बात से संतुष्ट हो जाता है कि इस दक्षिण एशियाई क्षेत्र में कोई पोलियो वायरस नहीं है और यहां निगरानी तंत्र भी संतोषजनक है और पहले चरण के तहत जांच की सुविधाएं भी पूरी हो चुकी हैं तो डब्ल्यूएचओ की ओर से इस क्षेत्र को पोलियो मुक्त घोषित कर दिया जाएगा | " उन्होंने कहा, "भारत की उपलब्धि से पता चलता है कि यदि सही तरीके से और दृढ़ राजनीतिक इच्छा शक्ति के साथ काम किया जाए तो मौजूदा समय में पोलियो उन्मूलन की रणनीति दुनिया के कठिनतम क्षेत्रों में भी इसका ख़ात्मा कर सकती है | "

                                     यहाँ ध्यान देने योग्य विशेष बात यह है कि 2009 तक पूरी दुनिया के आधे से अधिक मामले भारत में ही दर्ज होते आए हैं | 2009 में भारत में पोलियो के 741 मामले सामने आए थे | पश्चिम बंगाल की रुखसार, भारत में पोलियो की आखिरी शिकार थीं | यह मामला 2011 का था | सरकार इस मुहिम में हर साल एक हज़ार करोड़ रुपए खर्च करती है | भारत में पोलियो टीकाकरण के दौरान हर साल 24 लाख कार्यकर्ता और 17 लाख कर्मचारी 17 करोड़ से ज्यादा बच्चों को पोलियो का टीका देते हैं |  पोलियो के कारण मौत भी हो सकती है | विकलांगता इसका भयावह परिणाम है, जिसके कारण समाज में उस बच्चे को काफी कुछ सिर्फ विकलांगता के कारण सहना पड़ता है |
                                 भारत में पोलियो खात्मे का रास्ता आसान नहीं था | समाज में इसके बारे में कई भ्रांतियाँ फैली हुई थी | उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में ये कहा जा रहा था कि यदि आपने पोलियो ड्रॉप पिलाया तो आपका बच्चा नपुंसक हो जाएगा | इन अफवाहों का काफी असर भी हुआ | इन अफवाहों के खात्मे के लिए भारत सरकार ने सामाजिक जागरूकता का कार्यक्रम भी चलाया जिसका व्यापक असर समाज में दिखाई दिया |  भारत के सामने कई  चुनौतियाँ थी | मसलन, भारत के पास संसाधनों की कमी थी और स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में भारत बहुत पीछे था | भारत ने इन सभी कठिनाइयों के बावजूद अपने लक्ष्य को हासिल किया | इस मामले में यूनिसेफ के भारत स्थित केंद्र के पोलियो प्रमुख निकोल ड्यूश कहते हैं, "इन गतिरोधों के बावजूद भारत ने दुनिया को ये दिखा दिया कि ऐसी बीमारियों को कैसे जीता जा सकता है |" लेकिन आज भी 21वीं सदी के भारत में साफ़- सफाई की समस्या और भी कई भयानक रोग जैसे डायरिया, हैजा, कुपोषण से लाखों बच्चे हर साल मरते हैं | आज भी भारत में कई ऐसी ही बीमारियाँ हैं जिनसे भारत को लड़ने की जरूरत है | बेशक, भारत के  लिए  ये एक बहुत बड़ी उपलबब्धि है ,लेकिन सवाल यहाँ ये उठता है कि भारत स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में आज कहाँ है ? लोगों को स्वास्थ्य सेवाएँ मिल पा रहीं हैं या नहीं | अगर इस मामले में भारत की स्थिति को देखा जाए तो भारत इस मामले में आज भी बहुत पीछे है | कुपोषण के मामले में हम अपने पड़ोसी देशों से भी आगें हैं | दूसरी महत्वपूर्ण सवाल ये है कि स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता की बात की जाए तो वो  सिर्फ कुछ वर्ग तक ही सीमित रह गयी है | गरीब अभी भी स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में बहुत पीछे हैं | इस मामले में प्रणव मुखर्जी भी अपनी चिंता प्रकट कर चुकें हैं |
                                  
हालांकि, भारत की चुनौती अभी खत्म नहीं हुई है | भारत को अभी भी पड़ोसी देशों से पोलियो के मामले आने का खतरा है | इसके लिए भारत ने सीमा पर पोलियो कैंप लगा रखे हैं | पाकिस्तान, अफगानिस्तान में अभी हाल-फिलहाल में पोलियो के कुछ मामले सामने आए हैं | भारत सरकार को इस उपलब्धि को सकारात्मक लेते हुए स्वास्थ्य सेवाओं के मामले में अभी भी बहुत कुछ करना है | जिस तत्परता से पोलियो मिटाने के लिए काम किया गया, वही तत्परता स्वास्थ्य के अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई देने की जरूरत है |
     

  

Tuesday, January 07, 2014

दिल्ली में बेघरों की हालत जस की तस

 दिल्ली में बेघरों की हालत खस्ता
  

दिल्ली ही नहीं पूरे भारत में रैनबसेरा की समस्या एक बहुत बड़ी समस्या है | दिल्ली में दिसंबर के महीने में तापमान 2 से 4 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है और ऐसी परिस्थितियों के बीच फुटपाथ और फ़्लाइओवरों के नीचे बेघरों की कतार दिल्ली में एक आम नजारा है | दिल्ली में काँग्रेस समर्थित केजरीवाल सरकार ने घोषणा की थी कि अगले कुछ ही दिनों में दिल्ली में बेघरों के लिए 100 रैन बसेरा बनेंगे | उनहोंने ये भी कहा था कि इस समस्या से निजात के लिए सभी विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित क्षेत्र से निर्वाचित विधायकों और जनता के सहयोग की जरूरत है | सरकार ने ये भी एलान किया है कि शहर में पड़ रही कड़ाके की ठंड के मद्देनज़र बेघरों को छत प्रदान करने के लिए प्लास्टिक के टेंट से चलाये जा रहे सभी रैन बसेरों को तीन दिन के भीतर पोर्टा केबिन में बदल दिया जाएगा | प्लास्टिक टेंट सर्द हवाओं को रोक नहीं सकते हैं, जबकि पोटा टेंट ऐसा कर सकते हैं | दिल्ली सरकार द्वारा की गयी अहम घोषणाओं में से रैनबसेरा बनाया जाना एक प्रमुख घोषणा है अब आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि अचानक से रैन बसेरा के बारे में बात कैसे? इसका उत्तर दिल्ली सरकार द्वारा की गयी घोषणाओं में छिपा हुआ है | दिल्ली में जनता के बीच नवनिर्वाचित सरकार की छवि एक ईमानदार, कार्य करने वाली, वादों को पूरा करने पार्टी के रूप में बनी हुई है |

                                       ऐसे में ये जानना जरूरी हो जाता है कि वास्तव में अभी तक कुछ काम हुआ है या नहीं | बेरसराय, जो कि महरौली विधानसभा क्षेत्र के अंतर्गत आता है और वहाँ से विधायक बीजेपी के प्रवेश सिंह वर्मा हैं | जब फ़्लाइओवर के नीचे रात में लगभग 12:30 पर स्थिति को देखने गया तो स्थिति अभी तक जस की तस है | वहाँ लोग खुले में सो रहे थे | बस चारों ओर चादर दुहरी-तिहरी कर लगा रखी थी | हाड़ कपा देने वाली ठंड की आवजाही जारी थी, लेकिन लोग फ़िर भी जीवन की नयी सुबह के लिए सो रहे थे | बस छत की जगह फ़्लाइओवर था, जिसमें लगातार गाड़ियों की खट-खट की आवाज सुनाई दे रही थी | वहाँ स्थिति ये है कि वहाँ घुसते ही बदबू, गंदगी दिखाई देने लगती है | उनके सोने के स्थान के पास भगौने पड़े हुए थे और थोड़ी ही दूरी पर कुत्तों के समूह घूम रहे थे | आगें बढ्ने पर भी यही हाल था | जब मैंने इस बारे में एक व्यक्ति से कहा कि सरकार ने आपके लिए रैनबसेरों की घोषणा की है तो उसका कहना था कि हर सरकार ऐसे ही घोषणा करती है, लेकिन मुझे इस पार्टी से थोड़ी आशा जरूर है कि ये पार्टी हमारे लिए काम करेगी |”
                               खैर अभी घोषणा हुए 2-3 दिन ही हुए हैं | समस्या से निजात पाने में वक़्त तो लगेगा ही, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि कितना वक़्त लगेगा | इन बेघरों को कब तक अपनी ज़िंदगी इन्हीं सर्द हवाओं के बीच कड़कड़ाती ठंड में बितानी होगी | ये भी ध्यान रखने योग्य है कि इस समय तापमान लगभग 2-4 डिग्री हो जाता है | शहरी विकास मंत्री मनीष सिसौदिया और सामाजिक कल्याण मंत्री राखी बिड़ला ने कई रैनबसेरों का दौरा किया और वहाँ की व्यवस्था को देखकर अधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई |  सवाल यहाँ कई और भी हैं | एक महत्वपूर्ण सवाल यह उठता है कि व्यक्तियों, खासकर से गरीब वर्ग की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी किसकी है ? यह ज़िम्मेदारी खुद व्यक्तियों की है या राज्य की | वैसे संविधान में वर्णित नीति निर्देशक सिद्धांतों के आधार पर ये ज़िम्मेदारी राज्य की बनती है |
                                              हालांकि पिछली सरकारों के कार्यकाल को देखकर यही लगता है कि वे इस समस्या के लिए ज्यादा गंभीर नहीं थी | इस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस सीकरी ने दिल्ली सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा था कि आप आँखें बंद करके चलें तो वाकई शहर में कोई बेघर नहीं है | अभी कल ही सुप्रीम कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई हुई थी | इससे पहले भी सूप्रीम कोर्ट ने बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली के रैन बसेरों की हालत पर नाराजगी जताई थी | दिल्ली में रैन बसेरों को तोड़े जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई थी और सभी को फ़िर से बनाने का आदेश दिया  था | इससे एक सवाल और भी उठ रहा है इन सब मामलों के लिए हमेशा कोर्ट को क्यों आगें आना पड़ता    है ?
                                  यूं तो दिल्ली की सर्द रातों में किसी मंत्री का बेघरों के बीच जाकर उनसे उनसे परेशानियां पूछना जनता के बीच एक अच्छी तस्वीर पेश कर रहा है, लेकिन कई आलोचकों का कहना है कि ये कहीं जनता को लुभाने का कोई प्रपंच भर तो नहीं है | आशा करता हूँ कि सरकार जल्द से जल्द इन लोगों की भी सुध लेगी और उनके लिए रहने का उचित प्रबंध  कराएगी |