सुनसान सड़कें और जगमग रातें,
और सुबह, एक नयी रोशनी लाती हुई,
उठ खडें हुएं हैं, उठ खडें हुएं हैं .............
हम सब एक बदलाव के लिए ,
चाहतें हैं बदलाव लाना,
लड़ रहे हैं उन बदलावों के लिए,
उन बदलावों के नए प्रतिमानों के लिए,
बहुत हुई तुम्हारी वादाखिलाफी,
तुम्हारी बेईमानी , तुम्हारी बेदलखी,
एक तरफ तुम एक-दूसरे को गालियां देते,
और एक दूसरे से लड़ने की हुंकार भरते,
दूसरी तरफ उन्हीं से तुम हाँथ मिलाते,
और उन सीटों पर प्रत्याशी न उतारते,
चुनाव आते तो अचानक से दुश्मन बन जाते,
चुनाव जाते तो दोस्त बन जाते,
चुनाव आते तो वादों की फुलझड़ी सी जल जाती,
नयी-नयी योजना, नयी-नयी नीतियां प्रकाश में लाती,
बनने को बैठे हो तुम जनता के रहनुमा..........
अपने भाषणों, रैलियों, प्रचारों में .......
जनता और गरीबी का मजाक बनाते.......
और दोष देते व्यवस्था और नियमों को ,
चुनाव आते तो हो जाते हावी जातीय समीकरण ,
बन जाता है विकास एक छलावा,
उठ खडें हुएं हैं, उठ खडें हुएं हैं .............
हम सब एक बदलाव के लिए ,
चाहतें हैं बदलाव लाना,
लड़ रहे हैं उन बदलावों के लिए,
उन बदलावों के नए प्रतिमानों के लिए,
एक नयी रोशनी लाने के लिए ………!!!!!!!!
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