Shale Gas-future of US |
शेल गैस : ऊर्जा क्षेत्र में नयी क्रांति
वैसे तो तेल की कीमतों ने वैश्विक राजनीति को तय करने के लिहाज से हमेशा अहम भूमिका अदा की है लेकिन बीते कुछ महीनों में वैश्विक बाजार में तेल की कीमतों में अप्रत्याशित उथल-पुथल मची हुयी है। जाहिर है कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में तेल की राजनीति एक बार फिर निर्णायक बन गयी है। जानकार मान रहे हैं कि अमेरिका की ‘शेल गैस क्रांति’ मुख्यतः इस हलचल के केंद्र में है। क्या शेल गैस तकनीकी पिछले एक दशक में बहुत ही महत्वपूर्ण राजनीतिक हथियार बन चुकी है? शेल गैस तकनीकी से सऊदी अरब क्यों डरा हुआ है, तेल की कीमतों को तय करने में इस उतार-चढ़ाव की क्या भूमिका है?
इन सवालों का जवाब तलाशने से पहले वर्तमान वैश्विक परिदृश्य पर एक निगाह डालनी आवश्यक होगी। इस समय एक ओर भारत गंभीर आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा है वहीं दूसरी ओर सीरिया, इराक़ आतंकी घटनाओं और जातीय संघर्ष से जूझ रहे हैं। यूक्रेन विवाद के चलते पश्चिमी देश रूस पर लगातार आर्थिक प्रतिबंध लगा रहे हैं। सऊदी अरब ईरान की अर्थव्यवस्था को लगातार गिराने में लगा हुआ है। इन सबके बीच तेल की कीमतें जो कि जून में 115 डॉलर प्रति बैरल थी, वो अब घटकर 52.69 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई हैं। कीमतों में कमी आने से भारत, चीन और जापान जैसे देशों को आर्थिक फायदा पहुँच रहा है।
तकनीकी तौर पर शेल गैस चट्टानी संरचनाओं से उत्पादित प्राकृतिक गैस है जो बालू, लाइमस्टोन, संरचनाओं से पैदा होने वाली प्राकृतिक गैस से भिन्न है |
शेल दरअसल पेट्रोलियम की चट्टानें हैं यानी ये ऐसी चट्टाने हैं जो पेट्रोलियम की स्रोत हैं। इन चट्टानों पर उच्च ताप और दबाव पड़ने से ही एक प्राकृतिक गैस उत्पन्न होती है जो एलपीजी की तुलना में कहीं अधिक स्वच्छ है। पिछले दशक में अमेरकी अर्थव्यवस्था में तेल की कीमतों में गिरावट आने का बड़ा कारण इसी शेल गैस को माना गया है। पहले ऊर्जा के मामलों में अमेरिका काफी हद तक आयातित तेल पर निर्भर था, लेकिन अब उसकी आयातित तेल पर निर्भरता लगातार घट रही है | संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा, सूचना और प्रशासन विभाग के अनुसार, 2035 तक अमेरिका की ऊर्जा की खपत की 46% भाग की पूर्ति शेल गैस द्वारा ही होगी |
शेल दरअसल पेट्रोलियम की चट्टानें हैं यानी ये ऐसी चट्टाने हैं जो पेट्रोलियम की स्रोत हैं। इन चट्टानों पर उच्च ताप और दबाव पड़ने से ही एक प्राकृतिक गैस उत्पन्न होती है जो एलपीजी की तुलना में कहीं अधिक स्वच्छ है। पिछले दशक में अमेरकी अर्थव्यवस्था में तेल की कीमतों में गिरावट आने का बड़ा कारण इसी शेल गैस को माना गया है। पहले ऊर्जा के मामलों में अमेरिका काफी हद तक आयातित तेल पर निर्भर था, लेकिन अब उसकी आयातित तेल पर निर्भरता लगातार घट रही है | संयुक्त राज्य अमेरिका के ऊर्जा, सूचना और प्रशासन विभाग के अनुसार, 2035 तक अमेरिका की ऊर्जा की खपत की 46% भाग की पूर्ति शेल गैस द्वारा ही होगी |
अमेरकी शेल गैस उद्योग के विकास में करीब 25 वर्ष लगे हैं। अमेरिका सरकार ने 1980 के दशक में गैस शोध पर लाखों डॉलर ख़र्च किए। अमेरिका में शेल गैस मिकीगन, टेक्सास, ओक्लाहोमा, अलाबामा, कोलेरडो, पश्चिमी वर्जीनिया आदि स्थानों में प्रचुर मात्रा में है । महज कुछ वर्ष पहले ही यहां प्राकृतिक गैस की कीमतें जापान, यूरोप के बराबर थीं, लेकिन शेल गैस तकनीकी के चलते आज कीमत यूरोप की अपेक्षा तीन गुना सस्ती है। इस गैस से निकलने वाले तेल की लागत करीब 50 डॉलर प्रति बैरल होती है। एक अनुमान के मुताबिक,विश्व में शेल गैस के भंडार अमेरिका और कनाडा में सबसे अधिक हैं। इसके अलावा चीन में भी प्रचुर मात्र में शेल चट्टानें मौजूद हैं। अमेरिका में भूगर्भीय संरचना और आधारभूत संरचनायेँ शेल गैस तकनीकी के लिए अनुकूल है,जबकि बाँकी भागों में शैल गैस तकनीकी में सबसे बड़ी रुकावट यही है। इसी के चलते ब्रिटेन, पोलैंड, यूरोप, भारत जैसे स्थानों में अभी तक ये सफल नहीं हो पायी है।
शेल गैस क्रांति से यदि अमेरिका की लगभग ऊर्जा की पूर्ति होने लगे तो शेल गैस एक बार फिर से अमेरिका को विश्व पटल में सबसे ऊंचे स्थान में काबिज़ कर देगी। अभी तक ओपेक सदस्यों का काफी अधिक दबदबा रहा है। तेल की कीमतें उनके हिसाब से चलती रहती हैं। सऊदी अरब तेल के उत्पादन में वृद्धि शेल गैस क्रांति को धराशायी करने के लिए कर रहा है। सऊदी अरब में तेल की लागत 25 डॉलर प्रति बैरल है,वहीं अमेरिका में 50 डॉलर प्रति बैरल है।ऐसे में अमेरिका कब तक इतने दाम पर उत्पादन करता रहेगा? विश्व में सत्ता में शीर्ष पर काबिज़ होने के लिए तेल और डॉलर पर नियंत्रण आवश्यक है। अभी अमेरिका डॉलर के माध्यम से विश्व अर्थव्यवस्था को नियंत्रित कर रहा है। ऐसे में अगर उसकी तेल, गैस के लिए ओपेक जैसे देशों पर निर्भरता कम हो जाए, तो वैश्विक राजनीति में अमेरिका सबसे ताकतवर हो जाएगा। सवाल यही है कि क्या नयी तकनीकी से अमेरिका लगातार उत्पादन करेगा या फिर से कच्चे तेल के लिए ओपेक(ओपीईसी) देशों पर निर्भर रहना जारी रखेगा?
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