Thursday, January 15, 2015

तिहाड़ जेल में बढ़ती मौतें-जिम्मेदार कौन ?


तिहाड़ जेल में बढ़ती मौतें-जिम्मेदार कौन ?

तिहाड़ जेल में अभी कुछ ही दिन पहले एक २० वर्ष के कैदी की मौत हो गयी, लेकिन अभी तक मौत के  कारण स्पष्ट नहीं हो  पाएं हैं। इस मामले की जांच के लिए न्यायिक जांच आयोग और मेडिकल बोर्ड का भी गठन कर दिया गया है।  ध्यान देने वाली बात ये है कि कैदियों की मौत के मामले में न्यायिक  जांच तभी बैठायी जाती है जब कैदी की मौत के कारणों पर संशय  हो। परिवार  वालों का कहना है कि ये मर्डर है, न कि कोई प्राकृतिक मौत ।     

यह तो तिहाड़ जेल में मरने वाले एक कैदी की दास्तान है। ऐसे ही कई कैदियों की दास्तान है, जिनकी मौत के कारणों की खोजबीन आज भी जारी है और वे सभी गुमनाम हैं ।

2013 में तिहाड़ जेल में पिछले वर्ष की तुलना में कैदियों की मृत्यु में 100 फीसदी वृद्धि दर्ज की गयी है। 2012 में जेल के क्षेत्र के अन्तर्गत, 2आत्महत्याओं को मिलाकर 12 मौतें हुई थीं। तिहाड़ जेल के आंकड़ों के अनुसार, 2013 में 36 मौतें हुई थीं।  


जस्टिस लीला सेठ आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, क्षमता से अधिक क़ैदी रखे जाने के मामले में, देश की राजधानी दिल्ली में स्थित दक्षिण एशिया की सबसे सुरक्षित समझी जाने वाली तिहाड़ जेल अव्वल नंबर पर है। तिहाड़ में क्षमता से 224 फीसदी ज्यादा क़ैदी रखे गये हैं। उनमें झारखंड, छत्तीसगढ़,गुजरात, बिहार, हरियाणा, उड़ीसा, सिक्किम, त्रिपुरा, उत्तर-प्रदेश का नंबर आता है। वहीं दूसरी ओर आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक जम्मू-कश्मीर, मणिपुर,नागालैंड, राजस्थान, उत्तराखंड, दमन और दीऊ, दादर और नगर हवेली तथा लक्षदीप की जेलें ऐसी भी हैं, जिनमें क्षमता के मुताबिक ही क़ैदी बंद करके रखे गये हैं।

तिहाड़ जेल दक्षिण एशिया की सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली जेल है। 2013 की रिपोर्ट के मुताबिक़, 2013 में तिहाड़ जेल का बज़ट करीब डेढ़ अरब (140,93,85000-00) रुपये था।  इसमें से  42 फीसदी जेल की सुरक्षा पर, 22 फीसदी स्वास्थ्य सेवाओं पर, 12 फीसदी खान-पान पर खर्च हुआ था।  ऐसे में सवाल ये उठता है कि जेल में कैदियों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है ?  विशेष सुरक्षा के बीच जेल में  कैदियों की मृत्यु कैसी हो जाती है, ये हमेशा सरकार, प्रशासन और परिजनों के लिए पहेली बना रहता है और इसका उत्तर देने के लिए सरकार, प्रशासन हमेशा से ही कोई न कोई बहाने बनाती रहती है।  सरकार और प्रशासन जेल में हुई मौतों के लिए गंभीर नहीं है, इसकी पुष्टि इस बात से हो जाती है कि लीला सेठ आयोग ने भी अपनी रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख किया था, कि तिहाड़ जेल में कैदियों के समुचित इलाज, रहन-सहन का कोई इंतजाम नहीं है। जस्टिस लीला सेठ आयोग की सिफारिश थी, कि तिहाड़ जेल में जानवरों की तरह कैदियों को ठूंस-ठूंस कर रखे जाने की वजह से भी, उनकी उचित देख-रेख नहीं हो पाती है। जस्टिस लीला सेठ आयोग ने जेलों की यह हक़ीक़त 1990 में जाहिर कर दी थी और आज इस हक़ीक़त को पता चले हुए 15 वर्ष बीत चुके हैं। स्थिति अभी भी बहुत सुधरी नहीं है। 

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की वार्षिक रिपोर्ट (2004-05) के मुताबिक़, ‘जिन जेलों में 2 लाख 37 हजार 617 क़ैदी ही रखने की क्षमता है। उन जेलों में3 लाख 36 हजार 151 क़ैदी भरे हुए हैं। क़ैदियों की यह संख्या जेलों की निर्धारित क्षमता से 41 फीसदी ज्यादा है।’ ऐसे में कैदियों के स्वास्थ्य पर,उनके विकास पर ध्यान कैसे दिया जाता है, इस बारे में नीतियां कुछ भी स्पष्ट नहीं हैं। 

"वाल स्ट्रीट जर्नल" में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2001 से अप्रैल 2012 के बीच तिहाड़ जेल में 12 आत्महत्या के मामले सामने आये हैं और अभी20 वर्षीय युवक की तिहाड़ जेल में मौत हुई है, जिसकी जांच अभी भी शक के घेरे में है। परिवार वालों का कहना है कि मेरे बेटे की हत्या हुई है, उसके गर्दन के पास कट के निशान, कलाइयों में ग्रिपिंग के निशान, मुंह में खून पाया गया है । ऐसे में सवाल ये उठता है कि जेल प्रांगण के अंदर ये सब कैसे संभव हुआ ?

तिहाड़ जेल में कैदियों की सुरक्षा की बात करे, तो उनके लिए सुरक्षा के मानक बहुत ही कठोर हैं।  जेल में तीन परतों की सुरक्षा होती है, जिसमें सबसे बाहर सीआरपीएफ, बीच में दिल्ली जेल अथॉरिटी  और उसके बाद तमिलनाडु पुलिस की सुरक्षा रहती है।  इसके अलावा हर जगह मेटल डिटेक्टर, हर जगह ऊँचे- ऊँचे टावर, मोबाइल फ़ोन के सिग्नल जाम करने के लिए जैमर, हर जेल में तीन तीन बड़े दरवाजे हैं। तमाम सुरक्षा इंतजामों के बाद भी जेल के अंदर कैदी की मौत होना  प्रशासन और सरकार की बड़ी लापरवाही की ओर इंगित कर रहा है।

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