लड़ रहे हैं, आज़ादी के लिए
रोज सड़कों पर भीख माँगती हुई मायें,
अपने बच्चों को लिए गोद में,
लड़ती हैं भूख से आज़ादी के लिए,
पिंजड़े में बैठा तोता
लड़ता, फड़फड़ाता अपनी आज़ादी के लिए,
बनारस, मथुरा में जाते कई लोग,
लड़ते हैं जीवन चक्र से आज़ादी के लिए,
माचिस की तीलियों की तरह फैक्ट्रीनुमा डिब्बी में बंद,
मजदूर लड़ते हैं अपनी बेबसी से आज़ादी के लिए,
तलाशने तो आये थे ,
यू .पी . , बिहार , कलकत्ता से ,
दिल्ली में एक नयी ज़िन्दगी................,
लेकिन चाहते हैं ,
अपनी ख्वाहिशों की तंग गलियों से आज़ादी,
फिरोजाबाद के घरों में कैद,
चूड़ियाँ बनाते नन्हे हाथ,
खुद दूर हैं चूड़ियों की खनखनाहट से,
चाहते हैं वे भी अपने घरों से निकलकर,
अपने अरमानों, आशाओं की आज़ादी,
कैसी विडंबना है ये,
जंगलों में रहने वाला आज़ाद इन्सान,
लड़ रहा है अपने वजूद की आज़ादी के लिए,
हैरत तो इस बात की है,
आज़ाद सड़कों पर निकलती महिलाओं के लिए,
हवस की गुलाम है आज़ादी,
लेकिन हमें ये नहीं भूलना होगा .......
कि जितनी गुलामी आम है..............
उतनी ही आम है ये आज़ादी,
उतनी ही आम है ये आज़ादी.............!!!!!!
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