जन-धन योजना : कुछ अनसुलझे प्रश्न
आम आदमी तक बैंक की
सुविधाओं को पहुंचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ड्रीम योजना “जन-धन
योजना” को लोगों ने हाथों-हाथ लिया और पहले ही दिन बैंकों में 1.5 करोड़ खाते खोलकर
एक नया रिकॉर्ड कायम कर लिया | इस योजना के तहत, बैंक 26 जनवरी, 2015 तक लगभग 7.5 करोड़ परिवारों तक बैंकिंग सुविधाएं पहुंचायेंगे |
इस योजना के तहत खातेदार को एक डेबिट कार्ड, खाते में
जमा रकम से 5,000 रुपए ज्यादा निकालने की सुविधा, 30,000 रुपए का जीवन बीमा कवर और दुर्घटना की
स्थिति के लिए 1,00,000 रुपए की बीमा
सुरक्षा दी जाएगी | इस योजना के तहत खाताधारकों को शुरुआत
में 2,000 रुपए की ओवरड्राफ्ट सुविधा यानि कि खाते में जमा
रकम से 2000 रुपए, जिसे बाद में बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दिया जाएगा |
इस योजना में आपको
कई सुविधाएं मिलेगी | अगर आप बाहर से हैं और आपका
खाता अभी तक नहीं खुला है, तो अब इस योजना के तहत आपका खाता
खुल जाएगा | पहले बैंक में खाता खुलवाने के लिए मिनिमम
बैलेन्स, गारंटर, कई सारे दस्तावेज़ की
जरूरत होती थी , लेकिन इस योजना के तहत अब आपको दस्तावेजों
में आधार कार्ड या कोई सरकारी दस्तावेज़, जिससे आपकी पहचान
जाहिर होती हो, इससे खाता खुल जाएगा |
अब आपको न ही कोई गारंटर की जरूरत होगी और न ही खाते में कोई मिनिमम बैलेन्स का
झंझट होगा |
बैंकों का राष्ट्रीयकरण 1969 में किया गया था
और इसका लक्ष्य था कि बैंकों की पहुँच भारत के दूर-दराज इलाकों और गरीबों तक हो | बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की शाखाएँ दूर-दराज इलाकों में
खोली गईं लेकिन देश में अभी भी 40 फीसद
लोग भारतीय अर्थव्यवस्था में भेदभाव के शिकार हैं | बैंक से
जुड़ना, भारतीय अर्थव्यवस्था में योगदान देना होता है |
अगर बैंक सुविधाओं की भारत में बात की जाए, तो
बैंकिंग सेवाओं के मामले में हम चीन और ब्राज़ील से काफी पीछे हैं | वर्ष 2011 में वित्तीय सेवाओं से
जुड़े एक सर्वेक्षण में इस बात का खुलासा हुआ कि भारत में 1 लाख लोगों पर औसतन 10.6
शाखाएँ और 9.9 एटीएम मशीने हैं | इसकी तुलना में चीन में 1
लाख लोगों पर औसतन 23.8 शाखाएँ और 49.6 एटीएम और ब्राज़ील में यही आंकड़ा 46.2
शाखा और 119.6 एटीएम तक पहुँच जाता है |(संदर्भ-
बिज़नस स्टैंडर्ड ) भारत में शहरी क्षेत्रों में बैंकिंग सुविधाएं सुलभ हैं लेकिन
जैसे ही आप ग्रामीण और कस्बाई इलाकों की तरफ बढ़ते हैं,
बैंकिंग सुविधाएं बहुत कम होती चली जाती हैं |
गांवों, कस्बों में संपर्क की बहुत बड़ी
दिक्कत है | लोग खाते तो खुलवा लेते हैं, लेकिन खाता खुलवाना ही बैंक सेवाओं से जुड़ना नहीं है | अगर मैं अपने यहाँ कालपी की बात करूँ तो कालपी के 15 किलोमीटर के दायरे
में कई गाँव हैं, लेकिन अभी तक कालपी में सिर्फ 5 बैंक हैं | गाँव के लोग कालपी में आकार अपना खाता खुलवाते हैं |
जन-धन योजना के नीति- निर्माण के कई पहलू अनसुलझे हुए हैं, जो कि अभी तक स्पष्ट नहीं हैं | ये समस्यायेँ अभी
भी बनी हुई हैं और यही सबसे बड़ी चुनौती भी हैं | सबसे बड़ी
समस्या बैंकों की पहुँच है | साल 2006 में जब रिजर्व बैंक ने दूर-दराज इलाकों में बैंकिंग सेवाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए बैंकों को
बिजनेस कारोस्पोंडेट रखने की अनुमति दी थी | उस समय यह एक बड़ा कदम था | इस योजना के बारे में आम राय थी
कि इससे लोगों में बैंकिंग सेवाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सकेगी और खाताधारकों
को खाता इस्तेमाल करने के प्रति भी सक्रिय बनाया जा सकेगा | लेकिन हाल में आरबीआई कालेज आफ एग्रीकल्चरल बैंकिंग (सीजीएपी)
के एक सर्वे में जो तथ्य सामने आए, उसने उपरोक्त कोशिशों की नाकामी की तस्वीर
सामने रखी है।
2013 में सितम्बर और नवम्बर महीने की अवधि में देश के पंद्रह बड़े
राज्यों में 2,358 एजेंटों से संपर्क करने पर यह चौंकाने वाली बात सामने आई कि
इनमें से सिर्फ 53 फीसदी से ही किसी तरह संपर्क साधा जा सकता है। बाकी 47 फीसदी एजेंटों
तक पहुंचा भी नहीं जा सकता। जिन 53 फीसदी तक पहुंच संभव है, उनमें से भी 16 फीसदी ने एक
भी बार किसी तरह का लेन-देन नहीं किया। रिजर्व बैंक और सरकार के आंकड़ों के अनुसार 2013 तक देश भर में
उसके पास 2.2 लाख बैंकिंग एजेंट हैं। बैंक
कररेस्पोंडेंट रखने का मुख्य उद्द्येश्य दूर-दराज के लोगों में बैंकिंग सेवाओं के
प्रति लोगों को जागरूक करना था लेकिन बैंकिंग एजेंटों की सक्रियता के मामले में भारत का रिकार्ड कई
अफ्रीकी देशों से भी खराब है। भारत में एक बैंकिंग एजेंट प्रति दिन औसतन नौ
लेन-देन करता है, तो केन्या में यह आंकड़ा 62 और तंजानिया और
युगांडा में क्रमशः 35 और 34 है।
दूसरी सबसे बड़ी चुनौती खाता को सक्रिय बनाए रखना
है मतलब ये कि खाता में लेन-देन लगातार होता रहे | नरेंद्र
मोदी की इस मामले में नीति की बात करें, तो वे टार्गेट
अप्रोच (आधारित सोच) को बढ़ावा दे रहे हैं | नरेंद्र मोदी ने
कहा है कि 26 जनवरी, 2015 तक लगभग 7.5 करोड़ परिवारों तक
बैंकिंग सुविधाओं को पहुंचाना है | प्रधानमंत्री का इस बात
पर इतना ज़ोर क्यों है कि गांवों में ऋण प्रदान करने, पैसा
जमा करने की एक समानान्तर प्रक्रिया चल रही है | लोग साहूकार, बनिया से कर्ज लेते हैं | अगर यही कर्ज लोग बैंक से
लेना शुरू कर दें, तो इससे देश की अर्थव्यवस्था को फायदा
होगा | ग्रामीण अर्थव्यवस्था विकसित होगी | गांवों का पैसा जो अभी तक साहूकारों और बनिया के पास था , वो लिक्विड फॉर्म में बैंकों में जाएगा | इस
प्रक्रिया को बनाए रखने के लिए बिजनेस
कारोस्पोंडेट (बैंकिंग एजेंट) की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण है |
रिजर्व बैंक और बैंकों को इस बारे में गंभीरता
से सोचना होगा कि खाते खुलवाने के साथ-साथ उनकी प्राथमिकता खातों में लेन-देन जारी
करवाना हो |
सरकार ने कहा है कि इस योजना के तहत खातेदार को एक
डेबिट कार्ड, खाते में जमा रकम से 5,000 रुपए ज्यादा निकालने की सुविधा, 30,000 रुपए का जीवन बीमा कवर और दुर्घटना की स्थिति के लिए 1,00,000 रुपए की बीमा सुरक्षा दी जाएगी, लेकिन इसके लिए सरकार का बजट क्या होगा, नीतियाँ
क्या होंगी? इस बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं है | ये सारा पैसा सरकार बैंकों को देगी | सरकार की ये
मंशा है कि सरकारी योजनाओं का धन ज्यादा
से ज्यादा लोगों में सीधे उनके खातों तक पहुंचे | लेकिन सवाल
यह है कि अति पिछड़े वर्ग तक, अति पिछड़ी जगहों पर बैंकिंग
सुविधाएं कैसे पहुंचेगी? क्या ये वर्ग भी इन सुविधाओं का लाभ
उठा पाएगा ?
नीतियाँ किस तरह से लागू की जाएंगी, उनका
क्रियान्वयन किस तरह से होगा, ये तो योजना के सही तरह से
लागू होने के बाद ही पता चलेगा | क्या बैंकिंग कारोस्पोंडेट की स्थिति पहले जैसी ही रहेगी या फिर इसमें कोई परिवर्तन आएगा | आशा है कि बैंकिंग सेवाएँ जल्द
ही क्लास से बढ़कर मास तक पहुंचेगी | 40% आबादी को बैंकिंग
सेवाओं से जोड़ना वाकई में बहुत जरूरी है क्योंकि ये आबादी अभी तक वित्तीय छुआ-छूत
का शिकार है | सरकार को, बैंकों को
लोगों को बैंकिंग सेवाओं के बारे में जागरूक करना होगा | ऐसा
होने में काफी वक़्त लगेगा और इस समय सरकार और बैंकों की प्राथमिकता सिर्फ खाता
खुलवाना न हो | बैंकों की पहुँच लोगों तक हो न कि लोगों की
पहुँच बैंकों तक हो | बैंक घर-घर लोगों तक पहुंचे, माइक्रो बैंक व्यवस्था के माध्यम से गांवों, कस्बों
में लोग बैंकिंग सेवाओं से जुड़े |
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साभार- बिज़नस स्टैंडर्ड, नया इंडिया, इंडियन एक्सप्रेस
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