ईरान परमाणु समझौता- अंतिम दौर में
स्विट्ज़रलैंड के लोज़ान में ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर चल रही बात अंतिम दौरे में पहुँच चुकी है, लेकिन अभी भी वार्ता को अंतिम चरण में पहुँचने के लिए कई बाधाएं पार करनी हैं। हालांकि तेहरान वार्ता के लिए 31 मार्च की समय सीमा तय की गयी थी, लेकिन वार्ता के और आगे बढ़ने के आसार हैं।
यूएस स्टेट विभाग के प्रवक्ता मेरी हार्फ का कहना है अभी भी इस डील में कई बाधाएं हैं, जिनको सुलझाना जरूरी है। ईरानी विदेश मंत्री जवाद ज़रीफ़ का कहना है "मुझे आशा है कि हम जल्द ही विश्व शक्तियों के साथ परमाणु समझौता कर लेंगे। मैं आशा करता हूँ हम आज इस वार्ता को अंतिम दौर तक पहुँचायेंगे और 30 जून तक समझौते का अंतिम प्रारूप तैयार कर लेंगे।" ब्रितानी विदेश मंत्री फ़िलिप हेमंड ने वार्ता में शामिल होने से पहले कहा था, "हमें यह विश्वास है कि समझौता हो सकता है। समझौते का होना सभी के हितों में है, लेकिन ये समझौता ऐसा होना चाहिए जो परमाणु बम बनाने से ईरान को दूर कर दे।"
ईरान के साथ परमाणु समझौते में बाधाएं :
अगर ईरान के साथ परमाणु समझौते की बाधाओं की बात करें तो सबसे बड़ा आरोप ईरान पर परमाणु बम बनाने
को लेकर है। ईरान परमाणु अनुसंधान और उसके विकास को जारी रखना चाहता है लेकिन पश्चिमी देश ईरान के ऊपर परमाणु बम बनाने का आरोप लगाते रहे हैं और चाहते हैं ईरान परमाणु कार्यक्रम को रोक दे। इस मसले पर ईरान का कहना है कि हमारा परमाणु कार्यक्रम पूरी तरह शांतिपूर्ण है और हमारा उद्देश्य परमाणु शक्ति का उपयोग बम बनाने में नहीं बल्कि बिजली सयंत्र स्थापित करने में है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर ईरान और पश्चिमी देशों और सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बीच पिछले12 साल से गतिरोध बरक़रार है। इससे पहले भी इस मसले पर कई बार वार्ताएं हुई हैं लेकिन वे सभी असफल रहीं।
ईरान को परमाणु समझौते से फायदे:
सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण ईरान की अर्थव्यवस्था फ्रीज पड़ी हुई है। ये सभी आर्थिक और राजनीतिक प्रतिबन्ध ईरान की अर्थव्यवस्था को लगातार नुकसान पहुंचा रहे हैं। ईरान की अर्थव्यवस्था मुख्यतया खनिज तेल और गैस पर निर्भर है। अगर आंकड़ों की बात करें तो ओपेक(OPEC) देशों में ईरान विश्व में दूसरा सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश है।2010 के आंकड़ों के अनुसार, ईरान प्रतिदिन 3.7 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन कर रहा है। ऐसे में अगर ईरान के ऊपर से प्रतिबन्ध हटाये जाते हैं तो ईरान की अर्थव्यवस्था को काफी अधिक फायदा होगा। ईरान में तेल निर्यात वापस से बढ़ेगा जिससे अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। कई रुकी हुई पेट्रोकेमिकल योजनाएं फिर से शुरू हो सकेंगी। ईरान में विदेशी निवेश बढ़ेगा, जो कि आर्थिक प्रतिबन्धों के कारण पिछले कई सालों से रुका हुआ है।
हालांकि इस बार बातचीत का दौर पिछले बार के चरणों से बहुत आगे है लेकिन अभी भी ईरान और पश्चिमी देशों के बीच ऐसे कई मुद्दे हैं जिन पर स्पष्ट सहमति नहीं बन पायी है।
इस समझौते के तहत ईरान परमाणु गतिविधियाँ अगले 10 साल तक ही कर सकता है लेकिन ईरान परमाणु अनुसंधान और विकास को जारी रखना चाहता है। इस बारे में अभी तक कुछ भी स्पष्ट नहीं हो पाया है।
ईरान चाहता है कि इस समझौते के बाद यूएन के सभी प्रतिबंधों को हटा दिया जाये। पी-5+1 देशों का कहना है कि इसका समाधान एक समुचित तरीके से होगा। यूएन ने ईरान को परमाणु सम्बंधित तकनीकी को आयात करने से रोक रखा है। इसके अलावा यूएस और यूरोपियन देश चाहते हैं कि अगर ईरान इस समझौते से मुकरता है तो यूएन के प्रतिबन्ध तत्काल प्रभाव से वापस ईरान पर लागू हो जाएँ। जब समझौता अपने अंतिम प्रारूप में होगा तो इसका कितना भाग सार्वजानिक रूप से बताया जाएगा और कितना नहीं?
इस समझौते का विरोध इज़राइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू लगातार कर रहे हैं। अगर मध्य पूर्व की बात की जाये तो इज़राइल ही अकेला परमाणु संपन्न देश है ऐसे में ईरान का शक्तिशाली होना इज़राइल को कहीं न कहीं डरा रहा है। प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने इस समझौता को इसराइल के लिए भयावह बताते हुए कहा था कि ईरान को रोका जाना चाहिए। उनके इस बयान से इज़राइल की घबराहट का चलता है। इससे मध्य पूर्व की राजनीति में शक्ति का केंद्र एक न होकर दूसरा भी हो जायेगा।
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