ईरान के नाभिकीय समझौते से भारत को फायदे
P-5 देशों और जर्मनी के साथ ईरान की नाभिकीय समझौते पर लगभग सहमति बन चुकी है। 30 जून तक ईरान और बाँकी देशों के बीच नाभिकीय समझौते का अंतिम प्रारूप तैयार हो जाएगा। ईरान के ऊपर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबंध हटने से भारत को आर्थिक और रणनीतिक द्रष्टिकोण से बहुत लाभ होगा। भारत ने ईरान के साथ अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ और व्यपारिक प्रगति पर बातचीत करने के लिए कामर्स सचिव राजीव खरे की अध्यक्षता में अपना प्रतिनिधि मण्डल भेज दिया है।
ईरान के नाभिकीय समझौते से भारत को फायदे:
भारत अपनी ऊर्जा खपत की मांग को पूरा कर सकता है। भारत अपनी ऊर्जा खपत का 77% आयात करता है। यदि भारत की अर्थव्यवस्था की बात की जाए तो भारत में ऊर्जा की जबर्दस्त मांग है। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है भारत का आयात बिल 2030 तक $300 बिलियन हो सकता है जो कि अभी लगभग $150 है।
अगर ईरान में तेल और गैस संसाधनों की बात करें तो पूरे विश्व में ईरान चौथे स्थान पर है। 2006 तक भारत ईरान का दूसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश था लेकिन यही आंकड़ा 2013-14 तक आते आते 7वें स्थान तक पहुँच गया। इससे पहले स्थान पर चीन है। भारत इस समय अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए वेनेजुएला से काफी मात्रा में तेल का आयात कर रहा है। अगर यही तेल भारत को ईरान से मिलने लगे तो cost of route, cost of oil और अन्य खर्चे में गिरावट होगी। भारत पहले से तेल पर सब्सिडी में खर्च कर रहा है। ऐसे में ईरान से तेल आयात करने में भारत की बैलेन्स शीट पर खासा प्रभाव पड़ेगा।
विश्लेषकों के अनुसार, अगर ईरान तेल उत्पादन में और बढ़त करता है, तो अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमतों में गिरावट आ सकती है। रायटर्स के एक सर्वे के अनुसार, ईरान प्रतिदिन 2.8 मिलियन बैरल तेल का उत्पादन करता है, लेकिन आयात सिर्फ 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन ही कर पाता है। रायटर्स की एक और रिपोर्ट्स के अनुसार, जैसे ही ईरान से सभी प्रतिबंध हटेंगे, तो ईरान 30 मिलियन बैरल तेल शिप करने के लिए तैयार है।
इसके अलावा भारत के कई रुके हुए प्रोजेक्ट्स वापस से चालू हो सकेंगे। ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने 2002 में नेशनल इरानियन ऑइल कंपनी से गैस क्षेत्र की खोज के लिए पर्सियन गल्फ बिड में जीता था। 2008 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने पर्सियन गल्फ में फ़जाद बी गैस फील्ड खोजा लेकिन ईरान पर लगे प्रतिबंधों के कारण यह प्रोजेक्ट आगे नहीं बढ़ पाया। अनुमान है इस क्षेत्र में 21.68 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस है, जिसमें 12.8 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस प्रयोग करने योग्य है। अगर इस गैस फील्ड की तुलना भारत से की जाए, तो भारत के सबसे बड़े गैस फील्ड से यह तीन गुना ज्यादा है।
दूसरा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट भारत और ईरान के बीच गैस पाइपलाइन को लेकर है। हालांकि इस गैस पाइपलाइन प्रोजेक्ट को पूरा होने में बहुत सारी बाधायेँ हैं। यह पाइपलाइन ईरान के असालुयाह से होती हुई पाकिस्तान के रास्ते से भारत तक आएगी।
तीसरी सबसे बड़ी बात, ईरान भारत से बासमती चावल आयात करता है। भारत से जो प्रतिनिधिमंडल ईरान गया है उसमें इस मुद्दे पर गहन चर्चा होगी।
यदि इस समझौते से रणनीतिक फायदे की बात की जाए, तो छाबर डीप वॉटर पोर्ट काफी मायने रखता है। यदि छाबर डीप वॉटर पोर्ट पर पूरी तरह से काम हो जाता है, तो इससे सेंट्रल एशिया, रूस और यूरोप से व्यापार के रास्ते International North South Transport Corridor के माध्यम से खुलेंगे। यह Red sea-Suez Canal-Mediterranean route से 40% छोटा और 30% कम खर्चीला है।
छाबर डीप वॉटर पोर्ट से भारत को अफगानिस्तान से सीधे व्यापार करने का रास्ता मिल जाएगा। भारत पहले से ही ईरान के जारांज और अफगानिस्तान से डेलाराम के बीच व्यापार को सुगम बनाने के लिए 200 किलोमीटर का रास्ता बना रहा है।ऐसे में यदि न्यूक्लियर डील पर सहमति बन जाती है तो भारत को निश्चित ही आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से फायदा होगा।
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