Monday, September 30, 2013

“रेलवे स्टेशन पर मैं, हम और आप”

जब कभी मैं रेलवे स्टेशन पर जाता हूँ किसी भी काम से, हमेशा एक बात महसूस होती है मुझे महसूस होता है कि “आज हम कहाँ जी रहे हैं, हम किस वक़्त में जी रहे हैं |” लोगों की आँखें बहुत कुछ बयां कर देती हैं | अगर आप गौर करें तो आपको कई बातें पता चल जाएंगी | लोगों की समस्याएँ, लोगों का जीवन स्तर, आँखों में आशाएँ लिए हुए, आँखों में दर्द, आँखों में क्रांति; आपको बहुत कुछ देखने तथा महसूस करने को मिल जाएगा |जब कभी मैं स्टेशन पर जाता हूँ मेरे मन में कई सवाल उठने लगते हैं | हम विकास के पथ पर कहाँ तक पहुंचे हैं, हमारा विकास किसके लिए है ? आपको  वास्तविक विकास की झलक देखनी हो तो आप स्टेशन पर जनरल कोच के पास जरूर घूमें या जनरल कोच में जरूर यात्रा करें | ”वहाँ लोगों के हाव-भाव खुद-ब-खुद बहुत कुछ बयां कर देंगे |

                                           स्टेशन पर बैठे लोगों की आँखें बहुत कुछ कह देती हैं | कुछ अपनी मंज़िल तक पहुँचने के लिए बेचैन रहते हैं, कुछ नयी ज़िंदगी की शुरुआत करने जा रहे होते हैं, कुछ और मकसद से जा रहे होते हैं | हर कोई कुछ न कुछ करने जा रहा होता है | आपने कभी गौर किया है कि रेलगाड़ी में जनरल कोच कम क्यों होते हैं ? सरकार ने पहले से ही जनरल लोगों को हासिए पर रख रखा है | आप कभी भी किसी भी ट्रेन में जनरल कोच में यात्रा करेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि जनरल कोच में यात्रा करना कितना कठिन है | मैंने भी यह अनुभव कई बार लिया है | आपको जनरल कोच की यात्रा करने से एक बात पता चल जाएगी कि विकास के पथ पर हम कहाँ तक बढ़ पाये हैं ?
                                            “ट्रेन के डब्बों से क्लास का डिविजन पता चल जाता है |” एसी कोच में जितनी बर्थ आरक्षित होंगी उतने ही उस कोच में लोग होंगे | कोई वेटिंग में लोग नहीं होंगे | वहाँ साफ-सफाई बहुत ज्यादा होगी |  बाथरूम स्लीपर कोच की अपेक्षा ज्यादा साफ होंगे | वहाँ आपको एक भी फेरी वाले भी नहीं मिलेंगे क्योंकि उनको एसी कोच में जाने की अनुमति नहीं है | रेलवे को एसी कोच की सुविधाओं की बहुत फिक्र है | यहाँ अधिकतर लोग शांत बैठे होगें तथा बहुत कम बात कर रहे होगें |यहाँ गौर करने वाली बात ये है कि रेलवे को  समान रूप से सभी कोचेस की साफ-सफाई का ध्यान रखना है |”

                                    स्लीपर कोच की तरफ बढ्ने पर एक नयी क्लास का पता चलेगा | वहाँ आपको आरक्षित सीटों से ज्यादा लोग मिल जाएंगे | बहुत लोग वेटिंग का टिकट ले कर अपनी बर्थ की जुगाड़ के लिए घूम रहे होंगे | स्लीपर क्लास में आपको चाय वाला, नमकीन वाला, और भी बहुत फेरी वाले मिल जाएंगे | झाड़ू लगाने वाले, भीख मांगने वाले और करतब दिखाने वाले भी मिल जाएंगे | स्लीपर कोच में बाथरूम की स्थिति बहुत ही दयनीय दशा में होती है | ट्रेन में लोग कई ज्वलंत मुद्दों पर बात कर रहे होते हैं | भारत में सबसे कम भीड़ आपको कहाँ मिलेगी ? सोचने और विचारने पर पता चलेगा कि सबसे कम भीड़ पॉश कॉलोनी में है | उससे ज्यादा भीड़ मध्यम श्रेणी के रहने के स्थानों में मिलेगी  और सबसे ज्यादा भीड़ बस्तियों में  मिलेगी | बिल्कुल यही हाल ट्रेन का है |



                                           जनरल कोच की तरफ बढ़ने पर यकायक आपको भीड़, गंदगी के दर्शन होने लगेगे और यह होना लाजिमी भी है | आपको जनरल कोच में लोग ज़मीन पर, समान रखने वाली जगह पर, बाथरूम के पास गैलरी में चद्दर में लोग लटके हुए मिल जाएंगे | कुछ खड़े-खड़े सोते हुए आपको मिल जाएंगे | और इसी बीच आपको बाथरूम जाना हो तो आपको कई लोगों के ऊपर से गुजरना होगा | हो सकता है कि धक्का-मुक्की भी करनी पड़े | बाथरूम पहुँच कर आपको घिन आने लगेगी क्योंकि वहाँ कोई सफाई करने ही नहीं आता है | कहने का मतलब यह है कि आज भी गरीब तबके को सरकार ने हाशिये पर रख रखा है और इसमें सिर्फ सरकार ही नहीं हम गरीब तबके के लोग भी कुछ हद तक दोषी हैं | पुलिस वाले भी इन्ही डब्बों में आकर दादगीरी दिखाते हैं क्योंकि और कहीं वे दिखा नहीं सकते हैं | जनरल कोच में मूलभूत व्यवस्थाओं की धज्जियां उड़ी हुई होती हैं |


                                        अंत में आपसे एक सवाल पूछना चाहता हूँ कि “आप आज वर्तमान में भारत को गरीबों के विकास के मामले में कहाँ देखते हैं  या गरीब तबका आज सिर्फ महज वोट बैंक बन कर रह गया है |” सरकार द्वारा गरीबों का मज़ाक उड़ाया जाना यह प्रदर्शित करता है कि सरकार को इस तबके के विकास से कोई मतलब नहीं है | सवाल यह है हर स्टेशन पर एसी कोच में सफाई होती है तो अन्य कोच में क्यों नहीं ? कुछ विद्वान जन इसके समर्थन में कहेंगे कि एसी का किराया बहुत अधिक होता है और उनसे इन सभी सुविधाओं के पैसे लिए जाते हैं | उनके लिए एक सीधा सा जवाब यह है कि “रेलवे का कम सभी यात्रियों को सही और साफ सुथरे तरीके से उनके गंतव्य तक पहुंचाना होता है न कि किसी एक कोच के यात्रियों को |” 

Sunday, September 29, 2013

फिल्म समीक्षा: The War U Don’t See


निर्माता : एलन लोरी, जॉन पिल्गर, क्रिस्टोफर हर्ड
निर्देशन : एलन लोरी, जॉन पिल्गर
कहानी लेखन : जॉन पिल्गर
संगीत : सचा पुट्टनम
कलाकार : जॉन पिल्गर, रागेह ओमार, डैन रेदर, मार्क कार्टिस,                          कार्नेरॉसजूलियन अंसाजे, सिनथिया मैककिनी
समयावधि : 97 मिनट
रेटिंग :     5/5
                                           जॉन पिल्गर ने अपनी फिल्म द वार यू डांट सी में पत्रकारिता के बीच संघर्षों को दिखाया है | उन्होने यह भी परीक्षण किया है कि किस तरह सरकार अपने फायदे के लिए मानवीयता को भूलकर युद्ध कराने में जुट जाती है |
                                           उन्होने एक महत्वपूर्ण सवाल उठाया है कि इराक और अफ़गानिस्तान जैसे खूंखार तथा भयावह युद्ध में मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिए और युद्ध के अपराध को कैसे तर्कसंगत तथा न्यायोचित तरीके से रिपोर्ट किया जाए | जिनका यह पेशा है उनका काम यह है किसी शक्ति के दवाब में न आ कर सच्चाई को जनता तक पहुंचाना चाहिए | इस फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि किस तरह सरकार प्रैस की स्वतन्त्रता का गला घोंट कर अपने काले कारनामों को सही ठहराने के लिए मीडिया का गलत उपयोग करती है |
                                        रणनीतिक साझा के तहत किए गए राजनीतिक युद्ध में मानवता की परवाह किए बिना कई बच्चे मारे जाते हैं, कई औरतें विधवा हो जाती हैं, कई लोगों को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ता है, कई माताओं को अपने बच्चों से जुदा होना पड़ता है |
                                        युद्ध की स्वतंत्र हो कर करनी चाहिए | उन्होने कई लोगों जैसे स्टुअर्ट ऐवेन, मेल्विल गुडमैन, ब्रायन व्हाइटमैन, मार्क करटिड, गाय स्मालमैन आदि का साक्षात्कार किया | कई लोगों ने इस बात को स्वीकारा है कि इराक युद्ध के समय गलत तरीके से रिपोर्टिंग हुई थी |
                                      अंत में बस यही कहना चाहूँगा कि यदि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के षड्यंत्र को देखना हो, ताकतवर देशों की दादगीरी व उसका परिणाम देखना हो, तो यह फिल्म जरूर देखें | आपको कई बातें पता चल जाएंगी व आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे | जो पत्रकार खोजी, स्वंतंत्र तथा आलोचनामात्मक पत्रकारिता करना चाहते हैं , वे इस फिल्म को जरूर देखें |
                                       


Wednesday, September 25, 2013

What is to mean be a university student ?

Being an   intrinsic part of university is a kind of experience which everyone wishes. A university student means intellectuality,   gaining more and more knowledge, analysis of subjects because it is our best time of learning education in our life-period. Another meaning of a university student is that if you have more money then you will be respected by others. In present time, money defines your living standard, status, power and liberty. Money means liberty and modernity. Being a university student means not only to get degree or something. It can be a debatable issue.  Being a student is a form of initiation .Naturally student is usually attacked from the wrong point of view by the ruling class society. None of us want to know that what I have to achieve? It is most needed but no one care about this because today, we care about only market.
                                                                                       “Guy Debord”   a    Situationist  argued in his famous book” the society of the spectacle”  that  spectacle is a fake reality which makes capitalist degradation of human life.”.    in   examination, most of us want to pass. We are becoming factory products. Colleges are factory and we are the products of   factory.
                                                                                           Before 1991, in university areas, there were many books’ centre, bunches of student discussion with different issues, but today, there are so much showrooms, pubs etc. after 1990, Neo-liberalization came into India. It creates a big   difference   in university students.  Today, students are moving towards fake reality. Today money defines what you are?   Governments    want   to cut subsidy in the sector of education. It is a totally unfair.  Most   developed countries talking about free education while in India, we are going in reverse.  Education and knowledge are now in consuming culture. Our society became consumer society. Our government does not care about education of labour class’ children. Delhi University, the leading university of the country is now becoming more students centric and working hard for producing better and trained graduates. The D.U. proposed a number of changes and reforms which are more focused towards making students industry ready. It has already introduced a couple of changes and reforms such as semester system, 4th year graduation system, meta university concept. These changes are happening because of market demand. The kind of education provided here is able to make students competitive, self reliant and expressive but unfortunately this scenario is constrained only to the top colleges of university. Others are working in the same commercial manner in which other universities are. Students want to take admission in commerce courses, economics courses because these courses are the demand of market. At one point or the other, education is something that matters in life. This is something making education a new market in globalization but definitely university and students need to do something regarding this. Students unions are   not   working   well   today   while   before 1990, university students   were conscious about university reforms issues, education reform issues. Student unions are focused to   their   position   in M.L.A. and M.P. elections.
                                                                                          As far as   liberty is concerned, students are free to exercise their   will   but   today   because   of       such   undemocratic   decisions, we can say that authority became dictator. Because of the   introduction of semester system recently life has turned upside down. Everything is done in hurry which ultimately results in shaped concepts.
                                                                                      Overall there are merits and demerits present in the system of universities. Merits needs more finishing so that it can be taken to another level and demerits have to be corrected in all possible ways. In universities, some changes should have happen because it is necessary.  These changes are like       social security,   our   liberty,   our level of education. We need to think seriously about the kind of education that is provided by the prevailing system of schooling in India. As we move towards globalization society rewards who do well in examinations.  We  are not  competitive. We are creating a bad competition. Today, university student means consume education. Today a relationship between student and university is like product of factory.  Situation   can be change. Students can make changes in this system because the structure is such like that we are bound to structure. Rights have given to the students that  you  can  protest, complain of the bad teacher to the authority, to ask about any spend in college area but it is totally fake reality. Naturally, in this situation students are usually attacked by the wrong point of view by the ruling class. If we are supporting strike for the semester system then there are taken many actions against the students while we are asking in a democratic way that on which basis you want semester system in university in a hurry. They have not any answer.  The market has one central principle- the loss of self in the aimless and unconscious creation of a world beyond the control of its creators. For attack on this principle, We need reformation or revolution. I think we need revolution to change system because without this we can not do anything. Critique of system’s fake reality now became very necessary because in this system, there is no care about student’s interest. They force to be a part of this unfair system of education. We are focusing towards quantitative education. We are not caring about quality education. I am a student of Delhi University, one of the best university in India, but I think college days are not happy days because we are not sure about our future. Today, every day, every minute is important in this competitive world. If we do something today think about the value added because of that what are you thinking of achieving in life and how are going to achieve it. It does not matter in which way you achieve the goal but you have to achieve your goal. We are forced for good result in every subject even we are not interested. Why? This is my college. For three years, it’s my home.  There are some questions arise in my mind, being a university student, what did I learn, what did I achieve?



Sunday, September 15, 2013

मिस्टर एंड मिसेस अय्यर : फिल्म समीक्षा

मिस्टर एंड मिसेस अय्यर : फिल्म समीक्षा

बैनर : एम जी डिस्ट्रीब्यूसन और टिप्स एक्सपोर्ट
निर्माता : एन वेंकटसन और रूपाली मेहता
निर्देशन : अपर्णा सेन
कहानी लेखक : अपर्णा सेन
संगीत : ज़ाकिर हुसैन
कलाकार : राहुल बोस, कोंकणा सेन शर्मा, भीष्म साहनी, सुरेखा सीकरी, सुनील मुखर्जी, अंजन दत्त, ईशा चौहान, निहारिका सेठ
सेंसर सर्टिफिकेट : यू/ए 120 मिनट
रेटिंग : 3.5/5

                                          फिल्म की शुरुआत बच्चे के डरावने चेहरे से होती है | टेरर (भय), दुनिया में लगातार बढ़ता जा रहा है | दंगों के कारण, आतंकी हमलों के कारण, और भी कई कारणों से लगातार भय बढ़ता जा रहा है | इस फिल्म में सांप्रादयिक दंगों, प्रशासन का इन दंगों के कारण बेबस होना, धर्म का कट्टरपन, लोगों में डर की भावना को बखूबी दिखाया गया है और साथ ही साथ प्यार को भी बखूबी दिखाया गया है |
                                          सब कुछ अच्छा चल रहा होता है, अचानक सड़क ब्लॉक होती है और बस दूसरे रास्ते की ओर मुड़ जाती है | अचानक पुलिस आती है और सबको बस के अंदर बैठने को कहती है | दंगें भड़क गए हैं | बस में एक व्रद्ध मुस्लिम जोड़ा बैठा होता है | जब दंगाई आते हैं तो एक व्यक्ति कहता है कि ये मुस्लिम हैं और वे मुस्लिम जोड़े को बाहर ले जाते हैं | अगले दिन सुबह में उसी बूढ़े व्यक्ति के दांत दिखाई देते हैं | सोचने पर मजबूर कर देने वाला यह द्रश्य यह दिखाता है कि सांप्रदायिक दंगों में हम हमारी मानवता, विवेक भूल जाते हैं | इसके बाद कहानी आगे बढ़ती है और मीनक्षी अय्यर और जहांगीर चौधरी में धीरे- धीरे बात-चीत शुरू हो जाती है |  
                                          कहानी शुरू होती है सांप्रादयिक दंगों से, लेकिन कहानी धीरे- धीरे प्यार में बदलती जाती है | यहाँ ऐसा लगता है कि अब मानो सब कुछ सामान्य सा हो गया है लेकिन अचानक फिर आग से एक बच्ची को बचाना, फिर मीनक्षी अय्यर के सामने रात में एक और की मौत |  फिर से यह लगने लगता है कि स्थितियाँ कब सामान्य होगी ?

                                     
  राहुल बोस और कोंकणा सेन ने बेहतरीन अभिनय किया है तथा फिल्म की सबसे अच्छी बात फिल्म की तारतम्यता लगातार बनाए रखना है | कुल मिलाकर यह फिल्म उम्दा है लेकिन एक बात है कि फिल्म का संदेश कहीं कहीं भटक जाता है |

Monday, September 09, 2013

तुम हो कल का भविष्य.......


“बच्चे देश का भविष्य होते हैं लेकिन भारत देश में आज भी कई बच्चे अपने बचपन को नहीं देख पाते हैं तथा अमानवीय कार्य करने पर मजबूर हो जातें   हैं | उम्र तो उनकी खेलने, पढ़ने की है लेकिन वो कुछ और ही करने पर मजबूर हैं |”

भारत, एक उभरता हुआ देश जो कि नित्य नयी ऊचाइयों को छू रहा है लेकिन उभरते हुए भारत की एक और तस्वीर है | ध्यान देने की बात यह है कि बच्चों से भीख मंगवाना, उनसे काम करवाना एक दंडनीय अपराध है | लिए गए सभी चित्र बेरसराय झुग्गी बस्ती क्षेत्र के आस पास के हैं |
                                       इन चित्रों से कई गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं | पहला यह कि इनको भीख मांगने पर मजबूर कौन कर रहा है ? शिक्षा के अधिकार के तहत बच्चों को 6 से 14 साल तक पढ़ाना अनिवार्य    है | सरकार ने इनके लिए मुफ्त शिक्षा का प्रावधान कर रखा है फिर भी ये बच्चे कूड़ा बीन रहे हैं, भीख मांग रहे हैं, सामान बेच रहे हैं | दूसरा सवाल यह है कि बच्चों से काम करवाना एक दंडनीय अपराध है लेकिन यहाँ तो कानून का माखौल उड़ाया जा रहा है |

                          जब मैंने बच्चों से पूंछा कि आप को यह सब काम करने को कौन बोलता है तो उन्होनें मुझे इस सवाल का जवाब नहीं दिया और वे आगें निकल गए | यहाँ तक की वे सभी अपनी फोटो नहीं लेने दे रहे  थे | मैंने जब इसका कारण पूंछा तो उसमें से करीब 8 साल के एक बच्चे ने बताया कि हमें फोटो खिचवाने के लिए मना किया गया है और यह हमारे मास्टर ने कहा है | फिर मैं इसके बाद उनके कैंप गया जिसमें सरकार की तरफ से उनके रहने, खाने, पढ़ाई के लिए फ़ंड आता है | जब उनके मुख्य से यह सवाल पूंछा गया तो उन्होंने स्पष्ट तथा संतोषप्रद जवाब नहीं दिया | उनका स्पष्ट तरीके से जवाब न दे पाना सरकार, प्रशासन तथा उनके मुखिया को कठघरे में खड़ा कर रहा है |  सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह कि मास्टर कौन है? जरूरत है एक गहन जांच पड़ताल की, जिससे हमारा कल का भविष्य सुधर सके |