Sunday, February 02, 2014

हम सब एक हैं, फिर नाइंसाफी क्यों ?



“भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15 कहता है धर्म, समुदाय, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर राज्य किसी भी नागरिक के साथ कोई भेदभाव नहीं करेगा |” दिल्ली के लाजपतनगर में अरुणाचल प्रदेश के नीडो तनियम की हत्या के बाद लोगों ने भारी संख्या में आकर जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन और कैन्डल मार्च किया | सामाजिक कार्यकर्ता बिना लक्ष्मी का
बिना लक्ष्मी बोलते हुए 
कहना है कि जब तक हमारी मांगे नहीं मानी जाएंगी तब तक हम धरने पर बैठे रहेंगे | हम भारत में एंटी रेसिस्ट लॉं (anti racist law) की मांग करते हैं | हम इसके लिए दिल्ली सरकार, प्रधानमंत्री से बात करेंगे |
नीडो तनियम की हत्या कोई पहली हत्या या घटना नहीं है | ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है | मई 2013 में चिराग दिल्ली में उत्तर पूर्व की एक महिला की लाश संदिग्ध परिस्थितियों में पड़ी मिली थी | फरवरी 2013 में कुछ अज्ञात लोगों ने मणिपुर के 10 छात्रों को घायल कर दिया था | नवंबर 2010 में मणिपुर की एक महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म की घटना घटी थी | अप्रैल 2009 में महिपालपुर में एक किशोरी के साथ बलात्कार किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी गयी |  ऐसे ही कई मामले हैं, जिनसे एक सवाल उठता है कि “आखिरकार उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों को लगातार निशाना क्यों बनाया जा रहा है?” सामाजिक कार्यकर्ता राबर्ट तमंग’(Robert tamang) ने इन जैसी घटनाओं के बढ्ने के कारणों के बारे में बताया कि “ये घटनाएँ प्रतिदिन होती हैं | किसी को पीटा जाता है, किसी पर भद्दे व्यंग किए जाते हैं | इन घटनाओं को रोकने के लिए सरकार को कमीशन बैठाना चाहिये, विशेष पुलिस सेल बनानी चाहिए |
                                     पौरमई छात्र संघटन के उपाध्यक्ष विपुनी रूहमर (vipuni ruhmar ) ने कहा कि सात उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है | आफ़स्पा क्यों अभी तक लगाया हुआ है, हम लोकतान्त्रिक देश में रह रहे हैं | आफ़स्पा क्यों नहीं दिल्ली में लगा देना चाहिए, यहाँ तो कई बड़े गुंडे हैं |  हम समानता लाना चाहते हैं लेकिन ये समानता उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए क्यों नहीं ?
                                     “सेंटर ऑफ नॉर्थ ईस्ट स्टडीज़ की रिपोर्ट कहती है कि उत्तर-पूर्वी के लोगों का यहाँ की पुलिस, न्याय व्यवस्था पर विश्वास कम होता जा रहा है |भेदभाव के बारे में अधिकतर उत्तर-पूर्वी के लोगों ने यही कहा कि हमें चिंकी, चाउमीन और कभी–कभी तो चाइनीज सम्बोधन से पुकारा जाता है | सवाल यहाँ ये उठता है कि वे भी भारतीय हैं तो फिर उन्हें इस तरह  के भेदभाव का सामना क्यों करना पड़ता है | यह बात ठीक है कि उनकी संस्कृति, भाषा, रंग-रूप अलग है लेकिन हम सभी पहले भारतीय हैं |  इन जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए हमें सबसे पहले अपने शिक्षा-पद्धति को बदलना होगा |  शुरुआती पाठ्यक्रम की किताबों में उत्तर पूर्वी राज्यों के बारे में विस्तार से बताया जाना चाहिए ताकि उत्तर-पूर्वी राज्यों का  मुख्यधारा के राज्यों के साथ मेल-मिलाप और जुड़ाव बढ़ सके | एक आठ वर्षीय छात्रा सुभान्शि कान्त का कहना है कि “हमें पता ही नहीं है कि उत्तर पूर्वी राज्य कहाँ हैं ? हमें इस बारे में ज्यादा पढ़ाया ही नहीं जाता है |
                                       अरुणाचल प्रदेश के पूर्व सांसद खिरेन रिजिजू (khiren rijiju) का कहना है कि “ हमें बहुभाषीय, बहुसांस्कृतिक होने का गर्व है, लेकिन द्वितीय नागरिक की तरह का व्यवहार हम स्वीकार नहीं कर सकते |”
                                           कुछ सवाल मैं आप सभी से पूछना चाहता हूँ ऐसी घटनाएँ लगातार क्यों बढ़ती जा रही हैं क्या वास्तव में भारत सरकार भारत की सात बहनों के साथ सौतेला व्यवहार करता है ? हमारी शिक्षण पद्धति कहीं न कहीं इसके लिए जिम्मेदार तो नहीं है ? आपके अनुसार ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या-क्या करना चाहिये ? मानसिकता बदलनी चाहिए लेकिन कैसे ?


   

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