Friday, July 25, 2014

सी.पी. में बीती हुई एक रात !


सी.पी. में बीती हुई एक रात!

दिल्ली एक खुबसूरत जगह है। यहाँ हर किसी का घूमने का मन करता है। दिल्ली के बीचों-बीच स्थित एक जगह है, जिसे हम कनॉट प्लेस के नाम से जानते हैं। ये जगह वैसे तो बहुत खुबसूरत है, जहां बड़े-बड़े सिनेमाघर हैं, कई बड़ी-बड़ी इमारतें हैं, पत्रकारों का जमावड़ा है, एक बड़ा बाज़ार है। जहां सुबह से लेकर शाम तक ये जगह चमकती रहती है, वहीं 10 बजते ही इस जगह का काला रूप सामने आने लग जाता है। पढ़कर आपको उत्सुकता हो रही होगी न कि आखिरकार ऐसी क्या बात है?  चलिये, ज्यादा सोचिए मत, हम आपको 10 बजे के बाद के कनॉट प्लेस की सैर करातें हैं। 

चलिये, शुरुआत करते हैं, पुरानी दिल्ली से। रात के तकरीबन 9:30 बज रहे थे,

Sunday, July 20, 2014

तमस उपन्यास -


                                                                            तमस उपन्यास

तमस उपन्यास भीष्म साहनी द्वारा लिखित भारतीय इतिहास के एक दुखद अध्याय को व्यक्त करता है । तमस की पृष्ठभूमि देश के विभाजन की घटनाएँ हैं । वो वक़्त हमारे देश का बहुत दुखद अध्याय है । जब लाखों बेगुना लोग अलग- अलग धर्मों को मानने वाले या तो मारे गए या बेघर हुए । औरतों ने अपनी आत्मरक्षा के लिए कुएं में कूदकर जाने दीं, लाशें फूल-फूल कर ऊपर आने लगीं। कई पेट से औरतों के पति मर गए, कई माओं के बच्चे मर गए । कई बूढ़े बेसहारा हो गए । हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों के बीच नफ़रत, शक, द्वेष फैलाकर राजनीतिक दलों ने अपना राजनीतिक मतलब निकालने की कोशिश की गयी । वो जमाना था जब समझ- बूझ के लोग बड़ी ही नासमझी की बात करने लगे थे और कई आम जन इंसानियत की मिशाल पेश कर रहे थे । ये वक़्त था जब देश में देशभक्ति भावना की लहर दौड़ रही थी और दूसरी तरफ देश में बुरी तरह से सांप्रदयिकता का ज़हर घोला जा रहा था । और उस समय कितना खून - खराबा हुआ जिसकी भरपाई असंभव है । उसके नतीजे के फल स्वरुप लोगों में एक दुसरे के प्रति दुर्भावना पैदा हुई,जिसके नतीजे हमें आज तक दिखाई दे रहे हैं । 

तो कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा होगा कि मैं इस समय ये सब बातें क्यों कर रहा हूँ, मैं गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा हूँ? मेरा मन ये भी नहीं कि मैं लोगों की यादें जिंदा करूँ या फिर उन्हें वापस उस डर के सायें में ले चलूँ जहाँ लोग जाना नहीं चाहते । 


आज इस त्रासदी को बीते हुए 67 वर्ष बीत चुकें हैं लेकिन हमारे समाज में साम्प्रदायिक तत्त्व अभी तक ख़त्म नहीं हो पायें हैं । उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,असम में अभी हाल-फ़िलहाल में ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं जिन पर कार्यवाही को भी सियासी रंग चढ़ा दिया है । इन साम्प्रदायिक तत्वों से पीड़ित लोग आज भी न्याय के इन्तजार में हैं । जातीय और धार्मिक दुर्भावना फ़ैलाने वाले लोग आज भी अपनी आवाज उठा रहे हैं । 




तमस उपन्यास में साम्प्रदयिक तत्वों के मंसूबे को बहुत ही बारीकी से बताया गया है । इस उपन्यास के कई वाक्य सीधे दिल को छूते हैं और आपसे कई सवाल करते हैं । एक दृश्य में -
"नाम ?'
"हरनाम सिंह"
"वल्दियत?”
"सरदार गुरदयाल सिंह"
"मौज़ा"
"ढोक इलाहीबख्श"
"तहसील"
"नूरपुर"
"कितने घर हिन्दुओं, सिक्खों के थे?"
"केवल एक घर , मेरा घर जी ।"
बाबू ने सिर उठाया । बड़ी उम्र का एक सरदार सवालों के जवाब दिए जा रहा था। 
"तुम बचकर कैसे आ गए?"

एक और मार्मिक दृश्य-


जसबीर कौर कुँए में कूदी। उसके कूदते ही न जाने कितनी ही स्त्रियाँ कुँए की जगत पर चढ़ गयीं । देवसिंह की घरवाली अपने दूध पीते हुए बच्चे को छाती से लगाकर कूद गयी । प्रेमसिंह की पत्नी तो कूद गयी ,पर उसका बच्चा पीछे ही खड़ा रह गया। उसे ज्ञान सिंह की पत्नी ने माँ के पास धकेलकर पहुंचा दिया। देखते ही देखते गाँव की कई औरतें कुँए में कूद गयीं।

The hasty reformer who does not remember the past will find himself condemned to repeat it. 
- Sir John Buchan

Tuesday, July 15, 2014

क्यों हैं ब्रिक्स देश अहम !!


ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह विश्व की अर्थव्यवस्था को चुनौती देने में, विश्व की अर्थव्यवस्था का केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर लाने में, आईएमएफ़ जैसी संसथाओं को चुनौती देने में लगा हुआ है |
                                                 इस बार ब्रिक्स के समूह की 6वीं बैठक ब्राज़ील के शहर फोरटालेज़ा में सम्पन्न हो रही है | जी-8 देशों लेकिन अब जी-7 देशों (रूस निलंबित) और तमाम विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को ब्रिक्स सम्मेलन से बहुत आशाएँ हैं | भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स समूह में भारत का नेतृत्व कर रहे हैं | ब्राज़ील में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाक़ात ब्राज़ील के राष्ट्रपति डिल्मा रुसेफ़, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा से होगी और साथ ही साथ दक्षिण अमेरिका के कई प्रतिनिधियों से भी होगी |
                                                 

                                         ब्रिक्स है क्या? पहले यह जान लेते हैं | ब्रिक्स एक ऐसी संस्था है जिसका जन्म “गोल्डमैन शैच” के अनुसंधान के फलस्वरूप हुआ है | गोल्डमैन शैच एक निजी पूंजी निवेशक बैंक है | गोल्डमैन शैच के अनुमानों के मुताबिक, ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं जी-7 देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका) की अर्थव्यवस्था से बेहतर सिद्ध होंगी | हालांकि ये बात भी जानने योग्य है कि  अध्ययन के विषयों को वास्तविक रूप देने का कार्य चारों राष्ट्रों के नीति-नियंताओं द्वारा ही सम्पन्न किया गया था |
                                             शुरुआत में इसे ब्रिक कहते थे | इसका पहला सम्मेलन 2009 में रूस में हुआ था | 14 अप्रैल, 2011 में चीन के सान्या में हुए ब्रिक सम्मेलन में यह ब्रिक से ब्रिक्स में परिवर्तित हो गया क्योंकि इसमें शक्तिशाली अर्थव्यवस्था दक्षिण अफ्रीका जुड़ी | दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद  ब्रिक्स देशों की जीडीपी विश्व की  25 फीसदी जीडीपी से अधिक है | ब्रिक्स देशों की कुल जनसंख्या विश्व की 41% जनसंख्या है | जीडीपी की पीपीपी (क्रय शक्ति समतुल्यता) में मूल्यांकन करें, तो यह हिस्सेदारी 26.7 फीसदी बैठती है | जी-7 देशों की पीपीपी आधार पर जीडीपी विश्व अर्थव्यवस्था की 38.3 फीसदी है |
                                          इस संगठन के पक्ष में कई आंकड़े हैं | अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कोष के अनुसार, वर्ष  2015 तक ब्रिक्स देश पूंजी और तकनीकी से जुड़ी विश्व की लगभग आधी मांगों को पूरा करेंगे लेकिन ऐसा प्रतीत होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है | फोर्ब्स जैसी पत्रिका ने इस संगठन को विश्व अर्थव्यवस्था के एक नए चालक के रूप में स्वीकार किया है |
                                            ब्रिक्स समूह देशों में सबसे प्रमुख मुद्दा, ब्रिक्स देशों का अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक होगा | यदि यह योजना सफल हो जाती है , तो वर्तमान विश्व-व्यवस्था में ये विश्व बैंक और आईएमएफ़ को चुनौती देगा | 2013 में, डरबन में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में सभी देशों ने अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक के लिए सहमति दे दी थी |  हालांकि इस बार, ब्रिक्स सम्मेलन मार्च 2014 में होना था लेकिन कुछ कारणवश यह 15-16 जुलाई के बीच सम्पन्न हो रहा है |
                                            यदि ब्रिक्स समूह के देशों की बात करें, तो सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था चीन की है | बाँकी देशों को इस बात का डर है कि कहीं चीन इसमें ज्यादा अधिकार न जताने लगे और कहीं इसका इस्तेमाल चीन अपने हिट साधने के लिए न करने लगे |  यदि भारत के रुख की बात करें, तो भारत को इस बात की सबसे ज्यादा फिक्र है कि कहीं पलड़ा एक तरफ़ न झुक जाए | ब्रिक्स समूह का अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक बनना अंतर्राष्ट्रीय हितों को चुनौती देगा क्योंकि ब्रिक्स देश आईएमएफ़, विश्व बैंक के समानान्तर एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करने जा रहे हैं और यदि इस व्यवस्था में किसी एक का पलड़ा भारी होगा तो सीधी सी बात है कि उस अर्थव्यवस्था में विरोध होगा ही |
                                            इस व्यवस्था में होना यह चाहिए कि सभी देश बैंक में बराबर-बराबर हिस्से का योगदान दें, लेकिन शायद ये संभव नहीं हो पाएगा | अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का आधार ही यही है कि जो ज्यादा आर्थिक रूप से शक्तिशाली होगा, उसका प्रभुत्व उतना ही ज्यादा होगा |
                                          ब्रिक्स देशों में भारत की भूमिका अहम है | ब्रिक्स रिपोर्ट ने यह माना है कि भारत ही एक मात्र ऐसी अर्थव्यवस्था है जो वर्ष 2050 तक 5% से ऊपर वृद्धि  दर कायम रखने में समर्थ है | विश्व की क्रय शक्ति समतुल्यता ( purchasing power parity)  के मामले में भारत का विश्व में अब तीसरा स्थान है | दक्षिण–पूर्व एशिया की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होने के कारण, उसमें एक बड़े बाज़ार की संभावना के चलते विश्व के शक्तिशाली देशों ने अपने हितों को साधने के लिए भारत को महत्त्व देना शुरू कर दिया है |
                                           ब्रिक्स देशों में शामिल देशों की बात करें, तो सबसे पहले हमें सभी देशों के विशेषतया आर्थिक, राजनैतिक संबंध देखने होंगे| ब्रिक्स में सबसे बड़ा विवाद भारत – चीन सम्बन्धों को लेकर है |  यदि भारत और चीन के बीच व्यापार में तुलना की जाए, तो भारी व्यापारिक असंतुलन दिखाई देता है | व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ है |  भारत और चीन के बीच आयात-निर्यात संतुलन की बात करें, तो भारत चीन से आयात बहुत कम, निर्यात बहुत अधिक करता है | सर्वप्रथम इस मुद्दे को सुलझाना होगा | हालांकि, इसके लिए पहल उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी की यात्रा के बाद शुरू कर दी गयी है | दूसरा प्रमुख मुद्दा है भारत-चीन सीमा विवाद | भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए पिछली सरकार ने भी काम किया है और नवनिर्वाचित सरकार भी भारत-चीन रिश्तों को सामान्य करने के लिए लगातार प्रयासरत है | भारत और रूस की बात करें तो भारत को रूस की परंपरागत मित्रता से काफी फायदा हुआ है, लेकिन रूस के भी अपने व्यापारिक, सामरिक और राजनीतिक हित हैं | रूस को अभी हाल फिलहाल में जी-8 देशों की सदयस्ता से निलंबित कर दिया गया है | भारत के साथ ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के रिश्तों की बात की जाए , तो उनहोंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समीति में सुधार के लिए बार्सिलिया घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | एक समूह आईबीएसए बनाया गया जिसकी पहली बैठक सितंबर, 2006 में हुई थी और इसकी छठवीं बैठक 2013 में भारत में ही सम्पन्न हुई थी | आईबीएसए समूह के चलते भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के संबंध सुधरे हैं क्योंकि यूएन में तीनों देशों के हित कई मायनों में एक ही हैं |
                                                       ब्रिक्स देशों के बीच कारोबार की बात करें, तो यह लगभग 300 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है | 2015 तक इसके 500 अरब तक पहुँचने का अनुमान   है | 2002 में ये महज़ 27.3 डॉलर था | लेकिन सवाल यहाँ ये उठता है कि व्यापार यदि एक ही देश के पक्ष में हो, तो  वह फिर व्यापार नहीं बन पाएगा |
                                                      दूसरा, एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु ये है कि ब्रिक्स शिखर वार्ता में डॉलर के विकल्प के रूप में दूसरी मुद्रा प्रणाली विकसित करने का भी मुद्दा उठाया गया था | ब्रिक्स देशों के विदेशी विनिमय कोष का अधिकांश भाग डॉलर में है | किसी न किसी तरह से हमें डॉलर पर निर्भरता घटानी होगी क्योंकि डॉलर में गिरावट का परिणाम होगा पूंजी का अवमूल्यन | इसे अमेरिका किसी भी कीमत पर रोकना चाहेगा | डॉलर के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिए, एक दूसरा कदम ये उठाया गया था कि पारस्परिक भुगतान और ऋण डॉलर में देने के बजाय राष्ट्रीय मुद्रा में प्रदान किया जाएगा | अभी हाल ही में रूस और चीन ने गैस के मूल्य का भुगतान राष्ट्रीय मुद्रा में करने का निर्णय लिया है |
                                                      अब सवाल ये उठता है कि वाकई में ब्रिक्स समूह अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को चुनौती देना चाहते हैं, तो उन्हें डॉलर के प्रभाव को कम करके रियल, रूबल, रुपया, रैनमिम्बी और रैंड में भुगतान और ऋण देना होगा तभी वे विश्व अर्थव्यवस्था में चुनौती दे पाएंगे |
                                                      अंतर्राष्ट्रीय जगत ब्रिक्स समूह की ओर नज़रें गड़ाए बैठा है | यदि इसमें संस्थागत ढाँचे की स्थापना पर हस्ताक्षर हो जाएँ, तो यह एक बड़ा कदम होगा | अमितेन्दु पालित के अनुसार, “अंतर्राष्ट्रीय जगत यह देखने के लिए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पर पैनी निगाहें जमाये हुए हैं कि इस समूह में शामिल देश विश्व और भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं ?

                                                      अभी हाल ही में, चीन और भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ है | भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की चीन यात्रा में कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक मसलों पर हस्ताक्षर हुएँ हैं | ऐसे में यह आशा है कि नयी सरकार पुरानी बातों को भुलाकर आगे एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाए और ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना करवाएँ |

Thursday, July 10, 2014

A Short Documentary on transgender

काफ़ी वक़्त से इसको पूरा करने की सोच रहा था | जब आईआईएमसी में था, तब सोचा था कि किन्नरों पर एक short audio documentary बनाऊँ, लेकिन कुछ कारणों से उस समय इसे पूरा न कर सका | आज वो काम भी पूरा हो गया | इस डौक्यूमेंटरी को पूरा करने में, स्क्रिप्ट तैयार कराने में कुछ लोगों ने मेरी सहायता की, उनका तहे दिल से शुक्रिया | प्रस्तुत है किन्नर समुदाय पर एक short audio documentary, वक़्त मिले तो एक बार सुनियेगा जरूर |
https://www.youtube.com/watch?v=KQ00_t58Hbk

Tuesday, July 08, 2014

गरीबी का माखौल उड़ाते आकड़ें |


गरीबी का माखौल उड़ाते आकड़ें |

गरीबी, गरीबी है क्या? चुनाव आते ही हर पार्टी को क्यों अचानक से गरीबी की याद आ जाती है ? भारत में गरीबी भी एक अजूबे की तरह हो गयी है, जिसे जो चाहे, जैसे चाहे, अपने हिसाब से मोड़ देता है और अपने हिसाब से जोड़ देता है | कैसी विडम्बना है ये ? काँग्रेस अपने कार्यकाल में लगातार यह कहती रही कि हमारे कार्यकाल में गरीबी कम हुई  है | तेंदुलकर समीति का गठन भी भारत में गरीबों की संख्या जाने के लिए किया गया था | आंकड़े किस प्रकार से, किस आधार से, कैसे सुझाए जाते हैं, ये तो मेरी समझ से परे हो जाते हैं |
                                         तेंदुलकर समीति ने गरीबी का पैमाना आंकड़ो के आधार पर निर्धारित किया था | तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में 33 रुपए यानि कि 1000 रुपए प्रति महीने से कम खर्च करने वाले को गरीब माना था जबकि  गावों में यह आंकड़ा 27 रुपए था यानि कि 816 रुपए प्रति महीने से ज्यादा खर्च करने वाला गरीब नहीं है | उस समय तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट पर काफ़ी हंगामा हुआ था | बड़ी–बड़ी बहसें हुईं | नेताओं के बड़े- बड़े बयान आए | 
                                                सी॰ रंगराजन समीति का गठन, तेंदुलकर समीति की समीक्षा करने के लिए किया गया |  सी॰ रंगराजन की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ समूह ने तेंदुलकर समीति के गरीबी के फार्मूले को खारिज़ कर दिया और उन्होंने गरीबी का एक नया फार्मूला दिया | सी॰ रंगराजन समीति की रिपोर्ट के मुताबिक, शहरों में 47 रुपए रोज़ाना और गावों में 32 रुपए रोज़ाना खर्च करने वाला गरीब नहीं है | यानि कि चंद रुपए बढ़ाकर, गरीबी का नया पैमाना निर्धारित कर दिया गया |
                                             तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट में गावों में गरीबी का मानक 816 रुपए प्रति माह से ज्यादा खर्च वाला गरीब नहीं था, तो सी॰ रंगराजन समीति की यह 56 रुपए बढ़कर 972 रुपए हो गया | मतलब, अब गावों में जो 972 रुपए से ज्यादा एक महीने में खर्च कर देता है वह गरीब नहीं है |  शहरों में रहने वालों की बात करें, तो समीति के मुताबिक 47 रुपए रोज़ाना खर्च करने वाला गरीब नहीं है | मतलब महीने के 1407 रुपए वाला कमाने वाला गरीब नहीं है |
                                              मैं भी, समीति के इन आंकड़ों को लेकर, मेरे घर के पास एक भुट्टे वाली ठेली के पास पहुंचा | मैंने कहा कि आप महीने में 1407 रुपए से ज्यादा कमा लेते हो न ? उन्होंने कहा- हाँ | मैंने उनसे कहा कि सरकार के नए आंकड़ो के अनुसार, आप गरीब नहीं हैं | उन्होंने कहा कि आज-कल तो दवा-दारू में ही एक बार डॉक्टर को दिखाने में 200-400 रुपए लग जाते हैं |  दाल, सब्जी, दूध सब तो इतना मंहगा है | आप ही बताओ ऐसे में क्या 1407 रुपए से ज्यादा कमाने वाला गरीब नहीं होगा ?

                                             यदि आप समीति के आंकड़ो को मानते हैं, तो उनके अनुसार एक व्यक्ति को एक दिन में थोड़ी सी ( मुट्ठी भर भी नहीं ) दाल, चावल और एक-दो रोटी से काम चल जाएगा | इस समय बाजार में सब्जियों, दाल, रोटी , तेल के कितने भाव हैं, ये भी तो देखना पड़ेगा | यदि इन आंकड़ों को मान लें, तो देश में अधिकतर कर्मचारी, ठेले वाले काहे के गरीब होंगे |
                                            मैं इन्हीं आंकड़ों को लेकर एक भिखारी के पास पहुंचा और उससे बस एक ही सवाल पूछा कि भैया ! एक दिन में कितना कमा लेते हो ? जवाब में उसने कहा कि 50-100 रुपए रोज़ाना के निकल आतें हैं | समीति के आंकड़ों के अनुसार, यह भिखारी भी गरीब नहीं है |

                                            सी॰ रंगराजन समीति ने देश की आबादी में औसतन अपने 10 में से 3 के गरीब होने के आकलन को जायज़  ठहराया है | रंगराजन समीति के अनुसार, भारत में 2011-2012 में कुल आबादी का 29.5 फीसद गरीब था, जबकि तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 21.9 फीसदी था | सी॰ रंगराजन कह रहे हैं कि उनका गरीबी का आकलन वैश्विक मानकों के मुताबिक है |
                                           गरीबी के निर्धारण के आंकड़े, भारत जैसे देश के लिए अत्यंत आवश्यक हैं, क्योंकि भारत में गरीबों को लाभान्वित करने के लिए कई योजनाएँ गरीबी के पैमाने पर ही आधारित हैं | सवाल यहाँ ये उठता है कि गरीबी के पैमाना का निर्धारण आर्थिक आधार पर ही होना चाहिए  या फिर इसमें एक स्वस्थ्य जीवन-शैली ( पेट भर खाना, साफ पानी और शौचालय) , स्वास्थ्य और शिक्षा की गुणवत्ता को भी मापना चाहिए? संयुक्त राष्ट्र संघ के क़ृषि और खाद्य संघटन के मुताबिक, 2012 में भारत में 21.7 करोड़ लोग कुपोषित थे | दुनिया में भूखे लोगों वाले 79 देशों की सूची में भारत 75वें नंबर पर है | कुछ आंकड़े, ये भी कहते हैं कि अमीरी और गरीबी के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है |


                                           यदि आंकड़ों के मकड़जाल का कुचक्र इसी तरह से जारी रहा, तो गरीब, गरीब ही रह जाएगा और हर साल समीति के पुन: निरीक्षण करने के लिए नयी समीतियों का गठन होता रहेगा | भारत में, वास्तव में गरीबी, अभी तक आंकड़ो में ही उलझी हुई है |