Sunday, July 20, 2014

तमस उपन्यास -


                                                                            तमस उपन्यास

तमस उपन्यास भीष्म साहनी द्वारा लिखित भारतीय इतिहास के एक दुखद अध्याय को व्यक्त करता है । तमस की पृष्ठभूमि देश के विभाजन की घटनाएँ हैं । वो वक़्त हमारे देश का बहुत दुखद अध्याय है । जब लाखों बेगुना लोग अलग- अलग धर्मों को मानने वाले या तो मारे गए या बेघर हुए । औरतों ने अपनी आत्मरक्षा के लिए कुएं में कूदकर जाने दीं, लाशें फूल-फूल कर ऊपर आने लगीं। कई पेट से औरतों के पति मर गए, कई माओं के बच्चे मर गए । कई बूढ़े बेसहारा हो गए । हिन्दुओं, मुसलमानों, सिक्खों के बीच नफ़रत, शक, द्वेष फैलाकर राजनीतिक दलों ने अपना राजनीतिक मतलब निकालने की कोशिश की गयी । वो जमाना था जब समझ- बूझ के लोग बड़ी ही नासमझी की बात करने लगे थे और कई आम जन इंसानियत की मिशाल पेश कर रहे थे । ये वक़्त था जब देश में देशभक्ति भावना की लहर दौड़ रही थी और दूसरी तरफ देश में बुरी तरह से सांप्रदयिकता का ज़हर घोला जा रहा था । और उस समय कितना खून - खराबा हुआ जिसकी भरपाई असंभव है । उसके नतीजे के फल स्वरुप लोगों में एक दुसरे के प्रति दुर्भावना पैदा हुई,जिसके नतीजे हमें आज तक दिखाई दे रहे हैं । 

तो कई लोगों के मन में सवाल उठ रहा होगा कि मैं इस समय ये सब बातें क्यों कर रहा हूँ, मैं गड़े मुर्दे क्यों उखाड़ रहा हूँ? मेरा मन ये भी नहीं कि मैं लोगों की यादें जिंदा करूँ या फिर उन्हें वापस उस डर के सायें में ले चलूँ जहाँ लोग जाना नहीं चाहते । 


आज इस त्रासदी को बीते हुए 67 वर्ष बीत चुकें हैं लेकिन हमारे समाज में साम्प्रदायिक तत्त्व अभी तक ख़त्म नहीं हो पायें हैं । उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र,असम में अभी हाल-फ़िलहाल में ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं जिन पर कार्यवाही को भी सियासी रंग चढ़ा दिया है । इन साम्प्रदायिक तत्वों से पीड़ित लोग आज भी न्याय के इन्तजार में हैं । जातीय और धार्मिक दुर्भावना फ़ैलाने वाले लोग आज भी अपनी आवाज उठा रहे हैं । 




तमस उपन्यास में साम्प्रदयिक तत्वों के मंसूबे को बहुत ही बारीकी से बताया गया है । इस उपन्यास के कई वाक्य सीधे दिल को छूते हैं और आपसे कई सवाल करते हैं । एक दृश्य में -
"नाम ?'
"हरनाम सिंह"
"वल्दियत?”
"सरदार गुरदयाल सिंह"
"मौज़ा"
"ढोक इलाहीबख्श"
"तहसील"
"नूरपुर"
"कितने घर हिन्दुओं, सिक्खों के थे?"
"केवल एक घर , मेरा घर जी ।"
बाबू ने सिर उठाया । बड़ी उम्र का एक सरदार सवालों के जवाब दिए जा रहा था। 
"तुम बचकर कैसे आ गए?"

एक और मार्मिक दृश्य-


जसबीर कौर कुँए में कूदी। उसके कूदते ही न जाने कितनी ही स्त्रियाँ कुँए की जगत पर चढ़ गयीं । देवसिंह की घरवाली अपने दूध पीते हुए बच्चे को छाती से लगाकर कूद गयी । प्रेमसिंह की पत्नी तो कूद गयी ,पर उसका बच्चा पीछे ही खड़ा रह गया। उसे ज्ञान सिंह की पत्नी ने माँ के पास धकेलकर पहुंचा दिया। देखते ही देखते गाँव की कई औरतें कुँए में कूद गयीं।

The hasty reformer who does not remember the past will find himself condemned to repeat it. 
- Sir John Buchan

No comments:

Post a Comment