गरीबी का
माखौल उड़ाते आकड़ें |
गरीबी, गरीबी है क्या? चुनाव आते ही हर पार्टी को क्यों
अचानक से गरीबी की याद आ जाती है ? भारत में गरीबी भी एक
अजूबे की तरह हो गयी है, जिसे जो चाहे,
जैसे चाहे, अपने हिसाब से मोड़ देता है और अपने हिसाब से जोड़
देता है | कैसी विडम्बना है ये ?
काँग्रेस अपने कार्यकाल में लगातार यह कहती रही कि हमारे कार्यकाल में गरीबी कम
हुई है | तेंदुलकर
समीति का गठन भी भारत में गरीबों की संख्या जाने के लिए किया गया था | आंकड़े किस प्रकार से, किस आधार से, कैसे सुझाए जाते हैं, ये तो मेरी समझ से परे हो जाते
हैं |
तेंदुलकर
समीति ने गरीबी का पैमाना आंकड़ो के आधार पर निर्धारित किया था | तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट के अनुसार, शहरों में 33
रुपए यानि कि 1000 रुपए प्रति महीने से कम खर्च करने वाले को गरीब माना था
जबकि गावों में यह आंकड़ा 27 रुपए था यानि
कि 816 रुपए प्रति महीने से ज्यादा खर्च करने वाला गरीब नहीं है | उस समय तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट पर काफ़ी हंगामा हुआ था | बड़ी–बड़ी बहसें हुईं | नेताओं के बड़े- बड़े बयान आए |
सी॰
रंगराजन समीति का गठन, तेंदुलकर समीति की समीक्षा
करने के लिए किया गया |
सी॰ रंगराजन की अध्यक्षता वाले विशेषज्ञ समूह ने तेंदुलकर समीति के गरीबी
के फार्मूले को खारिज़ कर दिया और उन्होंने गरीबी का एक नया फार्मूला दिया | सी॰ रंगराजन समीति की रिपोर्ट के मुताबिक, शहरों में
47 रुपए रोज़ाना और गावों में 32 रुपए रोज़ाना खर्च करने वाला गरीब नहीं है | यानि कि चंद रुपए बढ़ाकर, गरीबी का नया पैमाना
निर्धारित कर दिया गया |
तेंदुलकर समीति की रिपोर्ट में गावों में गरीबी का मानक 816 रुपए प्रति माह
से ज्यादा खर्च वाला गरीब नहीं था, तो सी॰ रंगराजन
समीति की यह 56 रुपए बढ़कर 972 रुपए हो गया | मतलब, अब गावों में जो 972 रुपए से ज्यादा एक महीने
में खर्च कर देता है वह गरीब नहीं है | शहरों में रहने वालों की बात करें, तो समीति के मुताबिक 47 रुपए रोज़ाना खर्च करने वाला गरीब नहीं है | मतलब महीने के 1407 रुपए वाला कमाने वाला गरीब नहीं है |
मैं
भी, समीति के इन आंकड़ों को लेकर, मेरे घर के पास एक भुट्टे वाली ठेली के पास पहुंचा | मैंने कहा कि आप महीने में 1407 रुपए से ज्यादा कमा लेते हो न ? उन्होंने कहा- हाँ | मैंने उनसे कहा कि सरकार के नए
आंकड़ो के अनुसार, आप गरीब नहीं हैं |
उन्होंने कहा कि आज-कल तो दवा-दारू में ही एक बार डॉक्टर को दिखाने में 200-400
रुपए लग जाते हैं |
दाल, सब्जी, दूध सब तो इतना
मंहगा है | आप ही बताओ ऐसे में क्या 1407 रुपए से ज्यादा
कमाने वाला गरीब नहीं होगा ?
यदि
आप समीति के आंकड़ो को मानते हैं, तो उनके अनुसार
एक व्यक्ति को एक दिन में थोड़ी सी ( मुट्ठी भर भी नहीं ) दाल, चावल और एक-दो रोटी से काम चल जाएगा | इस समय बाजार
में सब्जियों, दाल, रोटी , तेल के कितने भाव हैं, ये भी तो देखना पड़ेगा | यदि इन आंकड़ों को मान लें, तो देश में अधिकतर
कर्मचारी, ठेले वाले काहे के गरीब होंगे |
मैं
इन्हीं आंकड़ों को लेकर एक भिखारी के पास पहुंचा और उससे बस एक ही सवाल पूछा कि
भैया ! एक दिन में कितना कमा लेते हो ? जवाब में उसने
कहा कि 50-100 रुपए रोज़ाना के निकल आतें हैं | समीति के
आंकड़ों के अनुसार, यह भिखारी भी गरीब नहीं है |
सी॰
रंगराजन समीति ने देश की आबादी में औसतन अपने 10 में से 3 के गरीब होने के आकलन को
जायज़ ठहराया है | रंगराजन समीति के अनुसार, भारत में 2011-2012 में
कुल आबादी का 29.5 फीसद गरीब था, जबकि तेंदुलकर समीति की
रिपोर्ट में यह आंकड़ा 21.9 फीसदी था | सी॰ रंगराजन कह रहे
हैं कि उनका गरीबी का आकलन वैश्विक मानकों के मुताबिक है |
गरीबी
के निर्धारण के आंकड़े, भारत जैसे देश के लिए अत्यंत
आवश्यक हैं, क्योंकि भारत में गरीबों को लाभान्वित करने के
लिए कई योजनाएँ गरीबी के पैमाने पर ही आधारित हैं | सवाल
यहाँ ये उठता है कि गरीबी के पैमाना का निर्धारण आर्थिक आधार पर ही होना
चाहिए या फिर इसमें एक स्वस्थ्य जीवन-शैली
( पेट भर खाना, साफ पानी और शौचालय) ,
स्वास्थ्य और शिक्षा की गुणवत्ता को भी मापना चाहिए? संयुक्त
राष्ट्र संघ के क़ृषि और खाद्य संघटन के मुताबिक, 2012 में भारत
में 21.7 करोड़ लोग कुपोषित थे | दुनिया में भूखे लोगों वाले
79 देशों की सूची में भारत 75वें नंबर पर है | कुछ आंकड़े, ये भी कहते हैं कि अमीरी और गरीबी के बीच खाई लगातार बढ़ती जा रही है |
यदि आंकड़ों के मकड़जाल का कुचक्र इसी तरह
से जारी रहा, तो गरीब,
गरीब ही रह जाएगा और हर साल समीति के पुन: निरीक्षण करने के लिए नयी समीतियों का
गठन होता रहेगा | भारत में, वास्तव में
गरीबी, अभी तक आंकड़ो में ही उलझी हुई है |
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