Tuesday, July 15, 2014

क्यों हैं ब्रिक्स देश अहम !!


ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका का समूह विश्व की अर्थव्यवस्था को चुनौती देने में, विश्व की अर्थव्यवस्था का केंद्र पश्चिम से पूर्व की ओर लाने में, आईएमएफ़ जैसी संसथाओं को चुनौती देने में लगा हुआ है |
                                                 इस बार ब्रिक्स के समूह की 6वीं बैठक ब्राज़ील के शहर फोरटालेज़ा में सम्पन्न हो रही है | जी-8 देशों लेकिन अब जी-7 देशों (रूस निलंबित) और तमाम विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को ब्रिक्स सम्मेलन से बहुत आशाएँ हैं | भारत की ओर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ब्रिक्स समूह में भारत का नेतृत्व कर रहे हैं | ब्राज़ील में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुलाक़ात ब्राज़ील के राष्ट्रपति डिल्मा रुसेफ़, रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा से होगी और साथ ही साथ दक्षिण अमेरिका के कई प्रतिनिधियों से भी होगी |
                                                 

                                         ब्रिक्स है क्या? पहले यह जान लेते हैं | ब्रिक्स एक ऐसी संस्था है जिसका जन्म “गोल्डमैन शैच” के अनुसंधान के फलस्वरूप हुआ है | गोल्डमैन शैच एक निजी पूंजी निवेशक बैंक है | गोल्डमैन शैच के अनुमानों के मुताबिक, ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका उभरती हुई अर्थव्यवस्थाएं जी-7 देशों (कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका) की अर्थव्यवस्था से बेहतर सिद्ध होंगी | हालांकि ये बात भी जानने योग्य है कि  अध्ययन के विषयों को वास्तविक रूप देने का कार्य चारों राष्ट्रों के नीति-नियंताओं द्वारा ही सम्पन्न किया गया था |
                                             शुरुआत में इसे ब्रिक कहते थे | इसका पहला सम्मेलन 2009 में रूस में हुआ था | 14 अप्रैल, 2011 में चीन के सान्या में हुए ब्रिक सम्मेलन में यह ब्रिक से ब्रिक्स में परिवर्तित हो गया क्योंकि इसमें शक्तिशाली अर्थव्यवस्था दक्षिण अफ्रीका जुड़ी | दक्षिण अफ्रीका के शामिल होने के बाद  ब्रिक्स देशों की जीडीपी विश्व की  25 फीसदी जीडीपी से अधिक है | ब्रिक्स देशों की कुल जनसंख्या विश्व की 41% जनसंख्या है | जीडीपी की पीपीपी (क्रय शक्ति समतुल्यता) में मूल्यांकन करें, तो यह हिस्सेदारी 26.7 फीसदी बैठती है | जी-7 देशों की पीपीपी आधार पर जीडीपी विश्व अर्थव्यवस्था की 38.3 फीसदी है |
                                          इस संगठन के पक्ष में कई आंकड़े हैं | अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कोष के अनुसार, वर्ष  2015 तक ब्रिक्स देश पूंजी और तकनीकी से जुड़ी विश्व की लगभग आधी मांगों को पूरा करेंगे लेकिन ऐसा प्रतीत होता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है | फोर्ब्स जैसी पत्रिका ने इस संगठन को विश्व अर्थव्यवस्था के एक नए चालक के रूप में स्वीकार किया है |
                                            ब्रिक्स समूह देशों में सबसे प्रमुख मुद्दा, ब्रिक्स देशों का अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक होगा | यदि यह योजना सफल हो जाती है , तो वर्तमान विश्व-व्यवस्था में ये विश्व बैंक और आईएमएफ़ को चुनौती देगा | 2013 में, डरबन में हुए ब्रिक्स सम्मेलन में सभी देशों ने अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक के लिए सहमति दे दी थी |  हालांकि इस बार, ब्रिक्स सम्मेलन मार्च 2014 में होना था लेकिन कुछ कारणवश यह 15-16 जुलाई के बीच सम्पन्न हो रहा है |
                                            यदि ब्रिक्स समूह के देशों की बात करें, तो सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था चीन की है | बाँकी देशों को इस बात का डर है कि कहीं चीन इसमें ज्यादा अधिकार न जताने लगे और कहीं इसका इस्तेमाल चीन अपने हिट साधने के लिए न करने लगे |  यदि भारत के रुख की बात करें, तो भारत को इस बात की सबसे ज्यादा फिक्र है कि कहीं पलड़ा एक तरफ़ न झुक जाए | ब्रिक्स समूह का अंतरराष्ट्रीय विकास बैंक बनना अंतर्राष्ट्रीय हितों को चुनौती देगा क्योंकि ब्रिक्स देश आईएमएफ़, विश्व बैंक के समानान्तर एक ऐसी व्यवस्था खड़ी करने जा रहे हैं और यदि इस व्यवस्था में किसी एक का पलड़ा भारी होगा तो सीधी सी बात है कि उस अर्थव्यवस्था में विरोध होगा ही |
                                            इस व्यवस्था में होना यह चाहिए कि सभी देश बैंक में बराबर-बराबर हिस्से का योगदान दें, लेकिन शायद ये संभव नहीं हो पाएगा | अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था का आधार ही यही है कि जो ज्यादा आर्थिक रूप से शक्तिशाली होगा, उसका प्रभुत्व उतना ही ज्यादा होगा |
                                          ब्रिक्स देशों में भारत की भूमिका अहम है | ब्रिक्स रिपोर्ट ने यह माना है कि भारत ही एक मात्र ऐसी अर्थव्यवस्था है जो वर्ष 2050 तक 5% से ऊपर वृद्धि  दर कायम रखने में समर्थ है | विश्व की क्रय शक्ति समतुल्यता ( purchasing power parity)  के मामले में भारत का विश्व में अब तीसरा स्थान है | दक्षिण–पूर्व एशिया की एक महत्त्वपूर्ण शक्ति होने के कारण, उसमें एक बड़े बाज़ार की संभावना के चलते विश्व के शक्तिशाली देशों ने अपने हितों को साधने के लिए भारत को महत्त्व देना शुरू कर दिया है |
                                           ब्रिक्स देशों में शामिल देशों की बात करें, तो सबसे पहले हमें सभी देशों के विशेषतया आर्थिक, राजनैतिक संबंध देखने होंगे| ब्रिक्स में सबसे बड़ा विवाद भारत – चीन सम्बन्धों को लेकर है |  यदि भारत और चीन के बीच व्यापार में तुलना की जाए, तो भारी व्यापारिक असंतुलन दिखाई देता है | व्यापार पूरी तरह से चीन के पक्ष में झुका हुआ है |  भारत और चीन के बीच आयात-निर्यात संतुलन की बात करें, तो भारत चीन से आयात बहुत कम, निर्यात बहुत अधिक करता है | सर्वप्रथम इस मुद्दे को सुलझाना होगा | हालांकि, इसके लिए पहल उपराष्ट्रपति हमीद अंसारी की यात्रा के बाद शुरू कर दी गयी है | दूसरा प्रमुख मुद्दा है भारत-चीन सीमा विवाद | भारत-चीन सीमा विवाद को सुलझाने के लिए पिछली सरकार ने भी काम किया है और नवनिर्वाचित सरकार भी भारत-चीन रिश्तों को सामान्य करने के लिए लगातार प्रयासरत है | भारत और रूस की बात करें तो भारत को रूस की परंपरागत मित्रता से काफी फायदा हुआ है, लेकिन रूस के भी अपने व्यापारिक, सामरिक और राजनीतिक हित हैं | रूस को अभी हाल फिलहाल में जी-8 देशों की सदयस्ता से निलंबित कर दिया गया है | भारत के साथ ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका के रिश्तों की बात की जाए , तो उनहोंने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा समीति में सुधार के लिए बार्सिलिया घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे | एक समूह आईबीएसए बनाया गया जिसकी पहली बैठक सितंबर, 2006 में हुई थी और इसकी छठवीं बैठक 2013 में भारत में ही सम्पन्न हुई थी | आईबीएसए समूह के चलते भारत, ब्राज़ील और दक्षिण अफ्रीका के संबंध सुधरे हैं क्योंकि यूएन में तीनों देशों के हित कई मायनों में एक ही हैं |
                                                       ब्रिक्स देशों के बीच कारोबार की बात करें, तो यह लगभग 300 अरब डॉलर तक पहुँच चुका है | 2015 तक इसके 500 अरब तक पहुँचने का अनुमान   है | 2002 में ये महज़ 27.3 डॉलर था | लेकिन सवाल यहाँ ये उठता है कि व्यापार यदि एक ही देश के पक्ष में हो, तो  वह फिर व्यापार नहीं बन पाएगा |
                                                      दूसरा, एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु ये है कि ब्रिक्स शिखर वार्ता में डॉलर के विकल्प के रूप में दूसरी मुद्रा प्रणाली विकसित करने का भी मुद्दा उठाया गया था | ब्रिक्स देशों के विदेशी विनिमय कोष का अधिकांश भाग डॉलर में है | किसी न किसी तरह से हमें डॉलर पर निर्भरता घटानी होगी क्योंकि डॉलर में गिरावट का परिणाम होगा पूंजी का अवमूल्यन | इसे अमेरिका किसी भी कीमत पर रोकना चाहेगा | डॉलर के प्रभुत्व को समाप्त करने के लिए, एक दूसरा कदम ये उठाया गया था कि पारस्परिक भुगतान और ऋण डॉलर में देने के बजाय राष्ट्रीय मुद्रा में प्रदान किया जाएगा | अभी हाल ही में रूस और चीन ने गैस के मूल्य का भुगतान राष्ट्रीय मुद्रा में करने का निर्णय लिया है |
                                                      अब सवाल ये उठता है कि वाकई में ब्रिक्स समूह अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को चुनौती देना चाहते हैं, तो उन्हें डॉलर के प्रभाव को कम करके रियल, रूबल, रुपया, रैनमिम्बी और रैंड में भुगतान और ऋण देना होगा तभी वे विश्व अर्थव्यवस्था में चुनौती दे पाएंगे |
                                                      अंतर्राष्ट्रीय जगत ब्रिक्स समूह की ओर नज़रें गड़ाए बैठा है | यदि इसमें संस्थागत ढाँचे की स्थापना पर हस्ताक्षर हो जाएँ, तो यह एक बड़ा कदम होगा | अमितेन्दु पालित के अनुसार, “अंतर्राष्ट्रीय जगत यह देखने के लिए ब्रिक्स शिखर सम्मेलन पर पैनी निगाहें जमाये हुए हैं कि इस समूह में शामिल देश विश्व और भविष्य के बारे में क्या सोचते हैं ?

                                                      अभी हाल ही में, चीन और भारत में सत्ता परिवर्तन हुआ है | भारत के उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की चीन यात्रा में कई महत्त्वपूर्ण आर्थिक मसलों पर हस्ताक्षर हुएँ हैं | ऐसे में यह आशा है कि नयी सरकार पुरानी बातों को भुलाकर आगे एक नयी दिशा की ओर कदम बढ़ाए और ब्रिक्स विकास बैंक की स्थापना करवाएँ |

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