Thursday, March 20, 2014

खेल कुर्सी का



खेल कुर्सी का
वाराणसी से 7 आरसीआर का रास्ता अभी भी बहुत दूर है | ऐसे में ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि गंगा घाट में कीचड़ में कमल खिलेगा या फिर झाड़ू से वहाँ की सफाई होगी | गंगा के पवित्र पानी में सफाई होगी या कमल खिलेगा या फिर हाथ पूरी तरह से धुल जाएंगे | अब वाराणसी  में बीजेपी से एक नया शेर दहाड़ने आ गया है | पुराने शेर मुरली मनोहर जोशी अब कानपुर से चुनाव लड़ेंगे |अरविंद केजरीवाल के चुनाव लड़ने पर सपा के एक नेता ने ये बयान दिया है कि हम केजरीवाल को समर्थन करेंगे | हम अपना प्रत्याशी नहीं उतारेंगे |  यह भी हो सकता है कि मोदी को रोकने के लिए कई और दल केजरीवाल के समर्थन में आ जाएँ |
                                          बड़ा सवाल वाराणसी के लिए ये है कि आरएसएस मोदी को वाराणसी से उतारने के लिए इतना उतावला क्यों हो रहा है ? सूत्रों के हवाले से ये खबर है कि आरएसएस ने वाराणसी में पहले से ही मोदी के लिए सर्वेक्षण करा लिया है | वाराणसी सीट से मोदी के चुनाव लड़ने पर पूर्वांचल और बिहार में कुछ सीटों पर फर्क पड़ सकता है | वाराणसी में मोदी के समर्थन में गंगा की आवोहवा है लेकिन केजरीवाल के आने से वहाँ की आवोहवा कहीं न कहीं दूसरी तरफ मुड़ती हुई दिखाई दे रही है |  एक बात तो बिलकुल स्पष्ट है कि यदि बीजेपी ने केजरीवाल को हलके में लिया, तो बीजेपी के लिए केजरीवाल नुकसानदायक साबित होंगे |  
                                                      मुरली मनोहर जोशी को वाराणसी से न उतारने का सबसे बड़ा कारण ये है कि एमएम जोशी यदि वहाँ से चुनाव लड़ते तो वे इस बार चुनाव हार जाते | ऐसा संघ के सर्वे में भी सामने आया है | मोदी को वाराणसी से उतारना कहीं न कहीं हिन्दू मतों को एक तरफ करना है लेकिन इस बात की कोई निश्चितता नहीं है कि वहाँ की जनता अभी भी इसी आधार पर वोट करेगी |
                                                                यदि बीजेपी के प्रधानमंत्री  पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की बात की जाये तो बनारस में मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है । क्योंकि अब वहाँ केजरीवाल ने बनारस में चुनौती स्वीकार कर ली है । आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने भी नरेंद्र मोदी को टक्कर देने का एलान किया है। हालाँकि केजरीवाल ने वाराणसी से चुनाव लड़ने की बात तो कही, लेकिन ये भी जोड़ दिया कि यदि वहां की जनता उन्हें टिकट देती है तब वो लड़ेंगे । उत्तर प्रदेश में बनारस की सीट पर मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है लेकिन ये तो आने वाला समय ही बतायेगा कि बनारस में कौन जीतेगा ? अगर केजरीवाल की बात करें तो वो भी अभी तक काफी विवादास्पद नेता रहे हैं । क्या वे दिल्ली की विजय को बनारस में दोहरा पाएंगे ? बनारस सीट यूपी में कितनी महत्वपूर्ण है इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि बनारस पूरे पूर्वांचल और बिहार में कुछ सीटों पर असर डालता है । बनारस की बात की जाये तो वहाँ सरयू पार पंडित आधिक्य में हैं । अगर इनके झुकाव की बात की जाये तो इनका झुकाव बीजेपी की तरफ ज्यादा है । दूसरी, सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि बनारस में हिन्दू आबादी बहुत अधिक है । मोदी और केजरीवाल के अलावा समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी भी वाराणसी के चुनावी मैदान में हैं, और भी उम्मीदवार हैं और चुनावी संघर्ष बहुकोणीय दिखाई देता है | ज्यादातर उम्मीदवार भी वाराणसी के निवासी नहीं हैं जिन्हें अक्सर 'बाहरी' भी कहकर बुलाया जाता है । यदि बसपा के उम्मीदवारवार आरपी जायसवाल की बात की जाये, तो उनका भी कोई ख़ास प्रभाव नहीं दिखाई देता है । वे बनारस के लिए अजनबी हैं ।। बात अगर सपा के प्रत्याशी कैलाश चौरसिया की जाये, तो वे मिर्जापुर से विधायक हैं  और वे भी बनारस के लिए अजनबी हैं । खेल बिगाड़ने में नाम मुख्तार अंसारी का भी है । तो बनारस का मुकाबला बहुकोणीय होगा । 
                                                            एक बड़ा सवाल ये है कि यदि बीजेपी विकास को आधार मान कर चुनाव वहाँ से लड़ रही है, तो कहीं न कहीं ये दिखावा मात्र है | अगर वाकई में बीजेपी के लिए वाराणसी में विकास मुद्दा है तो क्यों एमएम जोशी ने वहाँ विकास नहीं कराया, क्यों एमएम जोशी को अपनी कुर्सी छोड़ कर कहीं और जाना पड़ा ? आंकड़ों पर यदि नज़र दौड़ायेँ,  तो पिछले 25 सालों में सबसे ज्यादा वहाँ बीजेपी सिंहासन में रही है, फिर भी बनारस शहर की हालत खस्ता है | क्या बीजेपी इसका जवाब दे सकती है ?  
                                                        यदि विकास पुरुष नरेंद्र मोदी की बात की जाए, तो उन्हें इतना विश्वास है ही कि वे जीत जाएंगे तो फिर भी वे वडोदरा से चुनाव क्यों लड़ रहे हैं ? कहीं न कहीं बीजेपी को भी हार का डर है | वडोदरा नरेंद्र मोदी के लिए एक सुरक्षित जगह है |                                                               उत्तर प्रदेश में खेल काफी दिलचस्प होने वाला है , लेकिन एक बात तो  तय है कि उत्तर प्रदेश से बसपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरेगी । बसपा की रणनीति बहुत हद तक ज़मीन पर निर्भर पर है । हालाँकि उनकी रैलियों को मीडिया में ज्यादा महत्व नहीं दिया गया है  लेकिन उनको कम आंकना एक बहुत बड़ी भूल होगी । उत्तर प्रदेश में इस बार असल लड़ाई बसपा और बीजेपी के बीच है । 






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