किसमें है कितना दम??? |
किसमें कितना दम है : चुनाव 2014
भारत में प्रधानमंत्री पद के लिए एक बड़ी ही सटीक उक्ति है कि प्रधानमंत्री पद की कुर्सी उत्तर प्रदेश, बिहार, आंध्र प्रदेश से होकर जाती है | यदि पिछले आम चुनावों की बात की जाए तो इन चुनावों में काँग्रेस को आंध्र प्रदेश की 42 सीटों में से 30 सीटें मिली थी | कौन बनेगा प्रधानमंत्री-इसका कोई एक जवाब नहीं है और इसका उत्तर एक-दो लाइन में दिया भी नहीं जा सकता है | इस सवाल के जवाब को ढूँढने के लिए आइये चलते हैं, सबसे पहले उत्तर प्रदेश में | इस समय वहाँ क्या-क्या हो रहा है ? सुनते हैं और समझते हैं |
उत्तर
प्रदेश में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं | इस बार के
चुनावों में एक नयी पार्टी आम आदमी पार्टी का उदय हुआ है जिसने उत्तर प्रदेश के
सियासी समीकरणों को बदल दिया है | पिछले आम चुनावों में सपा
22 सीटें लेकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी लेकिन इस बार स्थिति इसके उलट है | उत्तर प्रदेश में अभी कुछ ही दिन पहले मुज़्ज़फरनगर में सांप्रदायिक दंगे
हुए थे जिसको राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी रंग दे दिया और मतों का ध्रुवीकरण
प्रारम्भ हो गया | इसका प्रभाव इस बार के लोकसभा चुनावों में
पड़ने वाला है | इस बार नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश में
वाराणसी या लखनऊ से चुनाव लड़ सकते हैं | उत्तर प्रदेश में
मोदी की कुछ न कुछ हवा जरूर है, इस बात से इंकार नहीं किया
जा सकता है | यदि चुनावी समीकरण की बात करें तो उत्तर प्रदेश
में सपा ने तीसरे मोर्चे के साथ जाने का संकल्प लिया है,
बसपा ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं | आप के आने से सभी
पार्टियों का पारंपरिक वोट बैंक गड़बड़ा गया है | कयास ये भी
लगाए जा रहे हैं कि कहीं बीएसपी अंत में बीजेपी के साथ गठबंधन न कर ले | यदि ऐसा होता है तो इससे बीजेपी को बहुत ज्यादा फायदा होगा | इस बार यू.पी. में असल लड़ाई बीजेपी की है, क्योंकि
मोदी को प्रधानमंत्री बनने के लिए यू.पी. में अच्छी-ख़ासी सीटों से जीतना होगा | यू.पी. में दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है कि मुस्लिम
किसे अपना मत देते हैं ? उत्तर प्रदेश में मुसलमान मतदाता
करीब 19-20 % हैं | अभी तक मुस्लिम मतदाता बीजेपी के विरोध
में ही वोट करते आए हैं | सवाल यहाँ ये उठता है कि मुसलमान
वोट वापस से काँग्रेस या सपा के पास जाएंगे या इस स्थिति से सबसे ज्यादा फायदा
बीएसपी को होगा ? बसपा की रणनीति सर्वजन और सर्वधर्म को खुश करने की रही है और यही रणनीति बीएसपी को आने
वाले चुनावों में फायदा दिला सकती है | तीसरी सबसे बड़ी बात ये है कि उत्तर प्रदेश में दलित वोट 24% है | ये दलित वोट सिर्फ बीएसपी के पास रहेगा या फिर ये भी कहीं दूसरी पार्टी
की तरफ स्थानांतरित होगा ? बीजेपी को उच्च जाति वाली पार्टी
कहा जाता है, लेकिन बीजेपी अपने ऊपर इस सोच को हटाने के लिए
लगातार प्रयासरत है | भाजपा की इसी रणनीति के तहत अब यूपी के
दलित नेता उदित राज भाजपाई बन गए हैं |
बिहार में बीजेपी ने दलित वोटों को ध्यान में रखते हुए रामविलास पासवान से हाथ मिला लिया है | बिहार में समीकरण काँग्रेस, बीजेपी, जे.डी.यू, लोकजनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल के इर्द-गिर्द दिखाई दे रहे हैं | ये राजनीति का ही खेल देखिये कि अभी तक जो पार्टी बीजेपी को भारत जलाओ पार्टी कह रही थी, आज वही बीजेपी को भारत बनाओ पार्टी कह रही है | नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू ने तीसरे मोर्चे में आने का संकल्प लिया है | बिहार में विशेष राज्य की मांग को लेकर नीतीश सरकार ने बिहार बंद किया है और इसका वामपंथी दलों ने समर्थन किया है | बिहार में दलित, मुसलमान, सवर्ण, यादव फैक्टर बहुत काम करता है | बिहार में सभी दल इन्हीं फैक्टर को खुश करने में लगे हुए हैं | कुछ ही दिन पहले लालू यादव की पार्टी के 13 विधायकों ने बगावत कर दी थी जिनमें से 6 विधायक वापस लौट आए थे | आरजेडी ने काँग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए 11 सीटों की पेसकश कर दी है लेकिन काँग्रेस ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है | काँग्रेस के अंदर ही कुछ नेता इस गठबंधन के खिलाफ़ हैं और वे जेडीयू से गठबंधन करना चाहते हैं | बीजेपी का एलजेपी के साथ गठबंधन होना एक फायदा साबित हो सकता है | अब बीजेपी ये कहेगी कि हम दलितों के साथ हैं | नरेंद्र मोदी खुद ये प्रचारित कर रहे हैं कि मैं भी दलित, चाय बेचने वाला हूँ | बिहार की सबसे प्रमुख मांग बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की है | यदि बीजेपी सत्ता में आती है तो हो सकता है कि बीजेपी विशेष राज्य का पासा फेकें और जनमत को अपने पक्ष में आगें आने वाले चुनावों के लिए कर ले | बिहार में 40 लोकसभा सीटें हैं | पिछले साल के आम चुनावों में सबसे ज्यादा सीटें जेडीयू को 20 मिली थी | उसके बाद बीजेपी को 12 मिली थीं |
प्रधानमंत्री के रथ पर सवार होने के लिए सिर्फ इन्हीं दो राज्यों से काम नहीं चलने वाला है | आंध्र प्रदेश, पिछले लोकसभा चुनाव में काँग्रेस को केंद्र में सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी | इस बार, आंध्र प्रदेश की स्थिति बहुत ही अलग है | आंध्र प्रदेश में कुल 42 सीटें हैं | तेलंगाना के अलग राज्य बनने से 17 सीटें तेलांगना में चली जाएंगी और बाँकी सीट बचेगी 25 | इस बार की लड़ाई इन 25 सीटों पर है और इनके दावेदार टीडीपी, वाई.एस.आर. काँग्रेस और खुद काँग्रेस भी है | तेलंगाना में टीआरएस पार्टी को ही सारी सीटें मिलेगी | टीआरएस ने अभी तक आधिकारिक रूप से काँग्रेस के साथ गठबंधन का एलान नहीं किया है | बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के वजूद की यदि दक्षिण भारतीय राज्यों में बात की जाए, तो उनका कोई खासा प्रभाव नहीं दिखाई देता है |
प्रधानमंत्री
बनने के लिए 272 के जादुई आकड़े को पार करना होगा, जो कि किसी एक अकेली पार्टी के लिए संभव नहीं है | प्रधानमंत्री
पद की दौड़ में जीतने के लिए सभी दलों का सहयोग चाहिए | हो सकता
है कि वाई.एस.आर. काँग्रेस बीजेपी को समर्थन दे दे, और बसपा भी
समर्थन दे दे | लेकिन अभी कुछ भी कहना थोड़ा जल्दबाज़ी होगी | इस बार के चुनावों में काँग्रेस को खासा नुकसान होगा | उत्तर प्रदेश में बसपा सबसे बड़ी पार्टी उभर कर सामने आने वाली है और बीजेपी
को अंत में उससे सहयोग की दरकार होगी | क्षेत्रीय दलों के सहयोग
के बिना दिल्ली का सपना हक़ीक़त में नहीं बदल सकता है |
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