Saturday, March 08, 2014

महिला दिवस मुबारक



2011 की जनगणना के अनुसार , भारत की कुल आबादी में 49% महिलाएं हैं | मैं आपको ये क्यों बता रहा हूँ, वो इसलिए अगर इनके विकास, बराबरी पर ध्यान नहीं दिया जाता है तो हम अपना ही, अपने समाज, अपने देश, अपना विश्व का नुकसान कर रहे हैं | कुछ प्रचारों में ये कहा जा रहा है कि ज्यादा लड़कियां, ज्यादा सुरक्षा | मुझे उनके इस प्रचार से समस्या ये है कि ज्यादा लड़कियां होने पर ही सुरक्षा क्यों ? क्या उन्हें सुरक्षा  सिर्फ लड़कियों के बीच ही मिल सकती है | अगर ऐसा  है तो कहीं न कहीं हम गलत समाज की ओर जा रहे हैं और अपनी ज़िम्मेदारी को भूल रहे हैं | 
                                                       16 दिसंबर महिलाओं की सुरक्षा पर लगा वो प्रश्न चिन्ह था जिसने किसी भी तरह के जवाब के बजाय कई तरह के सवालों को जन्म दिया | पहली बात तो ये कि एक खुला वातावरण किसी भी महिला के लिए कहाँ तक सुरक्षित है और दूसरा  बात तो ये कि कब तक महिला उपभोग का साधन समझी जाती रहेगी ? कहने को तो हम मानव सभ्यता के अच्छे शिखर पर पहुंचे हैं , लेकिन मुझे लगता है कि मानवीय संवेदनाओं का विकास अभी भी पाषाणकालीन सभ्यता में ही अटका हुआ है | अगर मनुष्य अपनी संवेदनाओं में इतना पिछड़ा हुआ है तो क्या उसे मनुष्य की संज्ञा देना सही है |
                                                       ये जानते हुए भी कि महिला समाज की हर गतिविधि में भागीदार है फिर भी इस तरह का दुर्व्यवहार या असमानता का व्यवहार मानव समाज की असफलता ही कही जाएगी |  ये चार्ट इस बात की ओर इशारा करता है कि विश्व भर में महिलाओं के अस्तित्व की क्या स्थिति है |

    
                                                  यूं तो संसद में कई बिल लटके हुए हैं और उसमें से सबसे महत्वपूर्ण बिल महिला आरक्षण विधेयक है लेकिन ये बिल संसद में अभी तक पारीत नहीं हुआ है | इसमें सवाल सबसे बड़ा ये उठता है कि जो पार्टियां आरक्षण का समर्थन करती हैं वे सभी पार्टियां महिला आरक्षण विधेयक पर क्यों विरोध जताने लगती हैं | उदाहरण के तौर पर, समाजवादी पार्टी को ही लीजिये, जतियों को आरक्षण दिलाने में हमेशा समर्थन में रहे लेकिन जब बात महिला आरक्षण की आती है इनकी सरीखी पार्टियां विरोध पर उतार आती हैं | आज भारत में सिर्फ 11% महिलाएं संसद में हैं |
                                                  एक घटना मुझे अभी तक याद है | घटना नोएडा सिटी सेंटर की है | मैं और मेरे कुछ मित्र सिटि सेंटर से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहे थे | मेट्रो में अंदर प्रवेश के लिए काफी लंबी लाइन लगी हुई थी | मेरे लिए ताज्जुब की बात उस दिन ये थी जितनी लंबी लाइन पुरुषों की थी उतनी ही लंबी लाइन महिलाओं की भी थी | उसी समय मैंने अपने दोस्त से बोला कि ये महिला सशक्तिकरण है | यहाँ मुझे समानता दिखाई दे रही है | रात को 8:30 बजे पुरुषों के बराबर महिलाएं समाज में एक अच्छे संदेश को प्रेषित कर रही हैं | लेकिन यहाँ एक सवाल ये उठता है कि क्या संख्या को महिला सशक्तिकरण का आधार मान लिया जाए ? इसका उत्तर ये है कि पहले तो महिलाएं इतनी संख्या में बाहर भी नहीं आती थीं लेकिन अब महिलाएं अपने अधिकारों, हक़  के लिए आगें बढ़ रही हैं | पहले से ज्यादा हम जाग्रत हो रहे हैं और एक नए समाज की ओर बढ़ रहे हैं | हालांकि इसमें वक़्त लगेगा लेकिन ये प्रक्रिया शुरू  हो चुकी है | और ये प्रक्रिया शुरू होना ही महिला सशक्तिकरण के लिए एक बड़ा कदम है |
                                                 महिलाओं की समाज में महत्ता की बात की  जाए तो दुनिया में जब हम आतें हैं तभी से महिलाओं की महत्ता बढ़ जाती है | जन्म से लेकर लालन-पोषण तक माँ हमेशा हमारा साथ देती हैं |
                                                 मैं जब छोटा था जब मेरे स्कूल में लड़के-लड़कियों का प्रतिशत बहुत ही असमान था लेकिन जब मैं किरोड़ीमल कॉलेज आया तो यहाँ आकर मैं दंग रह गया | मैंने पहली बार लड़कियों का लगभग समान प्रतिशत देखा , जो कि मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी |         
                                                 महिलाओं के सुरक्षा के मुद्दे का हल जमीनी स्तर पर ही पहल कर के किया जा सकता है | यूं तो हम बड़ी-बड़ी किताबों में ही महिला सुरक्षा या महिला सशक्तिकरण जैसे भारी-भरकम विषयों को पढ़ते हैं लेकिन क्या ये जरूरी नहीं बन जाता कि कम उम्र के बच्चों के पाठ्यक्रम में भी इन संवेदनशील बातों को शामिल किया जाए | पेड़ की जड़ में लगी दीमक से पेड़ खोखला हो जाता है | अगर जड़ मजबूत होगी तो सारा पेड़ फल-फूलकर अपनी सुरक्षा रूपी छाया दे सकेगा |
                                                                                                 
                                                   

No comments:

Post a Comment